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Torture of Brahmans +


It is joking if cowardice known, unproductive of kingly or warrior blood & kings from its folk state of Gujarat of India, to become king & to rule it, has gave these two bastards like Mr. M.K. Gandhi alias Mahatma Gandhi & Mr. Jinnah, as fathers of India & Pakistan. Of course like these 2 baniyas (all peoples of Gujarat are known and hated as blood sucker money lenders, traders, naming them Baniya), India' top businessmen like Tata, Birla, Adani, Ambani, Mittal, Jindal etc too are Baniya of either Gujarat or its neighbor Rajasthan. It is not necessary to inform that traders get commission amount, impossible to be earned in honest ways or without fooling their customers with luring conversions. India' present P.M. Mr. Modi his aides & most of ministers too are Baniyas. Warrior Indians' fate?
Reply to one googally comment feeling proud of being Indian, deserving opinion pole too >!< पुरे विश्व मे एक हि नस्ल कि मानव जाती मे छुत अछूत का भेद केवल भारतीय जाती व्यवस्था मे हि है. किसी अछूत का दर्शन हि नही तो उसकी केवल छाव भी किसी गैर अछूत कि निर्जीव चीज पर भी पडने पर उस गरीब अछूत के कानोंमे पिघला शिसा धातू डालने कि सजा उसे देने के प्रावधान हिंदू धर्म शास्त्र मे अधिकृत बनाये गये है. हिंदू धर्म, जो अब भारतीय सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत ब्राह्मनोंने उनके विकृत अधिपत्य को कायम रखने हेतू भारतीयोंपर लदी एक संस्कृती हि होने के बावजुद बहुतांश भारतीय उसे उनका धर्म मानते दिख रहे है. भारत मे ब्राह्मनोंको भगवान बनाया गया है. गैर बम्मनोंको बम्मनोंके पैर धुले पानी को भी पवित्र मानना और उसे तीर्थ मानकर पिने कि लत लगाई गई है. तो साहजीकताः हि सारे ब्राह्मण भगवानोंकी मोफत सेवा करना सारे गैर बम्मनोंका अनिवार्य कर्तव्य बनता है. खास बात यह है कि ब्राह्मण खुद इस भारत मे विदेशी और आज भी केवल साडेतीन टक्के कि आबादी वाले है. वे भी उनही आर्य टोलीयोंमेसे एक टोली के सदस्य है जो उत्तर ध्रुव से निकलने के बाद योरोप और सहारा रेगीस्तान के पश्चिम अशिया मे पडाव करके भारत मे घुसे है. यह एक ब्राह्मण स्वातंत्र्यसैनिक टिळक द्वारा संशोधित और प्रकाशित सत्य है. चार मुख्य जातीयोंमेसे सबसे उपरी ऐसी उनकी जातीके निचेवाली तीनो जातीया मांगोलोईड और निग्रोईड नस्लोंके समिश्र या पृथक ऐसे अनार्य कहलाने वाले भारतीय मूलनिवासीयोंकी इकजूट का विदीर्ण विघटन करके बनाई गयी है. अमरिका मे गये आर्य अंग्रेजोंने वहा के अल्प संख्यांक मूलनिवासी रेड इंडीयनोंमे ऐसा विघटन करने कि अमानुषता नही दिखाई, और नाहि भारतीय मूलनिवासीयों जैसी उनमे आपसकी भी छुत अछूत कि प्रथा डाली. उनके बनाये वर्ण वर्चस्व कि उन्हे इतनी मग्रुरी है उनमेसे एक रामदास नामका शादी के पंडाल से भागा तथाकथित संत डंके कि चोट पर कहता है कि ब्राह्मण कितना भी भ्रष्ट हो तो भी सबसे वो हि श्रेष्ठ रहेगा. बहुत बेखुबी से उसने दर्शाया है कि कैसे उनको देवोंकी दलाली ऐसी दक्षणा के रूप मे घूस देने वाले भक्त उन लाचखोरोंको गालीया देने के बजाय उनके हि पैर चुमते है. छुत अछूत कि अमानवी गंदी प्रथा के साथ साथ भ्रष्टाचार के भी उद्गाता और आद्य प्रवर्तक है ब्राह्मण! उनके भारत मे आनेके बाद भारत मे जो जातीयता और भ्रष्टाचार का उधम मचा है, वो थमने का नाम हि नही ले रहा है. आप कह रहे है कि आप भी निचली जाती के हो लेकीन आप वो मानते नही. आपका वैसे मानना या ना मानना कोई मायना नही रखता है.एड्स के व्हायरस जैसे लसीकरण किया है सारी अमानवी और गंदी प्रथाओंका बम्मनोंने भारत के मूलनिवासीयोंमे, जिसके तहत हाल हि मे एक अछूत बच्ची कि छाव किसी राठोड नामके एक भडवे के खाने पे क्या गिरी तो उस हिजडे ने उस मासूम बच्ची को बेरह्मीसे पिटा था. उस राठोड के जैसे हि बम्मनोंकी कॉपी करने मे धन्यता मानने वाले और अछुतोंसे दुरी रखने वाले तथाकथित उच्च वर्णीय मराठाओं कि एक वयोवृद्ध मां कि उसकी बम्मन मालकीन ने जो असली औकात दिखाकर जो बेईज्जती कि है, उससे यह साबित होता है कि उन्होंने मूलनिवासीयोंमेसे अलग करके जिन्हे उच्च वर्णीय बनाया है, वे क्षत्रिय भी सहिमे उनके लिये अछूत हि है. ब्राह्मण खुद जातीयता और विषमता कायम रखने के पक्ष मे है, जीससे उनकि उच्चता बरकरार रहेगी. केवल बम्मनोंकी हि मिल्कीयत ऐसी हिंदू संस्कृती कि तरह उनकि हि मिलकीयत ऐसे RSS का पिट्टू मोदी तो घांची है. उसका उच्चवर्णीय क्लर्क अमित शहा का तो बम्मन के पैर धुले पानी को पिये बिना दिन हि शुरू नही होता है. ऐसे परजीवी और परबुद्धि के लोग भारत को प्रगती कि राह कैसे ले जायेंगे? गर्व करे तो कीस बातका? 1 ब्राह्मण निर्मित जातीभेद के तहत फैली विषमता से सारे भारतीय सही मे एक जूट नही है उसका? 2 ब्राह्मनोंने उनसे सौ गुना जादा गैर बम्मन मूलनिवासीयोंकि उनके सम्राट चंद्रगुप्त और अशोक कालीन अभेद्य एक जुटको फाडकर भारत को उनकेहि आर्य खून के योरोपियन इसाई और सहारा रेगिस्तानी मुसलमानि अक्रमकोंके लिये सुगम बनाया इसलिये? 3 ब्राह्मनोंको भगवान मानते हमारेमेसे उन्होंने उनके पैर चुमने के हद तक जिन्हे भाग्यवान उच्च वर्णीय बनाया, ऐसे लोग उनके पैर धुले पानी को पिकर बलवान बन गये है इस लिये? 4 ब्राह्मण उन तथाकथित उच्चवर्णीयोंकी बुढी माताओंको भी उनके घर मे प्रवेश करने के मामालोंमे अछूत मानते है इसलिये? 5 या भारतीय होने का गर्व हि ना करे? खोले बाई क्या बोले? लाजवाब! अच्छा हुआ उनको बता दिया कि केवल ब्राह्मण हि आर्यन खून के है, और बाकी सब भारतीय गैर आर्यन खून के है. हम तो लडाकु मंगोलोइड या राक्षस कि ताकदके निग्रोइड या उनकी हायब्रीड उपज है. अंदर और बाहर एक. नो चीटिंग नो फेकिंग, जो ब्राह्मनोंकी हि खासियत है, और ये जो अर्ध अस्पृश्य बनाकर उपकृत आयना दिखा सब वरना FROM 2nd Planet >!< Reply to a query may help others too! >!< वंजारी बंजारा भाय! अछूत बनाये लोगोंपर जावखेडा खैरलांजी जैसे विकृत अत्याचारोंमे ब्राह्मण शामिल नही मिलेंगे. पर उस अत्याचारोंको ब्राह्मण निर्मित मनुस्मृती व प्रस्थापित हिंदू धर्म ने अधिकृत बनाया है. ब्राह्मण तो आंबेडकर जी का नेतृत्व स्वीकारने वाले विशाल ह्रदयी गुणग्राहक व किसी गोष्टी कि घ्रीणता उजगर होने पर उसे खुद नष्ट करने वाले क्रांतिकारी भी है. ऐसे गुण एक भी गैर ब्राह्मनमे नही है. किसी से कुछ तो उच्चा स्थान है इसी आत्मवंचना से अस्पृश्येत्तर गैर ब्राह्मण ग्रस्त है. अगर वे खुद को उस हिंदू धर्म, जिसे ब्राह्मनोंने लदी संस्कृती हि है, ऐसे सुप्रीम कोर्ट ने घोषित किया है, उसको छोडेंगे और ब्राह्मण मनु निर्मित मनुस्मृती को जलाने वाले बाबासाहेब अनुयायी ब्राह्मनोंजैसे उसे धुत्कारेंगे तो वे उनको ब्राह्मनोंद्वारा दिया गया जाती प्रथांतर्गत अस्पृश्येत्तर उच्च स्थान खो देंगे और ब्राह्मनोंके लिये तिरस्करणीय बनेंगे, ऐसा डर दिलमे बसाके हजारो सालोंसे जी रहे है. ब्राह्मनोंको वे कितना डरते थे यह शाहूमहाराज कथित एक सत्य घटना से स्पष्ट अधोरेखित होता है. एक ब्राह्मण ने दक्षणा के रूप मे एक अस्पृशेत्तर उच्च वर्णीय गैर ब्राह्मण से उसकी खुबसुरत नव विवाहित पत्नी को एक रात के सहवास के लिये मांगा. जिसकी पूर्तता उस क्षत्रिय ने कि भी. लेकीन जब वो क्षत्रिय फिरसे उसकी पत्नी को ब्राह्मण से मांगने गया तो उस भिक्षुक ब्राह्मण ने उस क्षत्रिय को उसके दरवाजे से हकाल दिया और उसकी पत्नी को अपने पास हि रखा. जैसे अमेरिकन इसाईयोंने अमेरिका मे उन्होंने कि घुसखोरी के लिये और शुरू मे वहा के मूलनिवासी रेड ईंडीयनोंकी कि कत्तल के लिये, उन रेड ईंडीयनोंसे जाहीर माफी मांगी थी, वैसे हि ब्राह्मनोंने उनको डर के और उनकी प्रत्याक्शाप्र्त्याक्ष प्रेरणा और इशारोंपार अछूत अत्याचारोंको धर्म कर्तव्य मानने वाले गैर अछूत गैर ब्राह्मण भारतीयोंके दिलसे उनका खौफ निकालने के लिये केवल अछुतोंसे हि नही तो सारे भारतीयोंसे उस घीनौनी जाती प्रथा कि स्थापना के लिये माफी मांगनी चाहिये. यह अपेक्षा हमने हर पोश्त मे कि है. दक्षणा के रूप मे और मंदीरोंसे उन्होंने कमाये अमाप धन राशी के वापसी कि मांग हम उनसे बिलकुल नही करेंगे. अप बम्मन हो या नही मुझे मालूम नही. गर बम्मन नही हो तो कल पुना के ब्राह्मण खोले ने इन्ही क्षत्रीयोंमेसे बम्मन कि कॉपी करनेकी चेष्टा करने वाली ८० सालकी वृद्धा कि जो बेइज्जत कि है, उससे आपको बेहद शरमिंदा होना चाहिये. अगर ब्राह्मण हो तो आप क्या करना है, यह आपको समझाना नही पडेगा ऐसी आशा करता हुं. और अहम बात यह है कि रानडे गोखले और बाबासाहेब अनुयायी मनुस्मृती जलाने वाले और उनके साथ बुद्ध धर्म स्वीकारने वाले ब्राह्मनोंके अलावा सारे बम्मन और उनके पीर धुले पानी को तीर्थ मानकर पिने वाले सारे अस्पृश्येत्तर जातीय वादीयोंको मै अछूत मानता हुं, जिसको हम बार बार जाहीर कर चुके है. हम अछुतोंका स्वाभिमान हमारे खून कि देन है, औरों जैसे ब्राह्मनोंके मेहेरबानी कि बदौलत नही. स्वाभिमानि होना बुरा १ है? या २ नही? Reply to a bug >!< कोणी आणि कुठल्या संतांनी ब्राह्मणी धर्माचा पराभव केला? तो केवळ संस्कृती असलेला धर्म या बावळट संतांमुळेच अबाधितच राहिला नाही तर फोफावण्यास मदत झाली. त्या संतांची थोरवी आणि गोडवा तुम्हीच कुरवाळत बसा. १०० घरांच्या गावातल्या स्वल्प संख्यांक ब्राह्मणाच्या जेमतेम एका घरातील एकाद दुसऱ्या प्रौढ ब्राह्मणाची शाबासकी किवा कृपा मिळविण्या साठी, कवनं करणे, त्याच्या करमणूकि साठी देवभक्त दाखवत नाचणे आणि मंबाजी सारख्या एखाद्या भटाच्या त्रासाला घाबरून डोंगरात जावून लपणारेच सारे गैर ब्राह्मण संत होते. शिक्षणाचे एकमेव अधिकारी ब्राह्मणांमुळेच व त्यांना सोयीचे होते तेवढेच संत त्यांनी प्रसिद्धीस आणले. गैर ब्राह्मण संता पेक्षा ज्ञानेश्वर एकनाथ हे ब्राह्मणच ब्राह्मणांच्या विकृत अधिपत्यावर टीका करणारे क्रांतिकारी होते. बसवेश्वरांची अधिक माहिती मिळविण्यात रस नाही, पण एवढे क्रांतिकारी भासल्यावर ते सुद्धा ब्राह्मणच असणार याची खात्री आहे. गैर ब्राह्मण अशा कोणत्याही संताने आणि गावकऱ्यांनी ठरवले असते तर एकनाथ ज्ञानेश्वर किवा बसवेश्वराच्या साथीने प्रत्येक गावात एक किवा दोन घरांच्या ब्राह्मणांच्या विकृत वर्चास्वाचेच नव्हे तर त्यांच्या घरांचे हि उच्चाटन केले असते. सबब गैर ब्राह्मण संत आणि त्यांची भाषा माझे आदर्श नाहीत. माझे आदर्श ठरवण्याचा अधिकार मी कोणालाही दिलेला नाही. रहाता राहिला शिवराळ पणाचा प्रश्न. मी प्रसंगानुरूप कुठली भाषा वापरावी असा सल्ला माझे परिचित आदरणीय हि देण्यास धजावत नाहीत. तुमचा तर प्रश्नच येत नाही. बाबुराव बागुलांच्या कथेतील भाषेला हि कोण्या विद्वानाने दोष दिलेला नाही. तुम्ही तर विद्वान हि दिसत नाहीत. मग? फक्त १०० त ४ च कमी असल्याचाच गर्व मानून तुताऱ्या आणि बिड्या फुकत मिशांना पीळ देत देत कमी असलेले ४ मिळवण्याच न पेलवणार धनुष्य उचलण्याच कष्ट केलच नाही त्यांनी. कदाचित मुळात ९६ दिले कुणी याचाच त्यांनी कधी विचार केला नसेल अथवा विचार करण्याची सर्वसाधारण मानवी क्षमतेचा प्रोग्रॅमच त्यांच्या एडमीन ने त्यांच्या डोक्याच्या प्रायमरी अवस्थेतच ठेवलेल्या संगणकातून हजारो वर्षांपुर्वीच डिलीट केलेला असेल तर उरलेले ४ कोण देईल हे त्यांना कळणारच कसे. तशी पण गरजच काही पडत नव्हती त्यांना, जर देवासम एडमीन न फक्त त्यांनाच स्वताःच्या व स्वसंशोधित स्वयंकेंद्रित नियम पुस्तिकेतील नियमांची कठोर अंमलबजावणी करण्यासाठी फक्त त्यांच्यातीलच बाजारबुणग्यांना देखील शास्त्र परवान्यांची खिरापत वाटून सिक्युरिटी गार्ड बनवून उर्वरितांसाठी त्यांचेच महत्व स्वताःच्या खालोखाल भासविले असेल तर! फक्त एडमीन च्या घरची लाकड फोडून दिली, त्याच्या शेताची नांगरणी आणि घराची शाकारणी करून देवून आणि महारा मांगांना धमकावून त्यांच्या कडून त्यांच्या बरोबरीन स्वताःची देखील हागणदारी मुक्तता करून घेवून बाकीचा वेळ मोकळाच होता कि त्यांना एडमीन कडून फीड झालेलेया देवांच्या गेमस् च्या म्हणजे लीलांच्या प्रोग्रॅम मध्ये टाईम पास करायला! र ची , जर त्यांच्यातीलच कोणाला हि फक्त राज तिलक लावून एकाला ली FUN FROM OTHER PLANET >!< Reply to a query may help others too! >!< दुनियाने पाखंडी संबोधित भारतीयों पाखंडी बाजपायी ब्रो! बाबासाहेब असल मे ग्रेटेष्ट भारतीय है. उन्हे तुम्हारे सर्टिफिकेट कि कोई जरुरी नही है. पर तुमको उनसे मजदूर और मलिक कि हि परिस्थिती का संकुचित परीघ के अंदर सोचने वाले कार्ल मार्क्स, एंजेल जैसोंके आयात विचार, उसके परे जाके स्पृश्यास्पृश्यता कि समस्याओंसे जुझने वाले बाबासाहेब आंबेडकरजी के संपूर्णतः देसी विचारोंसे जादा प्यारे लगते है. इसमे जातीय अहंकार कि हि गंदी बु है. लोहिया, जो मार्क्सको हि कॉपी कर रहा है, वो भी जैसा दिखना चाहता था वैसे गर सच मे जातीय अहंकार से परे रहता था, तो उसके जाती के निर्माते ब्राह्मण जिस अस्पृश्य बाबासाहेब के अनुयायी बने थे और मनुस्मृती भी सर्वप्रथम जलाये थे, उस बाबासाहेब को हि वो उसका नेता मानता था. उससे उसके चेले बने ये जो यादव और ओबीसी है ना, वे अब जो बम्मन RSS के इशारे पर ही RSS के पीट्टे मोदी द्वारा CBI और NI से पिटने जाने के बाद हि अस्पृश्य कि साथ मांगने जैसे भिकारी बने दिख रहे है, वे बहुत पहलेसेहि अस्पृशोंसे जुड जाते थे. वैसा होता था तो आज ना अप्रत्यक्ष ब्राह्मण संचालित कॉंग्रेस और प्रत्यक्ष ब्राह्मण RSS नियंत्रित बीजेपी का नामोनिशाण भी भारत मे होता था. वैसे भी ब्राह्मनोंजैसे विदेशी स्वल्प संख्यांकोंको बहुसंख्य मुल भारतीय सुपूतोंपे हावी होना, हत्ती पे बकरी कि सवारी जैसा अनैसर्गिक और विकृत हि दिखता है ना? गधा कार्ल मार्क्स उन मजदुरोंके लिये उनके मालीकोंसे लढने निकला था इसलिये प्रभावित गरिबोंके पाखंडी दयालु ऐसे हमारे साम्यवादी व समाजवादी गधे, जिनका नेतृत्व भी आजतक प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष कोई जातीय उच्चता का अहंकारी ब्राह्मण हि कर रहा है, वे गंवार जानबुझकर या सही मे यह समझने मे नाकाबिल दिख रहे है कि कोईभी मजदूर आगे चलकर मालिक बन सकता है, पर कितनी भी हैसियत प्राप्त करने के बावजुद उनकी पुरी जिंदगी मे भी भारतीय जाती संस्था का ना कोई क्षत्रिय ब्राह्मण बन सकता है और ना कोई गांडू वैश्य बनियासे योद्धा क्षत्रिय बन सकता है. इस वास्तवसे सत्य के तहत तो अस्पृश्योंको मानवी मैला उठानेके गंदे कामसे छुटकारा पाना दुनिया के अंत तक असंभव हि था. उन अस्पृश्योंको केवल सबल हि नही तो उनके उपर के क्षत्रिय और वैश्योंसे भी उपरसे छलांग लगा कर उनके उपरके ब्राह्मनोंको भी मात देने के कबिल बनानेका आश्चर्यकारक काम सारी दुनिया मे केवल आंबेडकर हि कर दिखाये है. कल हि देखे ना कैसे पुना के एक शासकीय उच्च पद से सेवानिवृत्त ब्राह्मण औरत ने उसके घर पर खाना बनाने वाली और ब्राह्मण बनने कि कोशिस करने वाली ८० साल कि वृद्धा क्षत्रिय मराठा औरत को ब्राह्मनोंकि नजरोंमे क्षत्रीयोंका कितना निचला स्थान है यह उसकी बेइज्जती करके और उस पर चीटिंग कि पोलीस केस दाखील करके दिखा दिया? मेरा शत्रुत्व केवल पेशवाई राज फिरसे लाने कि चक्कर मे सारे उलटे सुलटे धंदे करने वाले RSS के ब्राह्मनोंसे है. वे असामान्य गुनोंके पूजक और प्रशांशक सुविचारी ब्राह्मनोंसे संख्या मे बहुत कमी है. पर क्रिमिनल बुद्धिके लोग जैसे घट एकजूट होते है वैसे RSS वाले ब्राह्मण है. पेशवाई मे ब्राह्मनोंको पोसने का, उनकी सारी हवस पुरी करनेके कर्तव्य सारे गैर ब्राह्मण भारतीयोंके लिये अनिवार्य बनाये गये थे. सारे भारतीयोंमे केवल ब्राह्मण हि ऐसा समूह है, जो नव आविष्कारक और नवस्वीकारक प्रगतीशील धीट है. इसीलिये कोई अन्य गंवार समूह ने उनकी कितनी भी निचली जाती होने के बावजुद उनके अस्पृश्यता से किंचित उपरी जाती के अहंकार के तहत बाबासाहेब आंबेडकरजी को भले तिरस्कृत माना हो, फिर भी बाबासाहेब आंबेडकरजी जैसे अस्पृश्य के असामान्यत्व को सुविचारी सज्जन ब्राह्मनोंके साथ साथ तो RSS के ब्राह्मनोंने ने भी नवाझा है. आप कहते हो वैसे बाबासाहेब जी कि सभ्यता और सज्जनता को तोड नही इस बात से सभी सहमत है. पर इन RSS और बीजेपी के नेता और कार्यकर्तोंकी उक्ती और कृती गर आप गौर करेंगे तो मेरी कोई कृती तो अनैतिक है हि नही पर उक्ती भी बाबासाहेब कि शालीनता को दाग लगाने वाली नही है. क्यो गाली को गाली कि भाषा मे और गंभीर धमकी को भी फाटे पर फोडने वाले मुझ गरीब पर गंदी भाषा का इल्जाम लगा रहे हो? कहानी १ गम भरी या २ दम भरी क्षत्रीयोंका सालोंसे सम्हाला अहंकार का फोडा फोड हि दिया उस पुणेरी बम्मनिया ने. गंदा मवाद साफ करेंगे या फिरसे बेशरमिसे कॉपी करनेमे जुटेंगे? हजारो वर्षे गोंजारून वाढवलेल गळू त्या फडतूस पुणेरी बमानिनीनं फोडलच शेवटी. घाणीचा निचरा होवू द्यायचा असतो ह्याची तरी माहिती असेल कि परत लोचट कॉपी ? Pune’ Brahman lady burst 1000 years’ loved abscess of egoist high castes’. Will they drain out dirt or preserve it copying old once again? It is useless to expect ghost of whatever you lost पुण्यातल्या बामणीनिनं इंगा आणि लायकी दाखवल्या वर खैरलांजी, जावखेडा अशा अनेक ठिकाणी अस्पृश्यांवर अत्याचार करताना या बामणांना पाय लागू करण्या इतपतच स्पृश्य अशा अर्ध अस्पृश्यांतील वखवखून उफाळलेल्या स्वाभिमानाची सुरनळी करून ते आत्ता काय करतील? <+> TERRORISM & TERRORISTS OF WEST ASIA CONNECTED ALL ABRAHAMIC MAIN RELIGIONS & ITS BLOOD’ CONNECTED INDIAN BRAHMAN OWNED CULTURE OF HINDUISM <+> ||| <+> जुडाइजम याने ज्यू, इसाई, इस्लाम और हिंदू ये दुनिया मे सर्वसाधारणताः ज्ञात धर्म है. हिंदू यह कोई धर्म नही होते केवल एक संस्कृती भर हि है ऐसे भारतीय सुप्रीम कोर्ट का RSS प्रमुख मोहन भागवत इस ब्राह्मण ने भी स्वीकृत फैसला है. फिर भी भारत के ३,१/२% कि आबादी वाले और मूलतः अनार्य वंशीयोंके भारत मे आये सर्व परकीय अक्रमक और शासकोंके पहले के सर्वप्रथम घुसखोरी करके प्रवेश करने वाले, और समस्त भारतीयोंमे एकमेव आर्यवंशिय ऐसे ब्राह्मनोंकि खुद कि प्रस्तावित व ९६,१/२% कि उनसे लगबग १००% जादा आबादी के भारतीय मुल निवासी सपूतोंपर लदी या थोपी ऐसी हिंदू संस्कृती को, अभी भी धर्म हि मानने वाले वोही मूढ मूलनिवासी उसे दुनिया का एक बडा और महान धर्म भी मानते है. उन सर्वथाः परकीय बम्मनोंकी उस हिंदू संस्कृती ने उनमे से हि अलग किये अनार्य मुलनिवासी अछूत लोगोंकी अमानवी जाती प्रथा के तहत उनपर जो होते रहे और हो रहे है, उन गंदे और क्रूर अत्याचारोंको चूप चाप सहते रहने कि मजबुरी को वे केवल मूढ हि बेहद बेशर्मिसे हिंदू धर्म कि बेमिसाल सहिष्णुता संबोधते दुनिया मे ढोल कि जगह अपने पिछवाडे पिटते दिखते है. <+> मुसलमान और इसाई तो जगतमान्य टेररिस्ट है, फिलीस्तान मे आईनस्टाईन जैसी महान हस्ती के ज्यू धर्मीय भी टेररिस्ट और भारत मे हिंदू भी टेररिस्ट दिखे है! <+> एक हिंदू छोडके बाकी तीनोंके धार्मिक तत्वोंमे १९-२० का हि फरक है. वरना उन तीनो धर्मोंका रेतीला, वीरान और दुनिया का सबसे गर्मिला उगमस्थान पश्चिमी आशिया और मूलपुरुष अब्राहम नाम के एक हि प्रेषित है. फिर भी दुनिया भर के लोगोंमे इनमे हि आतंकवाद और आतंकवादी क्यों? और हिंदू अगर हमारे ब्राह्मनों द्वारा स्थापित और संचालित एक संस्कृती हि याने जीवन शैली मात्र हि है तो दुनिया मे अध्यात्म नामके अर्थहीन शब्द के सहारे हिंदू यह एक मानसिक शांती का प्रणेता धर्म है ऐसी प्रतिमा निर्माण करने कि कोशिस मे लगे, परम पवित्र भावके चेहरे रखने वाले उसके संचालक शंकराचार्य और सारे केवल ब्राह्मण हि है वे पुजारी अब हि ऐसे टेररीस्ट क्यू पालने लगे है? या उनके सदा पवित्र भाव के चेहरोंके पीछे पहलेसे हि ‘क्रूरता परमो धर्मः’, मानने वाले टेररीस्ट छुपे है? <+> शायद इनके खून का वो DNA हि अब अपने रंग दिखाने लगा है, जो उस रेतीले, वीरान और दुनिया के सबसे गर्मिले पश्चिमी आशिया के ज्यू, इसाई और मुस्लीम इन तीनोंके खून से मिलता है, और सारे भारतीयोंमे केवल उनमे हि मौजूद है. <+> अब के इस्लाम और गोहत्या के जहाल विरोधी लहर के उद्गाता, हिंदू धर्म निर्माता, संचालक, जातीप्रथा कि चारो जातीयोंमे सबसे उच्ची जात के आसनस्थ ऐसे हमारे परम वंदनीय ब्राह्मण उस पश्चिमी आशिया के केवल मूलनिवासी हि नही तो, इस्लामी पैगंबर मोहम्मद के खानदान से भी जुडे है. यहा अपने आपको कट्टर इस्लाम विरोधी दिखाने वाले, उनके चेलोंको भी मुस्लीम और गोहत्या के खिलाफ उक्साने वाले ब्राह्मण कभी मोहम्मद के पोते हुसेन कि लढाई मे उसकी साथ देने मक्का के करबला तक दौड जाते दिखे है, तो कभी अरबी दर्यावर्दीयों के समुद्री व्यापार से मिलने वाले लाभ कि लालच से केरला मे स्वखुशीसे मुस्लिम मोपला बनते दिखे है. वे मर्द के रूप मे जनम लेने के बावजुद कभी राजस्थान के कोई मुसलमान सरदार को किसी जनाना लौंडे के रूपमे शोहर कबूल करने के साथ साथ इस्लाम भी कबूल करके मीर काफिर इस नामसे भारतका और एक जुलमी मुसलमान सरदार बनते है, तो कभी ख़ुशी ख़ुशी इस्लाम कबूल करके उनकी खुदकी और एक इस्लामी बहामनी शाही कि स्थापना करते है. क्या है यह सब? <+> अगर ब्राह्मन हमे बताते है कि मुसलमान गद्दार और मक्कार है, तो उनकी उन्होंने हि बनाये और उसकी विकृत जाती और अन्य प्रथाओंके साथ हम पर थोपे हिंदू धर्मसे और धर्म जिसके आधार पर महान कहलाया जा सकता है, उस नैतिकता से ऐसी घीनौनी खिलवाड को और उनकि नसोंमे मौजूद मुस्लीम मोहम्मद पैगंबर के खानदानी खून को देखकर तो वे मुसलमानोंसे भी नीचतम श्रेणी के गद्दार, मक्कार और गये गुजरे है ऐसा साबित होता है. उनके भारत प्रवेश के बाद हि उनके हि रास्तेसे भारत मे आनेवाला पहला आक्रमक मीर कासीम भी उनके रीश्तेदार मोहम्मद का हि चेला था और उसके भारत प्रवेश से हि तब तक चंद्रगुप्त, अशोक और हर्षवर्धन जैसे महान सम्राटोंने हजारो सालोंसे जिसे अखंड और अभेद्य रखा था, उस भारत मे पहली बार परकीयोंके शासन का सिलसिला चालू हुआ, जो आगे १२०० साल अंग्रेज, जो मुसलमान और ब्राह्मनोंसे कई हजार गुना सरस सज्जन थे, उनके यहासे जाने तक जारी रहा. <+> ८०० सालोंके इस्लामी शासन काल मे ब्राह्मनोंने गोहत्या या इस्लाम के विरुद्ध आवाज उठाई थी ऐसा दाखिला नही मिलेगा. इस्लामी शासकों के दरबारमे बिरबल और तानसेन बनकर उन्होंने इमानदारीसे नौकरी भी कि है. मुसलमानि शासकोंने भी उनकी एहसान फरामोशी और घात लगानेकी खानदानी आदत भुलकर उनके पैगंबर के खानदान के थे इसीलिये ब्राह्मनोंकी आन, बान और शान कायम आबाधित हि रखी. अगर वे भी अंग्रेजों जैसे प्रगतीशील के बजाय अंशतः भी सज्जन और दिलदार होते, तो ब्राह्मनोंने ५००० सालोंसे जीससे यहाके राज घरानोंको भी वंचित रखा था, वो शिक्षा याने शिक्षित होने का अधिकार ब्राह्मनोंके विरोध कि पर्वाह किये बिना जैसे आंग्रेजोंने मूलनिवासी राजपुतों सहित सारे मूलनिवासी सपूत अछुतोंको भी दिया था, वैसे वो शिक्षा का अधिकार आंग्रेजोंके पहले हि हम भारतीय मूलनिवासीयोंको देते थे. <+> ब्राह्मण खून के हि थे ना वो भी, जो अज्ञानी और जाहिलों पर हि हुकुमत चलानेकी क्षमता रखते है. ब्राह्मनोंके कर्मठ विरोध को नही जुमानते मुसलमान गर कमसे कम हमारे राजे महाराजोंको भी शिक्षित बनाते थे, तो आज तूकडों मे बाटे पाकिस्तान, बांगलादेश तो क्या अफगाणिस्तान तक वैसे सज्जन दिखे मुसलमानि और मुल निवासी राजे महाराजोंके सत्ताओंके साथ भारत अखंड रहता था. कभी सोने कि चिडिया कहलाने वाले भारत का सोना यही पे इधर उधर घुमता तो था, पर समुंदर पार योरप मे यकीनन नही जाता था. अब देख रहे हो ना, कैसे अलग पाकिस्तान के साथ साथ ५५ करोड देके भी मुसलमान ना यहा सुकून से जी रहे है और ना सीमा पार. हां लेकीन शिक्षित व ज्ञानी बने गैर ब्राह्मण भारतीयोंसे जो ब्राह्मनों जैसे मोहम्मद के खानदान के नही है, उनमेसे किसी को भी ब्राह्मनोंके मूक संमती या मदत से लालच तो क्या जबरदस्तीसे भी इस्लाम मे भरती करना मुश्कील हि नही तो नामुमकीन हि होता था. ब्राह्मण जैसे वे जब चाहे उनके हि निर्मित ऐसे हिंदू धर्म को लाथ मारकर ख़ुशी से इस्लाम कबूल करते दिखे है, वैसे हि उन्हे तब मुसलमानों द्वारा अछूत और ओबीसी जनता का जबरदस्तीसे मुसलमान बनाना भी कबूल था. उसके खिलाफ भी उन्हे आज के जैसा आवाज उठाना पसंद नही था. उलटा इतिहास मे उन्होंने गुस्सेमे स्वखुशीसे मुसलमान बने शिवाजी महाराज के जिजा बजाजी निंबाळकरको पुनः हिंदू बनानेकी शिवाजी कि कृती को घोर पाप बताकर प्रखर विरोध किया था. काश्मिरी भी जब फिरसे हिंदू बनना चाहते थे, तो उनको भी विरोध करके हिंदू बनने नही दिया था. अभी भी भडवे सुब्रमण्यम स्वामी सहित RSS के सारे शीर्षस्थ ब्राह्मण नेता जमाई के रूप मे मुसलमान को हि प्रथम पसंती दे रहे है. कही ऐसा तो नही कि प्रखर मुस्लीम विरोध का स्वांग रचाते, उस कपट का एक भाग है इसलिये ब्राह्मनोंमे अलभ्य निस्वार्थी गुण के ब्राह्मण नेहरू को हि झुठ से गियासुद्दीन नामसे मुस्लीम बनाके, हमारी सहानुभूती बटोर कर वे हमे इस्लाम के हि रास्ते पर तो ले जा रहे है? <+> गर मुसलमान जैसी हाथ मे तलवार लेने के बजाय कपट नमकी उनके बगल मे छुपाई छुरी से उन्होंने जाती प्रथा के मदतसे हम मूलनिवासी सपूतोंकी एकजूट इतनी आसानीसे छिन्नविछिन्न कि है तो, वे तो मुसलमाननोंसे भी कई जादा धोकादायक है. इसाई और मुस्लीम तो अनुयायी खींचनेके एकमेव स्वार्थी हेतुसे हि धर्मयुद्ध कि शुरुआत करनेवाले आद्य झगडालु है, जीन्होन्ने ज्यु लोगोंको वहासे बाहर किया था. मूलतः अनीतिमान, स्वार्थी और कपटी ब्राह्मनोंने गर केवल उनकी मर्जीसे सारे मूलनिवासी सपुतोंमेसे कुछ हि लोगोंको अलग करके घोर पिडीत और वंचित रखे अछूत बनाया है, तो वे मूलनिवासी अछूत हि कट्टर ब्राह्मण विरोधी और ब्राह्मनोंको मात देने के मुद्दोंपे सारे गैर अछुतोंमे प्रबल सक्षम थे, ऐसा निष्कर्ष निकालना सही रहेगा. कुत्ते, बिल्लीया और गाय भैंसे हि घरमे पालना घरके बच्चोंकी भी सुरक्षाके हित मे होता है, जो ब्राह्मनोंने जाती प्रथा के आड मे औरोंको करीब और अछुतोंको दूर रखके किया है. वे पालतु जानवर भी मालिक के मर्जीके व्यवहार और गुन अपना लेते है. ब्राह्मनोंके कट्टर विरोधी अछूतोंको ब्राह्मनोंके विरुद्ध स्वभाव धर्म के गुनोंकि वजहसे हि ब्राह्मनोंने दुश्मन माना था. अछूत ब्राह्मनों जैसे अनीतिमान, स्वार्थी और कपटी नही है. जिनके साथ जुडे, उनके साथ मरते दम तक उन्होंने इमानदारीहि निभाई है. किसी को गर अपनी बीबी बच्ची कि सुरक्षा बेरड और निडर होने कि वजहसे किसी अछूत को सौंपनि होती थी तो इमानदार अछूत अपना गुप्तांग काटके अपने मालिक कि मानसिक सुरक्षा का भी ख्याल रखता था, यह सत्य इतिहास है. हिंदू होनेकी हेकडी करने वाले राजपूत भी बुंदी मे मुसलमान बनकर हिंदू धर्म को दूर करते है, तो हर हिंदू के घर कि इज्जत मानी जानेवाली बेटी जोधा का नजरांना मुसलमान अकबर को पेश करते वीरता कि नही पर किसी कमिशन एजन्ट कि हि औकात दिखाते है. वे ठाकूर ब्राह्मनोंके बदौलत हि युपी, बिहार, एमपी इन उत्तरी प्रदेशों मे गोहत्या, मुसलमान व अछूत विरोध का हिडीस प्रदर्शन करते है, पर उनका कोई राजा भया नामका गुंडा मुंबई के उस मुसलमान दावूद के तलवे चाटता है जो गवली वगैरोंसे जादा अछूत छोटा राजनसे डरता है. गर पेशवा के एक ब्राह्मण सरदार गोखले के हाथ के नीचे लढने वाले २८००० कि बडी संख्याके मराठा फौजीयोंको अंग्रेज सेनाके महार रेजिमेंट के केवल ५०० अछूत वीर लढाई के मैदान मे पानी पिला देते है और उस गोखले को उस लढाई मे मारे गये उसके बेटे कि मौत पर एक औरत जैसे रोने लगाया था, तो अन्याय्य रीतीसे और कोई फालतू संस्कृती ने कहा इसलिये गत ५००० सालोंसे सर्वस्वी वंचित कंगाल रखे और अभी भी उसी के तहत पिडीत किये जानेवाले अछुतोंको भी अगर किसी मन्दिर, मस्जीद, गिरीजा घर, या बाहरी फंडिंग का पैसा मिलता था तो वे भी उनकी नामचीन महार बटालीयन जैसे सबसे तगडे टेररिस्ट साबित हो सकते थे.
$फुकटात घावल म्हनुनशान बापलेक धावल, घरा मंदी सुद्धा पेंग्विन आणलं!
$जैसे गत ५००० सालोंसे गैर केवल बम्मन भारतीय जजमानोंसे देवोंके नामसे दलाली ऐसी दक्षणा ऐंठ कर हि खुदका उदरनिर्वाह करना तीन टक्के के बम्मनोंका हक आरक्षित है, वैसे हि सवर्ण और शुद्र ओबीसी उनके आरक्षित संरक्षक सेवक रहे है. तेंणू घोडी पे किन्ने बिठाया भुतनी के?
@ $<+> माशाल्ला क्या चोचले, क्या हरकते और नखरे है इन साडे तीन टक्कें वाले परदेसीयोंके.<+>
$<+> किसीको केवल अपने पैर हि चुमने दिया. <+> तो खुद के साथ उन बदनाम किये लोगोंके हि खून के कुछ लोगोंके लिये भी किसीकी छाव तो छाव पर हवा भी बदनाम कि उन्होंने <+>
$<+> गजब कि बात यह है कि यारो उन्होंने उनके केवल पैर चुमने कि हि औकात बख्शनेसे जो मालामाल और राजा बने दिखे थे, वे उनकी उस पैर छुने कि नीच औकात पर अभी भी नाझ करते दिखते है <+>
$<+> उससे जादा गजब कि बात तो यह है कि उनके वे छटाक भर परदेसी मालिकोंने जिनकी हवा भी सभी मूलनिवासीयों के लिये बदनाम कि थी, वे हि उनके मसीहा बाबासाहेब आंबेडकरजी के पैरों तले झुके दिख रहे है.<+>
$गरिबोंकि सुनो वो तुम्हारी सुनेगा, तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा! झुठ बोल रहे हो. उस भडवे ने तो १५ – १५ लाख का वादा किया था.
तेरी मां बहन मे अब इंटरेस्ट नही. लेकीन आगे फिर मुझे याद कर मै उनका ख्याल राखुंगा.
दुखपुर्वक कहना पड रहा है कि हम कितनी भी डिंग मारते रहे तो भी जब जब जब बीजेपी/RSS का राज आया है तब तब भारत दुर्बल हि दिखा है यह हकीकत है. भले अपने अंदर कारगिल मे घूसकर पाकिस्तान ने हमारे पिछवाडे पे मारी लाथ को उन्होंने उनके लिये कायम अप्राप्य ऐसे विजय दिन नामसे हम पे थोप दिया हो. भारत का दुर्बल रहना, गत भारत प्रवाशीयोंने भार्तीयोंको ढोंगी और पाखंडी कहना, ऐसे बहुतसे दुषनोंके धनी भारतीय और भारत कि इन सब बिमारी कि जड आपके जैसोंके ऐसे व्यवहार व मानसिकता मे है. राम ने सीता को जंगली जानवरोंकि शिकार होने के लिये बेसहारा ऐसी जंगल मे भगा देनेके बजाय उसके प्रभावशाली राजा बाप जनक के पास छोड के आना सहृदयता के साथ साथ मानवियता और राजधर्म तो होता हि था पर अबला नारी जात का वैसा घोर अपमान भी नही होता था. हम राम के उस पाप को नजरांदाज हि नही तो सालोंसे समर्थन भी करते आये है. आपकी लडकी के साथ आपका कितना भी सुविद्य और महान जमाई ऐसे करता था, तो आप उसकी आरती तो नही गाते ना? मोदी और उसके छप्पन छोरे थर्ड क्लास तो मनमोहनसिंग जी जैसे बुजुर्ग का इससे गंदा अपमान कर बैठे है. किसीका पती चोर स्मृती इराणी उनको चुडिया पेहनाने निकली थी. खुद मुस्लीम इरानी बनती है और गांधी घराना स्पष्ट हिंदू दिखते भी मनेका गांधी को छोडकर बाकी उनको मुस्लीम कहते फिरते है. काश्मीर तो गंवा हि रहे है, बांगलादेश को १००० चौ. मैल जमीन दे रहे है, नोटा बंदी काल मे मरे लोगोंको हिजडे कहते है, फिर भी वे कायम फटे पिछवाडे के हिजडे पाकिस्तान को फाडनेवाली रणरागिणी इंदिराजी को बदनाम करनेका एक भी मौका नही छोडते है. बहुत हुवा गैर मार्गसे प्राप्त किया ऐसे रामगुलामोंको कारगिल कि उस झुठी जीत के लिये सराहना. इनको वक्त पर हि रोकना चाहिये. नही तो जॉबलेस भारतीयोंके लिये औरत को भागाने वाले या उससे भागने वले व जानबुझकर कंगाल रखे व अल्प संख्यांक अछुतोंके शंबूक जैसे ज्ञानी को कोई अपराध के बिना मारने वाले हि आदर्श रहेंगे. वे भारतीय उस बात कि डिंग तो मारेंगे लेकीन जब पाकिस्तान चीन घुसेगा तो उन्हे तुरंत हमारी कभी बनी नही पायी वो एकता और अछूत कि यद आयेगी. सुपारीबाज लोग है बनिये. अभी भी दावूद के संपर्क में है. पैसोंकी बदौलत किसी को भी गायब करने के दाखलेबाज भी है. आपके जैसे शरीफोंने थोडा पाखंड किया तो एकबार चल सकता है, पर ऐसे परदे के पीछे रहकर किसीके खून करवाने वाले नामर्द का समर्थन करना अच्छा नही.

संयुक्त जनता दल या किसी जनता दल के नामधारी अध्यक्ष, नामदार शरद यादव जी ने फिलहाल मे विषय छेडा था तब हि मुझे मालूम पडा कि भारत मे दूर दूर से आते कुछ लोग काबड से गंगाजल ढोकर अपने अपने गाव ले जाते है. वे प्रखर धार्मिक कबाडी इन्सान भी होने के नाते, संपूर्ण भारत मे एकनाथ और ज्ञानेश्वर नाम के जो केवल दो हि क्रांतिकारी और निस्वार्थी ब्राह्मण संत हमारे महाराष्ट्र मे पैदा हुए थे, उनमेसे संत एकनाथ जी के पास जो गंगाजल था, वो उन्होंने पुरा का पुरा रास्ते मे प्यास से तडपते एक गधे कि प्यास बुझाने और उसकी जान बचाने अपने हाथोंसे उसे पिला दिया था, यह जो कथा पढी थी उसे याद करते मैने गुगल + पे मासुमियत से यह सवाल पूछा था कि क्या वे कबाडी भी संत एकनाथ जैसी इन्सानियत दिखाते है ? हमारे उस मासूम सवाल पर अन्य +गुगली इंसानोंने टिपण्णी नही कि पर छोटा शकील बडा शकील टाईप के हि किसी बिग मनु ऐसे नामधारी ब्राह्मण ने शायद मेरे ज्ञान मे वृद्धी करनेके लिये बताया कि वे कबाडी ढो कर लाने वाले गंगाजल से हमारे परम पूज्य पिताजी के पिछवाडे को धोने जा रहे है. अर्थात अभी अभी सामान्य जनोंसे नजदिकी बढाने के लियेहि जो किये जा रहे ऐसे ब्राह्मनोंके RSS के प्रयासोंके तहत, ग्राम्यताके अपार अभिमानी बने ऐसे, उस बडा मनु ब्राह्मण ने पिछवाडे शब्द के लिये मटन, पोर्क, बीफ और मच्छी ऐसे स्वादिष्ट पदार्थ चखने के बाद ब्राह्मण भी अपनी बम्मनियता पर जो और चरबी जमा कर सके है, उसके व सवर्णो और ओबीसी झुंड के आरक्षित किये आरक्षित संरक्षण के दम पर उनकी बटोरी धिटाई से खास ग्राम्य शब्द हि इस्तेमाल किया होगा यह आप ज्ञानी जान हि गये होंगे. यह भी बता देते है कि हमने भी उसका आदर हमारी निजी खानदानी प्रखर ग्राम्यता और अकेले भी सीधे रस्ते पे उतर आने कि खासियत के तहत हि किया. पर उनके टिपण्णी पर हमारे स्वर्गवासी पिता हमारे लिये जैसे देव समान हि थे, वैसे वे उसको और उन काबाडीयों को भी लग रहे है, यह साक्षात्कार हमे आनंददायी भी था. ब्राह्मण मनु रचित मनुस्मृति के आदेशानुसार गैर ब्राह्मण भारतीयोंको अनिवार्य किया है इसलिये वे कोई कुष्ठरोग ग्रस्त भी ब्राह्मण के पदप्रक्षालन किये, याने पैर धोये पानी को तीर्थ समझकर पिते है. वैसेहि अन्य देव व शिव पूजा मे लिंग और योनी को एकसाथ धुलाए पानी को भी तीर्थ मानकर पिते है, यह हमने खुद देखा है. और पढने लिखने शुरू करने के पहले कभी कभार दोस्तोंके साथ बेवकुफी से भाविक होते, रास्ते मे सामने आये ब्राह्मण पुजारी उनके पासके तांबे के छोटे लोटे से चम्मच ऐसा पानी हमारे हाथपे भी रखते थे, जिसे हमने भी पिया है. कर भी क्या सकते थे हम हमारी फटी जेबसे मुंगफली खाने के लिये बचाये ५-१० पैसे उसे देने के सीवाय, जब वो भगवान के अधिकार से किसी भिकारी जैसे हम दोस्तोंसे दक्षणा कि मांग करते थे तो? ब्राह्मण को दक्षणा देना सारे गैर ब्राह्मनोंके लिये पुण्य का और अनिवार्य कर्तव्य है ऐसा हर सार्वजनिक सत्य नारायण और गणपती उत्सव के लिये चंदा जमा करने के लिये हम दोस्तोंका इस्तेमाल किये जानेसे हमारे दिमागोंपर थोंपा भी गया था ना. पर काबाडी जो पवित्र गंगाजल इतनी दुरसे ढो के लाये उस गंगाजल का हमारे पिताजी का पिछवाडा धोनेके लिये भी इस्तेमाल करते है यह उस बिग मनु से मालूम होने पर उस तीर्थ का वे आगे क्या करेंगे यह सोच कर मनमे परम घृणा तो जागृत हुई, पर किसी आदरणीय और वंदनीयोंके प्रती पराकाष्ठा कि आदर भावना का अविष्कार करने, ऐसे प्रक्षालित पानी को तीर्थ मानने के उनके श्रद्धा भाव का हमे गर्व भी महसूस हुवा. जाते जाते मनु के पोते के ढेर सारे परपोतोंके वंशज के परपोते ऐसे बडा मनु से यह ज्ञान प्राप्त करना चाहता हू कि पंजाब हरयाणा आदि कुछ राज्य छोडकर सारे बिहारी और उत्तर भारतीय हि ऐसा कबाडी का काम क्यू करते है? दक्षिण वाले मरने के शिवाय गंगाघाट पर ऐसा कबाडी का धंदा करने आते है क्या? ब्राह्मनोंमे दुर्मिळ ऐसे निस्वार्थ गुण के धनी संत एकनाथ जी ने अनुभूती हीन अज्ञात देवोंसे जादा महत्व इन्सानियत को दिया. इंसान और अन्य जीवोंमे कोई भेद नही यह सबक दि. वैसे हि निस्वार्थी और पेशवाई वृत्ती कर्मठ ब्राह्मनों द्वाराहि क्रूरता से सताये गये ब्राह्मण संत ज्ञानेश्वरजी ने बुद्दू माने जाने वाले भैसोंमेसे एक भैसे से भी वेदपठन करवाया और स्थापित करना चाहा कि ब्राह्मण और भैसोंमे भी कोई फरक नही, ब्राह्मण भी भैसों जैसे हि है. ब्राह्मण होते हुए भी वे यह दर्शना चाहते थे कि ५००० सालोंसे ब्राह्मनोंने शिक्षा, एतद्देशीयोंके समुपदेशन और उन्होंने यहा आयात किये देव, और उन देवोंकी स्तुती मे रचित और उनके लिखा पढी के ५००० साल के प्राचीन आरक्षित अधिकार के फायदे के तहत उन्होंने हि लिखित हजारो धार्मिक पुस्तकोंके मध्यस्थ याने दलाल रहने के आरक्षित आधीकारोंके लाभ से हि ब्राह्मण भारत के मुल सपुतोंसे खुद को कई गुना जादा वे अभी जैसे विकसित दिखते है वैसे पर साथ साथ सारे गैर बम्मन मुल सपुत उनके पैर धुले गंदे पानी को भी पवित्र मानते है इस बातसे वे भारत के मुल सपुतोंको तुच्छ मानने वाले गैर ब्याजवी अहंकारी और फिजूल आत्मविश्वासी बने है. उन्होंने भारत के मुल सपुतोंको अज्ञात और अनुभूती विहीन शक्ती कि भक्ती के मायाजाल मे हि व्यस्त रखकर उनके बुद्धी और सोचने कि शक्ती का विकास करने का उन्हे कभी अवसर हि नही मिले ऐसे कर्मकांडोंको प्रस्तावित किये. उन कुंभमेला, काबड, यात्रायें आदि मे भारतीय मुल सपूत हि उनके लिये तीर्थक्षेत्र बनाये गयी ऐसी जगहे भटकते रहे. ब्राह्मनोंके बटवारे या लॉटरी मे जिसके नाम या नसीब मे जिस तीर्थ क्षेत्र कि लॉटरी लगी थी वे ब्राह्मण उनकी जहांगिरी बनी ऐसे तिर्थक्षेत्रोंसे कभी दूर नही जाते थे. वही पर ठिय्या जमाते उनके चरितार्थ के लिये कमाई का एकमात्र स्त्रोत ऐसी दक्षणा कि पेढी खोलकर बैठे रहते थे. ऐसे कर्मकांड या उत्सव हरएक तीर्थ क्षेत्र के ब्राह्मनोंके कुटुंब कि साल भरकी कमाई करा देते है. नाचता है कोई बम्मन कुंभ मेले मे नंगा होकर? ऐसे येडे चाले करने के इव्हेंटोंके स्क्रिप्ट उन्होंने केवल गैर ब्राह्मनोंके लिये हि लिखे है. इसीलिये सोचने और चिंतन करने लिये जो स्वस्थता अत्यावश्यक रहती है, ऐसी स्वस्थता तपस्या के जरीये प्राप्त हो सकती है और वह धर्मविरोधी कृती नही होनेसे ब्राह्मण उसे विरोध नही करेगे, ऐसे सुरक्षित लेकीन चतुर सोच के एक अछूत शंबूक ने जब अपने मानवी मैला सर पर ढोने के गंदे काम से छुटकारा पानेके लिये तपस्या कि केवल इच्छा जाहीर कि तो उससे जादा चालाकी और उसके साथ कपट भी करते ब्राह्मनोंने उनके रक्षक रहे ऐसे क्षत्रीयोंमेसे एक ऐसे राम को शंबूक मारने कि सुपारी दि. देखो ना प्राचीन और पुराण काल मे भी जब सोचने का सारा काम गैर ब्राह्मण उच्च और गैर अछुत जातीयोंने सर्वस्वी ब्राह्मनों पर छोडा था तब अछूत बाबासाहेब आंबेडकर जैसे हि अछूत ग्यानी ऋषी शंबूक ने वोह काम अपने खंदे लेना चाहा था. है किसी गैर ब्राह्मण और गैर अछूत मुल भारतीय सापुतोंमेसे एक भी सपूत कि ऐसे सोचने के अधिकार प्राप्ती के लिये किये बलिदान कि कथा का उल्लेख किसी भी हिंदू धार्मिक ग्रंथ मे? ब्राह्मनोंने उनके पढने लिखने के केवल खुद के लिये हि आरक्षित रखे हुनर के दरवाजे अंग्रेज अगर सारे भारतीयोंके लिये खुले नही करते तो स्वार्थांध क्रूर ब्राह्मण कपट से बाबासाहेब आंबेडकर जी को भी शंबूक कि तरह अपराधी बनाते थे. प्राचीन काल से भारतीय मूलनिवासीयोंके बुद्धी का विकास हि नही हो ऐसी ब्राह्मनोंकी नीती थी, जो आज भी है. वो सारे जिवोंकी नैसर्गिकतःहि विकसित होने कि क्षमता रखने वाली बुद्धी और सोचने कि शक्ती का उन्होंने एतद्देशीयोंके दिमाग से मानो समुल उन्मूलन हि किया है. ५००० सालोंसे उन्होंने एतद्देशीयोंसे जो लाड कराके लिये, झुठ तथ्योंके सहारे अनैतीकता से उनसे जो मोफत सेवाए ली, वैसे लाड और सुविधाए अगर बंदरोंके भी मिलती थी तो ५००० सालोंके प्रदीर्घ काल मे बंदर भी उत्क्रांत होकर आजकि तारीख मे संत ज्ञानेश्वर जी के भैसे कि तरह वेदपठन हि नही तो अपने अलग वेद पुराण और रामायण लिखते थे और ब्राह्मनोंके वेद और पुराण के वाद मे ब्राह्मनोंको हि मात देते दिखते थे. क्या मुंबई मे सारा युपी और बिहार भर जाने के बाद भी वहा कि बची खुची जनता ऐसी बेकार के कामोंमे हि लगी है? क्या हमने इसमे कहा वैसे बंदर उत्क्रांत हो सकते है? अगर हां तो १ ना तो २
$ अगर भारतीय अछूत गत ५००० सालोंसे प्रताडीत करने के बावजुद निष्कांचन नही बनाये जाते, अगर ब्राह्मनों जैसा पैसोंका स्त्रोत उनके पास भी होता, या भारत कि सारी कि सारी जमीने हडपने के बजाय थोडीसी भी जमीन जायदाद सारे सवर्ण ओबीसी उनकी सदसद्विवेक बुद्धी को जागृत रखके अछुतोंके लिये भी छोडते थे, या फिर अब जैसे मुस्लीम, इसाई या घातपातीयोंको जैसे उनके देवोंके और अन्य मुख्यालय ऐसे बाहरी देश और शक्तीया मदत करती दिखती है, वैसे अछुतोंको भी फंडिंग करने वाले कोई मिलते थे, तो केवल इसी धरती से जुडे उसके के मुल सपूत ऐसे अछुतोंपे गत ५००० सालोंसे जो अमानवी और घृणित जिंदगी, जीन परदेसी खून और मुल्क के ब्राह्मनोंने लदि है, उन्हे अछुतोंसे बचानेके लिये उन्होंने जिनको उनके रखवालदार बनाये है, ऐसे एक भी सवर्ण और अर्ध सवर्ण लोगोंमेसे कोई भी आगे अनेकी हिम्मत नही करते थे. महाराष्ट के पुने के भीमा कोरेगाव कि लढाई मे बम्मन पेशवा के गोखले नामके ब्राह्मण सरदार के हाथ के नीचे लढने वाली २८००० मराठोंकि फौज को केवलं ५०० कि संख्याके महार रेजिमेंट के अछूतोंने पानी चखाया था. मर्दानगी मे नीती नियम से लढी जानेवाली लढाई को टालकर किसी ब्राह्मण या अर्ध ब्राह्मण के इशारे और फुसलाने पर हि गली कुची से निकलने वाले और अल्प संख्याके एकाद अछूत पर चाल कर के आनेवाली केवल गैर बम्मन गुंडोंकी झुंडसे और उनके बाप बम्मनोंसे भी अछूत कई गुना जादा सरस साबित होते है. गुणग्राहक अंग्रेझोंने बादमे उनके दुश्मन बने उस बम्मन पेशवा के खिलाफ अछुतोंकी महार रेजिमेंट मैदान मे उतारी थी, जिसने कपटी ब्राह्मणी खून के अनुसार मराठा छत्रपती शिवाजी के वंशजोंमे कलह लगाकर छत्रपती शिवाजीने उनके रोमांचक साहस व धाडस के बल पर निर्मित भारत कि एकमेव मराठा राज गद्दी कपट से छीन लि थी. वो कपटी बम्मन पेशवा ने गजब कि दूरदृष्टी के छत्रपती शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित भारत के एकमेव ऐसे आरमार के प्रमुख दर्यावर्दी सरदार कान्होजी आंग्रे के नेतृत्व मे बनायी थी. वे कान्होजी आंग्रे पेशवा को वश नही हो रहे थे, इसलिये पेशवा ने ब्रिटीश आरमार कि मदतसे कान्होजी आंग्रे को छल कपट से मारा था. गुणग्राहक अंग्रेझोंने उनकी आर्मी के लिये पुरे भारत से केवल महाराष्ट्र राज्य कि हि अछुतोंकी महार रेजिमेंट व मराठोंकि मराठा रेजिमेंट ऐसी दो युनिटे स्थापित कि है. [ये विषयांतर बम्मन कपट नीती समझाने के लिये था उसे थोडा बाजू रखे.] गर ब्राह्मनोंने जो रक्षक उनके लिये आरक्षित किये है, वे रखवालदार ब्राह्मनोंके पैरोंसे हि पानी पिते रहने कि बजाय और ब्राह्मनोंने जिस घोडी पर उन्हे बिठाया है उस आसन कि रखवालीहि करते रहने के बजाय, सवर्ण हि है ऐसे मराठा छत्रपती शिवाजी और शाहूमहाराज, महात्मा फुले, महर्षी शिंदे, कर्मवीर भाऊराव पाटील ऐसे लोगोंसे थोडी भी सोचने कि कला और दिलदारी सिखते उनको साथ देते थे तो, पेशवाई के विकृत ब्राह्मनोंसे ग्रस्त और त्रस्त मराठी जनोंके बल पर शाहूमहाराज ब्राह्मनोंकि सारी विकृतीया माती मे मिला देते थे. ब्राह्मण मोहम्मद पैगंबर के खानदान से जुडे उनके खून के रिश्ते को याद रखकर मोहम्मद के पोते हुसेन कि सत्ता कि लढाई मे उसे मदत करने यहासे कोसो मिल दूर मक्का और करबला दौड गये थे. ब्राह्मनोंने शिवाजी के खानदानसे कायम कपट किया है. छत्रपती शिवाजी के पराक्रम व चालाकी के इतिहास से सारे भारतीय मानो उनके दिवाने बने है. मनुस्मृती ने हिंदू धर्म मे ब्राह्मण कि हत्या करना यह घोर पाप है ऐसा जाहीर किया है. इसीलिये सारे पुरण रामायण जैसी सारी धार्मिक कथाओंमे ब्राह्मण पापी वा व्यभिचारी भी दिखाया होगा, तो भी उसका वध तो छोडो पर छोटी भी शिक्षा मिलने कि घटना नही मिलेगी. ब्राह्मण परशुराम २१ बार पृथ्वी निक्षत्रिय कर सकता है, भोले शंकर को भी पराभूत कर सकता है, पर मरता नही दिखाया. गत ५००० सालोंमे किसी हिंदू तो क्या पर मुसलमान ने भी प्रत्यक्ष मे किसी ब्राह्मण कि हत्या नही कि है. ऐसे माहोल मे ब्राह्मण हत्या के घोर पाप माने जाने कि रत्ती भर भी परवाह नही करने वाले शिवाजी ने एक भास्कर कुलकर्णी नाम के मुसलमान अफझलखान के ब्राह्मण सेवक के टुकडे करके उसे ढेर किया था. यह सही इतिहास के अज्ञानी लोगोंपे महापराक्रमी शिवाजी भी ब्राह्मण का आदर करते थे यह थोपने कि नीती के तहत वे शिवाजी कि आरती तो गाते है, पर साथ साथ शिवाजी गोब्राह्मण प्रतिपालक थे, यह सरासर झुठ रेटने मे कसर भी नही छोडते है. लोगोंके अज्ञान पर हि उनके वर्चस्व कि सारी मदार टिकी है. शाहूमहाराज शिवाजी के हि वंशज है. पर उन्होंने लोकमान्य टिळक जैसे कर्मठ से भी पंगा लेकर उन्हे घुटने टीकाने लगाया था. सार्वजनिक सभाओं के भाषनोंमे ब्राह्मनोंके नीचता के सैंकडो घटनाओंके उदाहरण देते ब्राह्मनोंका पुरा वस्त्रहरण किया था. इसलिये ब्राह्मनोंने शाहूमहाराज सामाजिक आरक्षण के आद्य प्रवर्तक होते हुए भी उनका नाम लेना हि टाला था. १० सालोंसे मै उसके बारे मे उनकी निदा कर रहा हु, तब जाके इस साल उन्होंने प्रथमतःच शाहूमहाराज कि जयंती के अवसर पर उन्हे बधाई देनेकी जाहिरात कि. आचरज इस बात का है कि वे कपटी है इसलिये उन्होंने शाहूमहाराज का नाम लेना टाला था, पर मराठे तो कपटी नही थे, फिर भी शिवाजी का अभिमान जताते आरक्षण कि मांग करते हुए भी आरक्षण के जनक शाहूमहाराज उन्हे याद नही. वे अछूतेत्तर मुल भारतीय सपूत उनके अनुकरणीय, परदेसी और छटाक भर ब्राह्मनोंकि सही कॉपी अभीतक ठीकसे कर नही पाने के न्यूनगंड से ग्रस्त है. उन्हे उनके वंदनीय ब्राह्मण हि अछूत बाबासाहेब आंबेडकर जी को वंदन करते हुए, उनके अनुयायी बनते हुए, ब्राह्मण मनु लिखित लेकीन ब्राह्मनोंसे जादा उनको ही अति पूज्य ऐसी मनुस्मृती को जलाते हुए, और हिंदू धर्म जो ब्राह्मनोंकी हि मिलकीयत ऐसी केवल संस्कृती है, उसका त्याग करते या लाथ मारने जैसे अपमानित करते हुए और मुल भारतीय प्रेषित बुद्ध का धर्म अपनाते हुए देखकर अंदर से वे अचंभित और प्रभावित तो है. पर उनका बम्मनों द्वारा चढाया गया अहंगंड का चोला उन्हे आंबेडकर जी के प्रती आदर व्यक्त करने नही देता है. क्या दिया उन्हे बम्मनोंने, उनके नियुक्त बाबासाहेब पुरंदरे जैसे शारीरिक मेहनत के कामको बखुबी टालकर निकम्मे बैठे रहने वाले ढेर सारे ब्राह्मण कीर्तनकारोंके द्वारा अखंड पिलाए जा उपदेश के डोसोंके अलावा, जिनके जरीये अपने बुढे मां बाप कि भी सेवा टालने वाले लोग, कुष्ठरोगी हो तो भी हर ब्राह्मण के पैर धुले पानी को पवित्र तीर्थ मानकर पीनेकी किसी वेश्या से भी तुच्छ मानसिक रोगी बनाए गये है. जब वे आरक्षण कि मांग कर रहे है, जिसे उनके पालक जैसे शाहूमहाराज से हि प्रेरित होकर आंबेडकर जी ने राज्यघटना मे प्रस्तावित किया है तो, कृतज्ञताका थोडा भी अंश उनकी ब्राह्मनोंकी लाचार बनी प्रवृत्ती मे बचा रहेगा तो हि वे झूठा शिवाजी कीर्तनकार भडभुंजा बाबासाहेब पुरंदरे ने उन्हे आदेश नही दिये तो भी सर्वार्थ से सदा महान ऐसे बाबासाहेब आंबेडकर और शाहूमहाराज कि सिख याद करेंगे. बाबासाहेब कि उंचाई उन्हे खलती हि है इसके सबूत धुंडने दूर जाना नही पडेगा. शायद उनकी खानदानी बद हजमे के बिमारी के तहत वे हजम हि नही कर पायेंगे इस डरसे वे उनके वंदनीय ब्राह्मनोंने भी जिन्हे सर्वकष सर्वश्रेष्ठ माना है उन अछूत बाबासाहेब आंबेडकर जी का नाम उनके मुह पर आने नही दे रहे है. महात्मा गांधी कि हत्या करने के लिये प्रथमतःच ब्राह्मनोंने बम्मन गोडसे को चुना होगा. ऐसे कामोंमे ब्राह्मण सहसा उन्होंने प्रयत्नपूर्वक मठ्ठ और निकम्मे बनाए गये जादातर गैर ब्राह्मनोंका हि इस्तेमाल करते है, जैसा दाभोळकर, पानसरे और कलबुर्गी कि हत्याओंमे किया गया था. भारत मे फिरसे ब्राह्मणी पेशवाई काल लानेके सपने देखनेवाले RSS का हि सहप्रवासी था नथुराम भी. अंग्रेझोंके अधिकतम सर्वांगीन सहवास से उनके संसदीय रितीरिवाज व दिलदारी सिखे व पेशवाई बम्मनोंकि विकृती से असंसर्गित, ऐसे पंडीत नेहरू एक बम्मन होने के बावजुद पेशवा वृत्ती के बम्मनोंको खलता था. स्वातंत्र्य युद्ध कि बागडोर ब्राह्मनोंसे हायज्याक करने वाले बनिया महात्मा गांधीने तो मानो उनको मिरची हि लगाई थी. पर महात्मा कहलाने जानेवाला गांधी असल मे भारतीय अस्पृश्योंका हि सबसे बडा दुश्मन दुरात्मा था. अछूत बाबासाहेब आंबेडकर जी को पुना करार के वक्त उपोषण शुरू करके आत्महत्या कि जो धमकी गांधी ने दि थी, उसे जरा भी भिक नही डालते बाबासाहेब गर गांधी को मरने देते तो अछूतोंका घोर नुकसान करने वाला गांधी गोडसे के बहुत पहले अछुतोंका हि शिकार बनता था. और अन्यथा कर्तृत्व हीन गोडसे दुनिया को अज्ञात हि रहता था. गांधी को कोई अछूत मारते थे तो उस कृती को सबल नैतिक अधिष्ठान मिलता था. भले RSS और कुछ लोग नथुराम कि आरती गाते वोह जिसे मारने जा रहा था उस गांधीसे उसे उपर बतानेके प्रयास करे, फिर भी मारने के पहले गांधी के सामने नथुराम आदरपूर्वक नत मस्तक हुआ था, यह बात नथुराम कि सही उंचाई बताती है. विकृत पेशवाई लाने के संकुचित हेतुसे गांधी का खून किया गया यह सत्य नथुराम के लिये एक कलंक हि रहेगा. बेशक, अछूत बाबासाहेब आंबेडकर जी सर्वोच्चविद्याविभूषित और उस वक्त के पेशवाई उपरांत के कर्मठ ब्राह्मण वर्चस्वीत काल मे बिना किसी आर्थिक स्त्रोत सहारे भी ५००० सालोंसे खच्ची किये गये निष्कांचन अछुतोंमे जान फुंक कर उन्हे इकठ्ठे और योद्धे बनाने वाले सर्वश्रेष्ठ नेतृत्व क्षमता के एकमेव नेता थे, जिसके लीये RSS ने उनका समावेश उसकी प्रातःस्मरण कि प्रार्थना मे किया होगा. लेकीन अंतस्थतः वे अछूत बाबासाहेब आंबेडकर जी कि शुकरगुजारी इसी लिये हि कर रहे होंगे कि पुना करार के वक्त बनिया संधी गांधी को अछूत बाबासाहेब आंबेडकर जी ने उपोषण करते शांती से मरने कि संधी नही देते उसे नथुराम जैसे अप्रेंटीस के हाथो तडपते मरने के लिये जिंदा छोडा था.
I am great proud of Indian P.M. Mr. Modi. He acts smart, gracious & as winner red crown cock husband, as if he is having a fairy look’ wife with issues like incarnations of many of the gods from Hinduism’33 crores gods, though he is proved in open as impotent to produce a single knot’ single Kaurav (from opponent team of Arjuna), in comparison with his type’ impotent ancestor Dhrutrashtra from his revered story of Mahabharata, who without wasting 3 years’ costly time like Modi of his newly wed young teacher wife, with the help of his bachelor but potent grandfather Bhishma, had arranged 100 knots of Kauravas in his wife’ womb. Don’t you too feel like me? If Yes 1 If No 
If you are self respecting boaster, then though you are lured or forced to do so, would you prefer saluting to any bastard who has abused & murdered your father just for a vulgar reason of taller shape of your father had bred inferiority complex in that short shaped bastard? If the answer is yes then it is not strange in case of Indian Hindus, when from last 5000 years dirty fall of their self respect is witnessed, when for begging for his blessings, they habitual abandoners of their parents are seen queuing up to touch, wash & sip foot wash of any leper status’ too Indian Brahman’ foot. But if the answer is no, then you must respect those predecessors of harmless type’ meditation wisher hermit Shambuka, murdered by Lord Rama for a reason of his untouchable caste, if they abused lord Rama for his dirty inhuman act. Is not self respect to be prided? If Yes -> 1 & if No ->2
स्वाभिमान स्वाभिमान कि रट लगाते हो. कोई केवल तुम्हारे बाप कि उंचाई उससे जादा है इसका हि गुस्सा आकर तुम्हारे बाप को थप्पड मारे या उसका खून करे, तो लोग तुम्हे मनानेकी लाख कोशिस करे तो भी तुम तुम्हारे बाप कि बेइज्जती करने वालेकि आरती गावोगे क्या ? जवाब हां मे होगा तो भारतीयोंमे वो कोई नई बात नही है. अपने बुढे मां बाप को भी रस्ते पे हकालने वाले ऐसे तुम जनाना स्वभाव से भी नीचे के स्तर पर उतरके कोई कुष्ठ रोगी ऐसे भी ब्राह्मणके पैर धुने के लिये और उस पानी को पिनेका भाग्य मिले इसलिये कतारोमे खडे रहे दिखते हि हो. तुम क्या स्वाभिमान का महत्व जानोगे? अगर पहले सवाल का जवाब ना है तो, आत्मशुद्धी के लिये बहुत उपयुक्त है ऐसा जिस मेडीटेशन का डिंडोरा ब्राह्मण और पंतप्रधान मोदी दुनिया को दिखाने के लिये पिट रहे उस मेडिटेशन कि केवल इच्छा व्यक्त करने पर शंबूक ऋषी का खून उसकी अछूत जाती कि हि वजहसे करने वाले राम कि आरती शंबूक ऋषी के अछूत वंशज क्यू गाये? न्यायिक तत्वोंके तहत तुमसे जादा स्वाभिमानी अछूत तो राम को गाली देने के भी हकदार होते है. क्या स्वाभिमानी होना अपराध है? अगर १ हां Yes २ ना No
तुळशी आश्रयाने गिळलेल्या पाण्यावर फुलारलेल्या धोतऱ्याची सारी तोतरी तुळशी वरच मुताय लागली चांग भल चांग भल करीत मशाली च्या जागी दिवट्या पेटवाया जागली.
इमान से आपकी खामोश साथ कह रही है हमे कि हम जोड दे अपने हाथ. मांगेंगे हजारो सालोंके उम्र कि दुवा आपके लिये परवर दिगारसे, मन्शा यही रहेगी कि आपके लिये दुवा मांगने हम भी पैदा होंगे हर बार फिरसे. ----- Happy -- Birth Day --
# हर बार अपने पूराने आशिक कि हि आरती गानेवली प्रेमिका से उब गये प्रेमिक ने कार चलाते चलाते आखिर मे साथ बैठी प्रेमिका को सुना हि दिया, कि गर तूम्हारे पुराने आशिक तुम्हे इतने प्यारे थे तो उनके हि भजन गाते चटाइ पर बैठना था.
Beheading is oldest & common act of punishing or avenging nowadays. Though it is serious, it can’t be labelled as shameless abnormal & inhuman cruel official made acts, like removing eyes, including private too, cutting of all organs of any man or woman, putting melt lead in their ears, throwing a child too in boiling oil, for making them forced eunuch, demanding a boy or man for forced abnormal sex, or demanding wives, daughters, sisters & grand mothers. No, don’t rush ahead to abuse to many gangs of Muslim terrorists like ISIS, Al Qaida etc; from world’ hottest West Asian region, which is a birth place too of all main Abrahmic faiths’ prophets, like Mosses, Jesus & Mohammad & whose followers introduced crusade fights tor collecting more followers & lands. It is natural if European & West Asian peoples are from same Aryan blood’ peoples’ gangs who, after emerging first at coolest & barren North Pole, in efforts of their survival during their journey to West Asia, had developed hereditary qualities of snatching, robbing & fighting with each others. According to my observations published first through internet & later supported by environmentalist Madame Perry’ research too, hottest West Asia’ heat too helped them to be of hot tempers & abnormal possessives. Yet, though dirtiest bastards they are, they too sure had hated to treat or punish their enemy too in such abnormal sexual & dirty inhuman ways, as described above. <> It is an official list of types of punishments, prescribed for one group of native Indians, for their offences like falling of their shadows too on others, including their colleague natives’ life less belongings too. That native group of Indians is known as Achhuts or Asprushy in Indian languages, meaning dirty to touch or Untouchable. Group named Asprushya or untouchable is a bottom’ group or caste, of caste system of Indian Hinduism, which has 4 main castes. To make them untouchables for all, after separation of 1/3 of natives from their colleagues, remaining natives too were divided into 2 groups, i.e. castes, placed above untouchables. Thus Hindu caste system consists of 3 castes made from natives separated from each other. Which is 4th caste & who divided native Indians in such dirty & inhuman way? Of course as a Hindi proverb say, which means, “a dog never eats another dog flesh” being human & having experienced golden & glorious time of rulings of true emperors like Asoka the Great, ethical & advance civilized native Indians were sure not supposed to be of lower ethical qualities than any dogs, who otherwise too are respected for their quality of best honesty & hate for eating flesh of colleagues. Native Indians were divided such brutally by Hindu’ caste system’ topmost caste of Indian Brahmans, who are first intruders in India, before entry of Greek emperor Alexander the great. Alexander too had crossed a river Sindhu of virtual border of Indian Territory, like Brahmans. Indian Brahmans’ group too is one of the gangs of the Aryans, who had emerged on North Pole & travelling along land’ way, camping in West Asia & crossing a river named Sindhu of its border, had entered in India. Word “Sindhu” is pronounced as Hindu too, in Indian languages. Among all Indians Brahmans only are of pure Aryan blood & DNA. Native Indians are either of Mongoloid & Negroid blood or mixture & hybrid of both. Before entering in India, Brahmans too had camped lastly in Abrahmic faiths’ birth place, West Asia. They introduced Hindu word in Indians, which is actually their nomadic Aryan gang’ identity for their European & West Asia’ colleagues, as Sindhu river crossers, turned into Sindhu or Hindu in abbreviated form. Probably Brahman Aryans must have some strange or veer qualities, if they could not be comfortable or accommodate themselves in sparsely populated cool Europe, with European Aryans, & probably were unbearable for Western Asian gulf’ Aryans too, if they had to run away from there too, to take shelter in India. Probably they were only Aryans of most cunning, selfish & treacherous qualities than rest of Aryans. Still Brahmans are only 3, ½% of India’ whole population, like time of their entry in India. But in spite of their smallest number’ & foreigner’ status, now too they are revered by majority of Indians, who claim to be of Hindu religion. How Indian natives were impressed or possessed by small numbered foreigner Brahmans is not hard to diagnosis. But we shall leave it aside for the time being. Brahmans introduced their own veer culture as a religion, naming it with word Hindu, which was actually that past nomadic status’ Aryans’ vulgar identity. The fact that majority of natives respect them now too, notifies how natives are possessed or impressed of them. Hinduism in which natives only are divided, being topmost caste’ providing all types of services natives served them free as free slaves, is actually a mere life style or a way of their living or a cultures only of Brahmans, is the latest verdict of Indian Supreme courts, accepted too by prudent & self less majority’ of Brahmans. During their lengthy & hard journey from North Pole to Europe, Nomadic Aryan Brahmans had developed script of their used languages. They wrote & read books in their invented languages, which were strange for natives. Till British rulers in India opened doors of education to bottom’ untouchables too, Brahmans never taught that art of writing or script of their languages to natives, which were impressed of them strange features & styles. Till then Brahmans were successful in imposing on natives, the language & its scripts as gifts of god & they only were mediators of god. That Brahmans created impression on many natives’ minds is still intact & hereditary. One most wily Brahman named Manu was not to loose chance of binding the natives permanently to serve Brahman. Imposing it on natives as most revered gift from god, he scripted code of conducts of Hinduism for natives, in a book named Manusmruti. Still natives revere Manusmruti as gift of god. Under its rules & provisions made strictly binding on natives, Brahmans were to be treated as next to god & hence all natives were made bound to fulfil every demand of every leper status’ too Brahman, free. Irrespective of their screwier’ status as untouchables too, abnormally facilitated Brahmans, were seen demanding their own screwing too, from natives. Yet, till world’ 2nd war’ troubled British started packing of departing from India, Brahmans exhibited hatred to mix with native Indians. Hence those 2 groups of natives, whom Brahmans had not made all round untouchables, were permitted to touch feet only, of any leper status’ Brahman too, by their hands or heads only. That’s why great Maratha king Shivaji too was seen blessed by touching his fore head, with left foot’ thumb by one Brahman priest Gagabhatt. Peoples of main 3 groups of natives were divided further by forming more than 100 sub & semi castes in each group. But Brahmans did never make any division in their group. {I put few easy mathematical problems for you to solve. 1 If India’ all natives are divided in 3 & number of untouchable group’ peoples is 33% of all population of India, Brahmans are 3,1/2% then, non untouchables 2 groups have equal number of natives, then what can number of peoples of natives 2 groups, who are not untouchables? 2 If all 3 groups (caste) of natives are divided further in 100 sub & semi castes, then what will be number of natives in smallest group of natives’ each main caste? 3 Is the number of natives of smallest group’ natives is bigger than Brahmans total population?} Not before their blood related Prophet Mohammad’ faith’ follower & India’ first intruder raider Mir Kasim only, but before Greece’ Emperor Alexander too, Brahmans’ are first intruders in India from West Asia. Research says that, DNA of blood of Islam’ Prophet Mohammad’ family matches with that of Brahmans’ blood. Later action of rushing of Brahmans to help Mohammad’ grand son Hussen, in his war for crown & property from distant India to Karbala in Mecca, stamps truth of relation of Hindu Brahmans with Islam’ Prophet. Hussen had honoured them helping Brahmans, by naming them as Husseni Bammans. Great Irony is Brahmans are founder & owner of Hinduism, which native followers are seen made great enemies of Islam. @@@ <> As Hinduism’ heads Brahmans’ imposed untouchable’ status on exactly one third big population of natives separated from their colleagues, is bold & unique example of dirtiest cruel, bastard abnormal & inhuman quality in mankind. All groups of natives were endorsed with selective duties of providing over all free services to Brahmans. Falling of untouchable’ mere shadow too on others, their pets & belongings is held as an offence. Obviously falling of shadow too of any untouchable on other is bound to be unbearable & intolerable for others. Accidental touch or falling of shadow too of any untouchable on others is decided as an offence of that untouchable & great religious sin of other, who was touched by any untouchable or by his shadow. Above described punishments were made official for untouchables for such trivial offences of contaminating texture of skin of the natives & his belongings, by touching them, who luckily were not pushed in untouchables’ group by Master Brahman. Yet sinner, i.e. untouchable touched that poor victim too was not spared so easily, by making him too liable for punishments of monetary fines of nature depended on gravity of his sin, if he was a native. On such occasion untouchable touched Brahmans were not supposed to pay any fine like natives. Simply bathing while chanting useless Mantras & putting some drops of cow’ urine were sufficient to wash off Brahman’ sin of touching to an untouchable. Were untouchable made native more poisonous than any venomous viper, if a simple antidote is sufficient to cure the patient from snake’ poison & snake too is welcomed to live further honourably? Big joke is other two groups too otherwise are made untouchables to Brahmans, as Brahmans had permitted them to touch & wash feet only of Brahmans. They mad were so proud of that honour of touching & washing Brahmans’ feet, that they started priding in sipping that dirty feet washed water too as holy water. Above described dirty inhuman punishments are legalized in a book called Manusmruti. Manusmruti is like code of conduct or constitution of Hinduism & most revered book for Indians, who claim to be of Hindu religion. Of course it is written by one Mr. Manu, who himself was a Brahman & is being imposed on Hindus as originator of human race on earth, like Adam & Eve. I have no idea, whose womb he used for birthing /breeding more human. Till it was exposed as a mere life style or culture of Brahmans only, of only 3, ½% of total population of Indians, from last 2- 3 thousand years, till now Hinduism culture’ image was cunningly being projected & imposed as a religion of great philosophy. Manusmruti has codified all rituals to be performed only by Brahman on every occasion of birth to death of Hindus. Purchase or inaugurations of any minor too new profession & missions too were made bound to be blessed by Brahmans, under prescribed rituals. Till British rulers only opened education for natives in India, education & art of writing & reading was exclusive authority of Brahmans. They had not offered secret of that art to kings from natives too. Hence they easily could impose any script of them as gifts of gods to over pretentious pious natives. Book Manusmruti too was imposed as foremost gift of god of Hindus. To provide maximum facilities & free services from natives Mr. Manu has imposed Brahmans as next to god for natives. Hinduism’ above referred 4 groups of caste system has not offered any vulgar or smallest too laborious job to Brahmans. To fulfil their all types of demand was made bound duty of peoples of natives divided in 3 groups. Like above inhuman punishments Brahmans had forced wiping of sin of road or land on which any untouchable walked or move by a broom tied to his waist on back side. How this bastard cruel & inhuman nature dirtier than most defamed Muslim terrorists appear in Brahmans? Trusted knowledge of Brahmans’ blood relations with family blood of Prophet Mohammad & hence they had rushed to help Mohammad’ grand son Hussein in Karbala & Hussein had honoured them by offering degree of Husseini Brahman is some what all right to connect their hideous nature with that of Muslim terrorists, but what about their invention of human untouchablity? Wherefrom that worst dirty idea struck them, which none of Aryan gangs settled in Europe & west Asia had drove off insisting for equality in Human? Only reply to these questions is Brahmans are most bastard cruel & wily among all Aryans, settled in Europe & West Asia. They are Bastard than Hitler. They are dirtier than Osama bin Laden or Bagdadi. Probably that’s why they had to run further toward India, when Europe’ & West Asia’ Aryans opposed their bastard dirty nature. 1 Correct? 2 Disputable? (parliamentary discussion requested) 3 Wrong? (nothing is expected) Brahman are requested gently not to abuse! .
X प्राणी जगत मे किडे मकोडे भी हो सके उतना उनका अस्तित्व छुपानेकि हि कोशिस करते है. पेट और उसके निचेकी दिमाग मे पैदा हुई खुजली या भूख जब उन्हे सताती है, केवल तब हि उसे मिटाने के लिये वे जब खाना या किसी नर या मादा को दबोचने जाते है, तब हि शायद उनका अस्तित्व दिखना हमे नसीब होता है. लेकीन किडे मकोडे से भी बद्तर अस्तित्व के बहुत सारे मानवी किडे मकोडे बेवजह हि उनकि फटीचर दयनीय स्थिती का भी प्रचार करते उनका नगण्य अस्तित्व औरोंको भी मालूम हो इसके भरकस और मरने तक के भी प्रयास मे लगे राहते है. जैसे हरदम हेड लाईट चालू रहने वाली आधुनिक बाईक के एक्स्पर्ट पोश रायडर का ध्यान अपनी ओर खींच ने के प्रयास मे रास्ते का कोई भी फटीचर उस बाईक कि हेड लाईट चालू रह्नेसे बाईक कि ब्याटरी उतर सक्ती है ऐसी झुठी चिंता दिखाने के लिये उस रायडर को चिल्ला चिल्ला के अगाह करता है.
Among living things smallest insect is ok but parasite virus too tries to hide its presence. When they feel hungry of food or sex, then only some times they are seen or a special search is to be made to detect them. It is not such in case of vulgar insect’ status’ human, who die to project their otherwise socially useless existences. It reminds me how falsely concerned of discharging of battery of a latest technology’ new bike with default burning head light, pretending to caution but in reality, to pull attraction of a posh expert bike rider toward him, a beggar status’ pedestrians try too yell loudly in public.
They fuckin, especially of West Asia’ hottest Sahara desert region’ Abrahmic faiths followers, came here with big guns, swords & army, to loot & rule India for 800 + 300 years respectively. Hinduism’ founder owners, forced warriors made 5000 years’ old inactive priest Brahmans started to fill hatred in native against last foreign rulers, when they wily sighted signs of departure of world war 2nd troubled British, who spoiling those cowardice priests’ plans of becoming warriors & kings too in India, had humiliated defeating & pulling down them from their treacherously obtained throne. Parliamentarian British gentlemen left India without dancing Bhangra or Hip hop, their Abrahmic faith’ counter part too agreed to depart by robbing ransom in shape of Pakistan + 55 crore Re. Hinduism founder & owners Brahmans seem luckier than both foreign intruders & rulers who were made hateful for natives by them, if still those priest Brahmans are respected as gods by natives, though those priests too are originally from place where prophet Mohammad was born, though those priests only are of pure Aryan & Mohammad’ family’ blood among all Indians, though they are foremost intruder in India before Alexander the great, though they now are seen projecting their image as great hater of Islam, but remembering their blood relation with Mohammad’ family had rushed to Karbala in Mecca to help Mohammad’ grand son Hussein & were honored as “Husseni Bamman & instead of big arms to kill natives like later intruders intruded India equipped with fool making imaginary & strange stories of gods, sun, earth, mountains, rivers, oceans, ditches, their 5000 years’ old preserved right of education & secret art of writing & reading, to lure or fear to superficially great pious but dramatic nature’ natives, to use them as all purpose free slaves by dividing them in descending order of importance of their use, & to rob them by the mean of Dakshna i.e. commission & gift to the god claiming to be mediator between gods & natives.
X रेतीले अरबस्तान के जन्मे अब्राहमिक याने जिनके मुल प्रेषित एक अब्राहम थे, और जिनसे बाद मे ज्युईश, इसाई और इस्लाम धर्म पैदा हुए, उन्मेसे मुसलमान और इसाई तो यहा पर तलवार, तोप और तराजू भी लेके आये थे. फिर भी ८००+३००= १२०० साल भर हि राज कर पाये. लेकीन ५००० साल पहले उसी गरम रेतीले अरबस्तान से सिंधू नदी पार करके जिन तीन टक्के के विदेशी शुद्ध आर्य वंशीय टोली ने सर्व प्रथम भारत मे प्रवेश किया था उनकि गुलामी भारतीय अभी भी छोडना हि नही चाहते है. वे ना तलवार साथ लाये थे और ना हि कोई तोप. अंग्रेज आने तक उन्होंने यहां के राजाओंको नही बख्शी थी ऐसी केवल उनके लिये हि गत ५०० सालोंसे आरक्षित रखी थी वो लिखा पढी कि कला और अरबी कथाएं जैसीहि सुरस लेकीन धार्मिक स्वरूप दि हुई सरस सुगम कथाओंके साथ साथ वास्तव मे उनकी कल्पना शक्तीसेहि निर्मित ३३ करोड देवोंको मूर्तीयोंमे रुपांतरीत करने वाली सिर्फ अजोड कल्पना शक्ती, यही अभी भी उनके हत्यार रहे है.
एक हि असली मराठी पंतप्रधान व राष्टपती देवू न शकणारे वा स्वताः चे हक्काचे सीमावर्ती प्रदेश भेकडां कडून अद्यापही परत मिळवण्यात असमर्थ दिसलेल्या सगळ्या समर्थ दासांनी स्वतःचे आडनाव एकसाथ “खेकडे” असे बदलले तर मराठी जनांसाठी समानता थोडीच उंबराच्या फुला सारखी अप्राप्य गोष्ट आहे?
# भीडता हु उन औरोंसे जिन्हे भीडने कि औकात हमारे ऐरे गैरोंमे नही है. वो भी लोहा मान लेते है हमारा जब हम उनसे भिडते है.
# बाजपायी जी बहोत आभारी हुं कि आपने भारतीयोंकी सार्वत्रिक इकजूट मे अस्पृश्यता सबसे बडी बाधा है, यह शराफत से कह दिया. मै सभी ब्राह्मनोंके खिलाफ बिलकुल नही हू. रानडे आगरकर गोखले साने गुरुजी और डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के अनुयायी बनकर जीन्होंने अस्पृश्यता कि जड ऐसी मनुस्मृती को जलाकर बुद्ध धर्म अंगीकारा ऐसे ब्राह्मण मेरे लिये सदा आदरणीय है और रहेंगे. दुख इस बात का है कि जो गैर ब्राह्मण अब भी अस्पृश्योंके खिलाफ और अत्याचारी है, वे उसी घीनौनी अमानवी मनुस्मृती को प्रमाण मान रहे है. ब्राह्मनोंके पैर धुले गंदे पानी को भी कोई निस्सीम पतिव्रता के स्तर से भी नीचे गिरकर पिने के आदी या रोगी बने गैर ब्राह्मण जब तक ज्ञानी और मर्द नही बनेंगे तब तक सार्वत्रिक इक्जूट असंभव है, जो गोखले कि नजरसे किसी राष्ट्र का बल होता है. उनके उपरका ब्राह्मण दत्त उच्चवर्णीय होने का भूत जब तक उतारा नही जाता तबतक अस्पृश्यता खतम नही होगी. तबतक सार्वत्रिक एकजूट असंभव है. तबतक भारत सर्वार्थ से बलवान नही कहलाया जा सकता. यह उन पागल ब्राह्मण भक्तोंके उपर ब्राह्मनोंने लदाया भूत उतारनेका इलाज ब्राह्मनोंके हि हाथ मे है. एकबार वे जाहीर करे कि ब्राह्मण मनु रचित मनुस्मृती यह एक पाखंड था. हमारे पास बुद्ध है, महावीर है, गुरु नानक है. हम क्यू इस्लामी, इसाई या ज्यू बने. पैसोंके लालची गर मूलनिवासी बुद्ध को हि अपनाने वाले बाबासाहेब आंबेडकर होते तो इसाई, मुसलमान तो उनके द्वार पर पैसोंकी बोरिया लेकर खडे थे. ब्राह्मण हि आपके जैसी सौजन्यता दिखते है. गैर ब्राह्मनोंका दिमाग कहा उतना विकसित हुवा है, जबकी आंबेडकर ने उनको हि नही तो ब्राह्मनोंको भी मात दि है?
# मनाशी खुणगाठ बांधा कि पुढील वर्षी बुद्ध जयंती दिनी १४ एप्रिल रोजी एक निळी दिंडी बाबासाहेबांच्या जन्म गावी महू हून पंढरी च्या विठोबा च्या दर्शना साठी निघून पोहचेल. कळू द्या लोकांना कि विठू राया हि मुळात बुद्ध मूर्तीच आहे, जी मुसलमान प्रेषित मोहम्मद याचे नातेवाईक अशा मुठभर परकीय ब्राह्मणांनीच बुद्धास दक्षिणा प्रिय नसल्यानेच फुकट्या ब्राह्मणांस दक्षिणा मिळण्या साठी विष्णू अवतार म्हणून विद्रूप करून विठ्ठल रुपात परिवर्तीत केली आहे. ब्राह्मण बडव्यांच्याच तर ताब्यात होता तो विठ्ठल काल पर्यंत. उत्तरेतील बाबासाहेब भक्त अशीच दिंडी लुम्बिनी वरून बुद्ध गये पर्यंत काढतील. सार्वत्रिक बुद्ध रायाचाच जयघोष दुमदुमेल. व हिंदू संस्कृती योगे थोपलेल्या ब्राह्मणी विकृत अधिपत्यास सुरुंग लागेल.
# जयसिंग राजपुरोहित! अबे राम गुलाम याने के राम पूर्व विष्णू के आदरणीय सुव्वर महोदय के अवतार के अनुज आपकी हरकते और वक्तव्य सुव्वर जैसी हि है, पर ब्राह्मण होते आपका दिमाग विष्णू के सुव्वर के अवतार के पाह्लेके अवतार कछुवे महाराज से भी जादा मंद दिखता है. कॉपी पेस्ट के चांसेस तो तुम लोगोंने विद्या प्राप्ती के गत ५००० सालोंसे खुद के लिये आरक्षित रखे अधिकार का गैर इस्तेमाल करके सुव्वर के पिल्लों जैसी जती रामायण, महाभारत, गीता और वेद जैसी काल्पनिक, अतार्किक व ब्रह्मा का अपनी कन्या से संभोग करने जैसी बहुत सारी अनैतिक सुरस कथाओंके सहारे तुम हि लेते हो. तुम छुपाने कि कोशिश मे लगे हो ऐसी उन विकृतता व अनैतिकता तो हम केवल खुले आम कर रहे है, जो तुम्हारे पैर धुले पानी को भी तीर्थ स्वरूप मानके पि लेने वाले रोगी भारतीयोंको खुद का असली सामर्थ्य पहचाननेमे अहम मदतगार हो सकता है. इस्लाम के प्रेषित मोहम्मद के रीश्तेदार तो तुम ब्राह्मण हो. वो रीश्तेदारी निभाने ब्राह्मण उसके पोते हुसेन कि जंग मे उसे मदत करने मक्का मे करबला मे भी गये थे. हुसेन ने उन्हे हुसेनी ब्राह्मण नाम देकर नावाझा था. इस्लाम के करीबी तो तुम हो. हमारे लिये तुम्हारे उस रेतीले सहारा कि पैदाश के ज्यू, इसाई और मुसलमान धर्मोंसे हजारो गुना जादा नैतिकता वाले बुद्ध, महावीर और गुरु नानक जैसे मूलनिवासी है, जिन्हे हम अपना लेंगे. तुम तो पैसोंकी लालच मे केरला मे मुस्लीम मोपला भी बने हो. वक्त आने पर हम मूलनिवासीयोंके बजाय तुम्हे हि इस्लाम या इसा अपनाने मे शर्म नही करते हो, इसका इतिहास साक्षी है. कर लो मजे जबतक हिंदू यह धर्म नही होते केवल तुम्हारी अपनी लदी संस्कृती हि है, यह सत्य तुम्हारे चुतीये बने लोगोंके समज मे नही आता है तबतक.
# अस्पृश्यता यह हिंदू संस्कृती कि देन है. दुनिया मे अजोड है फिर भी अमानवीय और घृणित है. हिंदू यह धर्म नही और केवल एक संस्क्रुती हि है ऐसे भारतीय सुप्रीम कोर्ट और RSS प्रमुख वंदनीय मोहन भागवत भी जाहीर कर चुके है. उस संस्कृती के तहत मूलनिवासीयोंमे विभाजन करके जनम भर केवल उनसे हर बात पे दक्षणा के नाम पर पैसे ऐंठ कर खुशहाल रहे भिकारी हो तुम. अस्पृश्योंको यहा गुलाम बनाके उनके उप्पर अपने पिछवाडे मे दम नही इसलिये पैर छुने कि हद तक हि स्पृश्य बनाये रखे अन्य मूलनिवासीयोंके जरीये अत्याचारित रखने के बजाय निग्रो गुलामोंकि तरह उन्हे भी बेच देते तो बुद्धिमान अस्पृश्य निग्रो ओबामा के पहले अमरिका के प्रेसिडेंट बन सकते थे. तुम तो पैगंबर मोहम्मद के रीश्तेदार हो. सभी मुसलमानोंको जमाई बनाके बैठे हो. वो रीश्तेदारी निभाने मोहम्मद के पोते हुसेन को मदत करने यहासे मक्का मे करबला तक दौड के गये थे. यहा हर परकीयोंकीहि नौकरी इमानदारीसे कि है. अंग्रेजोंने तुमसे छीनकर शिक्षा का अधिकार मूलनिवासीयोंको दिया. वरना तुम्ह्ने तो उनके राजाओंको भी अशिक्षित हि रखना चाहा था. वे शिक्षित मूलनिवासी उस शिक्षा का महत्व जान हि नही रहे है. वरना वे तुम्हारे पैर धुले पानी को आरोग्य घातक है ऐसे जान सकते थे, और उसे तीर्थ स्वरूप पिना बंद कर देते थे. खैर मुर्गे ढकनेसे सुरज का आना बंद नही होगा. जब असली सुप्रभात कि जानकारी उन मूलनिवासीयोंको होगी तो तुम्हे भागना भी मुश्कील होगा. योरोप वालोंने हकाला तो रेतीले अरबस्तान मे आये. उन्होंने भी तुम्हे परम स्वार्थी जानकर वहासे हकाला तो भारत आ गये. यहा पर भी स्वार्थ हि जगायां. राम हि तुम्हे बचाये स्वार्थीयों.
# @ Once again in open for Great MARATHI king Chhatrpati Shivaji Bhosale’ last name holder => ब्राह्मनोंके कॉपी केट केवल अंग्रेज अनेके बाद हि सारे गैर ब्राह्मण भारतीय मूलनिवासी हिंदू राजा भी शिक्षा प्राप्ती के अधिकारी ठहराए गये. वरना ब्राह्मण के कहीसे भी निकली आवाज पर मम बोलना हि गैर ब्राह्मण हिंदूओंका बंधनकारक बनाया गया कर्तव्य था. और ये सब बंधनोंकी जड वो मनुस्मृति है. उसकी घ्रीणता समझने कि औकात कोई गैर ब्राह्मण मे शिक्षा के अधिकार प्राप्ती के बाद भी अभी भी नही आयी है. तुम तो उनका लोहा मनोगे हि, अगर ऐसी कोई पौराणिक बाल कथाये भी तुम्हारे कल्पना शक्ती के परे कि बात रही है तो. दाखिले देने के लिये तुम्हे ब्राह्मनोंने लिखित साहित्य का हि सहारा है. जांच कर बता तेरे पास ब्राह्मणी साहित्य के अलावा ब्राह्मनोंकी आरती गाने के और साधन है क्या? शिक्षा का अधिकार प्राप्ती के बाद इस विज्ञान युग मे गर तर्क करने कि भी शक्ती कमा नही पाये हो तो किसी वैद्य के पास जा और जांच यह भी कर कि तुम्हारे DNA मे ब्राह्मनोंके पैर धुले पानी कें मल के अंश अनुवांशिक तो नही बने? खैर पसंद अपनी अपनी. किसे गाय के गोबर से हि लगाव है तो गाय वाला उसे गाय के मलमूत्र को पी और खा कर साफ करने वाले मुफ्त मे मिल रहे है, ऐसे सोच कर खुश हि होगा. मेरे पास गये होती तो ऐसे गोबर, गोमुत्र के शौकीनोंको बढावा देने अनेक गो सप्ताहोंके इव्हेंट रचता था. दुर्भाग्यवश ५००० सालोंसे सारी जमीने तुमने कबजोंमे करके रखी है और संपत्ती ब्राह्मनोंने मंदीरोंमे दबाके रखी है. तो कहासे हमारे पास खेती होगी और खेती उपयोगी गाय भैंस जैसे जानवर? अस्पृश्य विरोधी हवा देखकर बस ओपन केटेगरी मे अपना हुनर सिद्ध करके दो चार फोर व्हीलर और एकाध टू व्हीलर से हि काम चला लेते है हम. साला रंडवा मोदी तो हमे सतानेके मे ब्राह्मण से भी जादा कपटी और चालाक निकला. पेट्रोल के भी दाम बढा दिये और खानेके भी. खैर फिर भी हमारे जैसे ब्राह्मण और उनके पैर धुले पानी प्रेमी गैर ब्राह्मण चेलोंसे, सच्चे स्वाभिमानी ऐसे हमारी तरक्कीमंद जीवन शैली जारीही रखेंगे. एक सलाह है ब्राह्मण और हमारे जैसे तरक्की पसंद बनो. देशकी और तुम्हारी भी सारी समस्याओंका हल निकलेगा. ब्राह्मण मनु रचित तुम्हारी पूज्यनीय मनुस्मृती को खुले आम जलानेका धैर्य केवल बामन हि दिखा सके. तुम्हारे सर्वार्थ से बाप होते हुए भी उनसे जादा सक्षम नेतृत्व गुण के और उच्च विद्याभूषित लेकीन अस्पृश्य आंबेडकरजी का नेतृत्व स्वीकारनेकी दिलदारी भी वो हि दिखा सके. नसीब तुम्हे इस बहाने तुम्हारे अपने शाहू महाराज याद आ गये. उनको डरकर ब्राह्मण आजतक उनका नाम लेना भी पाप समझते है, जबकी उनके पूर्वज छत्रपती शिवाजी को जबरदस्तीसे गोब्राह्मणप्रतिपालक बनाके हिंदूओंको खुद कि ओर आकृष्ट करनेका खेल रचाते है. ब्राह्मनोंसे सिखो स्वार्थ के खातीर हि कैसी अपनी गलतिया ढकना और झुठ फैलाना. इसमेसे कोई भी तर्क के लिये ब्राह्मनोंके कोई भी वेद या अर्वाचीन लिखित साहित्य का सहारा नही लिया है. आंख कान और दिमाग खुला रख कर दुनिया का अनुभव लेके उसके सहारे तर्क करोगे और निष्कर्ष निकालने के कबिल बनोगे, तो कोई भी वेद या पुराण पढे बिना तुम खुद नये पुराण या रामायण लिखनेके कबिल जरूर बनोगे.
@हिंदूइजम संस्कृती ( भारतीय सुप्रीम कोर्ट और मा. सर संघ चालक मोहन भागवत ने उसे धर्म मानना मना किया है.) के मालिक तो केरला मे अरबी दर्यावर्दी कि कमाई से ललचाए मुस्लीम मोपला बनकर कभी के कटूए बने है. अब मुस्लीम अतिरेकी इसीस मे बडी संख्या मे भरती हो रहे है. शायद उनके लिये हनुमान चालीसा पढेंगे. मेरे मन मे आया मै कौंवा काट खाया, ऐसा है उनका. हिंदू धर्म कि प्रथा नियम कटाक्ष से पालना तो आम गैर ब्राह्मनोंके लिये है. बंगाल मे ताजी मच्छी के स्वाद से ललचाये वे मच्छी को भी शाकाहार हि बोलते है. संजीव कपूर से लेकर सभी शेफ याने खानसामे खाने के शौकीन ब्राह्मण है. यहा पर आलू कि सब्जी कि कृती दिखाएंगे तो बोट पर मुलायम गोमांस कि बिर्यानी कि फर्माईश करेंगे. गैर ब्राह्मनोंको तो तूर डाल क्या टमाटर भी अप्राप्य है. पर उसकी चिंता वे नही करेंगे. कौन कटूए है यह सोचनेका ब्रह्मणो द्वारा आदेशित कर्तव्य हि उनके लिये बडा चालेंज है.
कोणी जरासं खेटलं तर लगेच रेटायच नसत, बघा तरी रेटलेल्याच फाटतय का उचकाटतय. ज्याच जास्तच फाटतय ते तर केकाटतच, मग लाथ बसतीय पेकाटातच.
अभी हाल मे फडणवीस नाम के नागपूर के एक आदमी को भ्रष्टाचार के मामले मे महाराष्ट्र के पोलीसोंने एरेस्ट किया है. ब्राह्मण हि है वो, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जैसा हि. और वैसा हि नागपुरका भी है वो. देवेंद्र से उसकी डैरेकटू लिंक है या नही यह पता नही पर नागपुरके RSS के रेशम बाग के हेडक्वार्टर से उसका संबंध है ऐसी भी खबर है. मुह नही खोलेगा वो
फुकनिके  तू तो क्या तेरी मां, बहन, बेदी या दादी, नानी मे भी मुझे इंटरेस्ट नही है. इस लिये मेरा दिल किसी को भी ठोकने के लिये कितना बेकाबू यह जाहीर नही कर रहा हु. फिर भी मेरी बातोंसे तुम्हारे दिमाग के अलावा कोई और छेद मे जलन हो रही होगी तो इंजेक्शन के साथ लोशन भी लगानेकी हैसियत है. तुम्हे साथ देनेवाली कि हैसियत अलग बयां करना बेकार ही है.
१ )गत ५००० सालोंसे अंग्रेजोंके आनेतक सारे भारतीयोंमे विद्या और शिक्षा पानेके अधिकार केवल ब्राह्मनोंके लिये हि आरक्षित
२ )गत ५००० सालोंसे सारे गैर ब्राह्मण हिंदूओंके पुजारी, शंकराचार्य, नव जात शिशु, नव वधुसे लेकर हरेक नयी चीज के याने मृत्युपरांत स्वर्ग या नरक के द्वार के उपदेशक, उद्घाटक और उपभोगक के रुपमे हिंदूओंसे सारी सेवाएं मोफत लेनेका और उनके बाप रहनेका ब्राह्मनोंका अधिकार  आरक्षित!
३ ) गत ५००० सालोंसे ब्राह्मनोंने ब्राह्मण आदेशानुसार सारे अस्पृश्योंको सजा देनेके, छलनेके, उनसे सारी सेवाएं मोफत लेनेके, उनकी जमीन जायदाद और औरतोंकी इज्जत लुटनेके अधिकार ब्राह्मनोंने उच्चवर्णीय बनाया इस लिये गैर ब्राह्मण और गैर अस्पृश्योंके लिये  आरक्षित
४ ) गत ५००० सालोंसे बनीयोंको भी ब्राह्मनोंने दिये हुए गैर अस्पृश्योंके दर्जोंकि तहत अस्पृश्योंको छलने के और औरोंको ब्राह्मनों जैसेहि चुतीये बनानेके अधिकार  आरक्षित
५ ) सारे भारतीयोंमे एकमेव आर्यवंशीय, परकीय और कुल भारतीय आबादी मे केवल साडेतीन टक्के कि आबादी वाले ब्राह्मनोंके सर्वस्वी लज्जास्पद अंकित हरामखोर ५००० सालोंने भारत को इतना लुट लिया है कि सोने कि चिडिया कहलाने वाला भारत अविकसित और कंगाल देश कहलाया जाता है. शायद कंगाल बनाये गये और कंगाल रखे गये अस्पृश्योंकि संख्या भारत मे ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण गैर अस्पृश्योंकि मिलकर जो संख्या होती है, उससे जादा है, यह उसका कारण है. पाकिस्तान जैसे उन कंगालोंको भी एक छोटासा टूकडा दिया जाये तो ५००० सालोंके चरबीदार लोगोंके लिये भारत पूर्णतः आरक्षित रहेगा और उसे दुनिया कंगाल भी नही कहेगी. उन गैर अस्पृष्य गैर ब्राह्मण भले ब्राह्मनोंके पैरोंको छुने तक हि स्पृश्य रहे लेकीन ब्राह्मनोंकी छत्रछाया मे सुखी तो रहेंगे. ब्राह्मनोंका ५००० सालोंका उनके बाप बनकर रहनेका अधिकार भी आबाधित आरक्षित रहेगा, जिसके लिये वे गैर ब्राह्मण गैर अस्पृष्य सारे ब्राह्मनोंके शाप और देवोंके कोप के डरसे मांगनेका स्वाभिमान खो बैठे रहनेसे कोई आंदोलन वगैरा करने कि हिम्मत हि नही करेंगे. हां अगर वो चाहेंगे तो बाबासाहेब आंबेडकर जी जैसे कोई पैदा करनेके नाकाबिल साबित ऐसे उन्हे बाबासाहेब के कंगाल लोग उधार मे प्रज्ञा और ले सके तो स्वाभिमान तो जरूर दे सकते है.
# भारत मे रहकर मुसलमानोंकेहि हमलोंमे मारे जानेवाले मुसलमानी मुल्कोंके मुसलमानोंकी चिंता और मारनेवालोंकी निंदा ओवेसी या उसके चेलोंने नही कि. उनको तो बर्मा के रोहिंग्ये और फिलीस्तिनी मुसलमानोंकी हि पडी रहती है. बर्मा से दूर मुंबई मे वे उन रोहिंग्येंके लिये महिला पुलिस कि इज्जत पर भी हात डालते है. वैसे हि अफगाणिस्तान कि पुरानी हेरीटेज मानी जाने वाली भगवान बुद्ध कि मूर्ती का मुसलमानोंने विध्वंस किया तो भारत के एक भी मुसलमान ने उसकी निंदा नही कि. पिरेमिड बनाके उसमें सोनेवाले तो मुसलमान नही थे. फिर भी वे अब्राहमी धरमोंके सारे प्रेषितोंकी रेतीली जमीन के मुस्लीम इजिप्त मे है इसलिये उनकी इज्जत और हिफाजत कि जाती है. वैसे भगवान बुद्ध का मुल भारतीय होते और उसे हिंदूंके परम पूज्य माने गये सभी देवावतारोंके समान महान विष्णू का एक अवतार मानके भी, एक भी हिंदूने अफगाणिस्तान कि उस बुद्ध मूर्ती को उध्वस्त करने वाले मुसलमानोंके कृत्य कि निंदा नहि कि. क्या हिंदू देवावतार होने के बावजुद भगवान बुद्ध मुसलमानों जैसे हि हिंदूंको भी शत्रू समान है? १ yes २ no

# उसको बंधनकारक ना होते हुए भी जिस राजकन्या राम पत्नी सीताने राम के नसीब का बनवास स्वखुशीसे खुद के खंदे पर लदा लिया, उस बनवास के दरम्यान हि राक्षस जैसे ब्राह्मण रावण का कारावास भी भुगत लिया, जिसे राम भक्त देवी मानते है, ऐसी सीता को आदर्श पती, आदर्श राजा ऐसे उसके पती राम ने एक मामुली धोबी के रावण कि केवल हमबिस्तर कहने पर राजा जनक कि पुत्री ऐसी ऐशोआराम और प्यार से पली राजकन्या सीता को बीहड जंगल मे छोड आने के लिये भाई लक्ष्मन के साथ भेज दिया. नसीब उस धोबी जैसे और कोई किडे ने सीता और लक्ष्मन के भी गंदे सम्बंध थे ऐसे राम को नही बताया. वरना राम और लक्ष्मन मे जंग छिड हि जाती थी. ऐसे किडोंको एक भी चामाट लगानेके बजाय सीता जैसे अपने निकटवर्तीय पत्नी को हि सजा देनेवाला राम आदर्श पती कैसे हो सकता है यह उसे आदर्श पती ऐसे गौरवान्वित करने वाले सोचते भी नही. जंगल मे छोडी सीता को स्त्रीधन नही तो नही लेकीन उसकी सुरक्षा कि सोच के उसे उसके पिता राजा जनक के पास भी तो राम छोड आ सकता था ना? क्या राम सीता कि सुरक्षा चाहता हि नही था या राम उसे खुन्ख्वार जंगली जनावारोंके हवाले करके मरवाना हि चाहता था? सीता कि बदनामी करने वाले फालतू धोबी को चामाट भी नही लगानेके कायर दिखे राम ने निष्पाप निरुपद्रवी ऋषी शंबूक को केवल तपस्या जैसी निरुपद्रवी क्रिया करनेकी इच्छा प्रकट करने पर वोह केवल अछूत था इसी करणवश खुद के हाथोंसे मारनेमे कौनसी वीरता या शूरता प्रकट कि है ? अपनी प्रजा के हि एक निष्पाप घटक शंबूक कि निरुपद्रवी ऐसी तपस्या कि केवल इच्छा जाहीर करने पर उसका खून करने वाला खुनी राम क्या आदर्श राजा हो सकता है? इसके बावजुद राम का गर्व करने वालोंपे तरस आता है. उनकी मजबुरीयों का तो ख्याल करो! राम नाम को गर वे छोड दे तो क्या वे उनकी ब्राह्मनोंके पैर धुले पानी को पिनेकी नामर्द लत का गर्व दुनिया के सामने करेंगे? या उन गैर बम्मनोंको अपना नया घर, नयी गाडी इतना हि नही तो अपनी नव विवाहित पत्नी भी पहले ब्राह्मनोंके चरनोंपर रखनी पडती है इसका गर्व वे दुनिया के सामने करेंगे? राम हि जाने इन राम भरोसे वालोंको, जब हिंदू यह कोई धर्म ना होते केवल ब्राह्मनोंकी खुद कि जीवन पद्धती हि है ऐसा भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने भी जाहीर किया है तो!
# इनसानोंमे छुत अछूत कि, भेदभाव कि अनोखी पर गंदी और समाज विघातक कल्पना के जनक ब्राह्मण हि है. जिसकी जडे सारे भारतवासीयोंके खून मे कल्पकतासे कहने के बजाय केवल ब्राह्मण समुदाय के निजी स्वार्थ के लिये कपट से ब्राह्मनोंने हि गडी है. अन्यथा सम्राट अशोक, हर्षवर्धन इनके सार्वत्रिक बौधमय काल मे आज के जैसा संप्रदायिक वैर का माहोल नही था. ब्राह्मनोंके भारत भूमी मे आगमन के बाद हि, उन्ही के भूतपूर्व मुल प्रदेश से, उन्ही के रास्ते पहला मुस्लिम आक्रमक मीर कासीम भारत मे आया था. फिर वे मुसलमान ८०० साल यहा डेरा डालके बैठे और जाते वक्त पाकिस्तान जैसा मुल्क और उपरसे ५५ करोड रु. कि फिरौती वसूल करके गये. उनके बाद आये अंग्रेज भी ब्राह्मण खून के हि थे. निहायत शरीफ आर्य खून है उनका, जो मुस्लीम अक्रमकों जैसी कोई मुल्क या पैसोंकी फिरौती उन्होंने हमसे वसुली नही.<> ब्राह्मण तो पैगंबर मोहम्मद के खानदानी रीश्तेदार है. मोहम्मद के पोते हुसेन कि जंग मे उसे मदत करने वे यहासे मक्का के पास करबला भी गये थे, यह इतिहास है. हुसेन ने उनकी मदत के बदले उनका सन्मान उन्हे हुसेनी बम्मन कहते किया था.<> मुसलमानि राज, जीनमे बम्मन सन्मान से रहते थे, उस समय गोहत्या तो खुले आम होती थी. उसे ना ब्राह्मनोंका विरोध था और ना अन्य हिंदूओंका. यह भी इतिहास सिद्ध है. स्वराज्य के आनेकी आहट सुनने के बाद सारे गैर बम्मनोंको अपनी ओर खींचने का अहम मुद्दा जानकर हि ब्राह्मनोंने गोहत्या का मुद्दा उठाया और मुसलमानोंसे परेशान हिंदूओंको अल्पसंख्याक मुसलमानोंके खिलाफ भडकाना शुरू किया. जैसे जातीभेद का जहर बोना उनके निजी स्वार्थ के लिये था, वैसाही हिंदू मुस्लीम मे तेढ निर्माण करने के पीछे भी उनका निजी स्वार्थ हि है. याने समाज विघटीत रहेगा तो हि अपनी चलेगी ऐसी पक्की धारणा उन स्वल्पसंख्यांक परदेशी मुल्क के ब्राह्मनोंने बना के रखी है. वो जो जातीभेद छुत अछूत के जहर का बीज ब्राह्मनोंने बोया था उसके नतीजे अब भी अछुतोंको भूगतने पड रहे है. सारे भारतीय एकसंघ इकजुट नही हो पा रहे है. और ना हो पायेंगे. <> तुम्हारे गर्व कि बात होगी कि सारे गैर ब्राह्मण तुम्हारे पैर धुले पानी को पवित्र तीर्थ समझकर पिनेमे धन्य मानते है. पर क्या वोह अपने हि संतानोंको हिजडे बनानेकी इच्छा रखने वाले माता पिता कि विकृती दिखाने वाली प्रवृत्ती नही है? अपने स्वार्थ के लिये भले भगाके भी लाये हो पर उन बच्चोंकी नैसर्गिकता छांट कर उनको अनैसर्गिक विकृत बनाने जैसी हि वृत्ती गत हजारो सालोंसे तुम ब्राह्मनोंने पाल के रखी है. <> ऐसा अंध ब्राह्मण भक्त समाज फिर वैष्णोदेवी के एक भूतपूर्व ब्राह्मण पुजारी के रूप मे छिपे मुसलमान के भी पैर धुले पानी को दस सालोंसे पवित्र तीर्थ समजकर पिता रहा, इसमे आचरज कि बात नही होती है. तुम्हारे बारेमे जो अन्याय तुम दिखा रहे हो, वो तुम्हारेहि बोये आपसी कलह के जहर के वृक्ष के फल है. दुर्दैववश आज भी तुमने हिजडे बनाये लोग उस जहारीले वृक्ष को उखाड के फेकनेके अधिकारी तुम्हे हि मानते है. इस लिये यह आपसी कलह, तुम्हारे साथ एक दुसरोंकिभी पिटाई और अन्याय विकृती का माहोल गर सच्चे दिलसे खतम करना चाहते हो तो पहल तुम्हे हि करनि है. <> ब्राह्मनों जैसेहि आर्य वंशीय अंग्रेजोंने अमेरिका के सुरक्षित और बेहद सुखी रखे गये मूलनिवासी रेड ईंडीयनोंसे इसलिये जाहीर माफी मांगी कि वे भारत से कई गुना विशाल ऐसी उनकि अमरिका मे घुसे थे और बस गये है. तुम तो भारत के सर्व प्रथम और अमरिका मे घुसे अंग्रेजोंसे भी अति स्वल्प संख्यांक होने के बावजुद केवल संस्कृती हि मानी जाती है ऐसी तुम्हारी अपनी हिंदू संस्कृतीको, कपट से तुम्हारे कल्पित देवोंके साथ साथ उसके अंदर के जाती भेद, छुत अछूत के नियामोंसहित गैर भारतीयोंपे धर्म बता कर तुमने थोपी है. तुमने जाती भेद के तहत हर एक गैर ब्राह्मण को श्रेणीनुसार मोफत के सेवक बनाया.<> जब कोलंबस और केप्टन कुक जैसे अंग्रेज दर्यावर्दी महासागरोंका चप्पा चप्पा छान कर उनके लिये संपती और खुद के देश के आधिपत्य के और मुल्क धुंड रहे थे, तब तुमने आदिम साहसी गैर भारतीयोंको हिंदू धर्म के धाक से दर्या पार जाना मना किया. <> लेकीन गैर भारतीयोंमे तुम्हारे हिंदू संस्कृती कि निर्मित जो दहशत बनाई थी, उसे कायम रखने के लिये केरला मे आनेवाले अरबी दर्यावर्दीओंको मिलने वाले धन के लालची ऐसे तुमने अपने घर के किमान एक पुरुष को मुसलमान बनाके उन आरबोंके साथ अखाती प्रदेश तक जाने कि छुट दि. तुम्हारे निर्मित और गैर भारतयोंके लिये तुमने हि परम वंदनीय बनाये हिंदू धर्म को लाथ मारकर ऐसे मुसलमान, जिन्हे मोपला कहते है और जीन्होंने मोपलाओंके भूतपूर्व बंड मे हिंदूओंका कत्लेआम किया था और आज भी बडी संख्या मे वे हि मुसलमानि अतिरेकी संघटना इसीस मे भरती होने जाने वाले सबसे जादा भारतीय है, वैसे बनना यह तुम्हारा पाप हि नही तो घोर अपराध भी था. अब भी तुम बहुसंख्यांक गैर भारतीयोंपे वैसा विकृत अधिपत्य थोपना चाहते हो. अमरीकी अंग्रेज अर्योंसेभी कही गुना जादा ऐसे ये सब घोर नैतिक अधपतीत अपराध तुमने किये है. इतना हि नही अंग्रेजोंने तो दुसरे जागतिक महायुद्ध मे अपरिहार्य ऐसी जो बमबारी जापान पें कि थी, उसके लिये जपानसे भी जाहीर माफी मांगी है. तुम तुम्हारे नैतिक अधपतीत स्वरूप के जो घोर अपराध बहु संख्यांक गैर भारतीयोंके साथ किये है, उसके लिये पहली बार प्रामाणिकता का प्रत्यय देकर खुले दिलसे गर भारतीयोंसे जाहीर माफी मांगोंगे तो सभी के उपर होने वाली अत्याचार व अन्याय कि ५००० साल पुरानी शृंखला तूट सकती है. सारे भारतीय एकजूट हो सकते है. वो इकजूट भारत को फिरसे मौर्यकालीन सामर्थ्य और सुबत्ता प्रदान कर सकती है. सोचो अब भी वक्त गया नही वैसा करनेके लिये. 1 ब्राह्मण प्रामाणिकता और दिलेरी का प्रत्यय देगे? २ ब्राह्मण प्रामाणिक और दिलेर नही है? ३ कन्फुजन याने दिमाग का दही हुवा?

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