चुनाव पूर्व काल मे टी व्ही पर छम छम नाचने वाली स्मृती इराणी ने उसके बाप के उमरके भ्रष्टाचार से अलिप्त, सज्जन भारतीय पंतप्रधान मनमोहनसिंग जी को चुडिया पेहनाने कि बात कही थी. फडणवीस ने मयत आर आर पाटील को आबाला नेवून दाबा ऐसी बाते कही थी. मोदी ने चायवाले कि औकात कि हि भाषा वापरी थी. जीन्होंने रामनवमी के बजाय बाबरी पतन दिन आंबेडकर पुण्यतिथी के दिन रखा था, उनके इरादे हमारी भाषासे भी जादा विकृत हि नही तो विषैले भी है. मराठी कहावत है, कि वाघोबा बोला किवा वाघ्या तो खायलाच बसलाय. मग पहिली गोळी आपणच का नाही चालवायची?
!>!! सारे मादिरोंके, गणपती मंडलोंके बेंक आकावूंट सीधे डिफेंस बेंक आकावूंट से जोड दिया जाये तो? मोदी के चुतीया बनानेसे जिन्हे दिन भर मे एक वडापाव भी नसीब नही ऐसे फटीचरोंके भी जबरदस्तीसे बेंक आकावूंट बनाये गये है. वे क्या मोदी के बाप कि कमाई है क्या? गेस सिलिंडर जमा करवाने पर भी गेस कि किंमत बढाकर एक तरफ जनता हि गेस पर है तो दुसरी तरफ विद्रूप भारी संख्या पर नवजात बालकोंको हिटलर के विषिले गेस चेंबर कि जगह प्राणवायू गेस लेस चेंबर मे हेतुतः मारा जा रहा है. १ सच? के २ झुठ?
!>!< एक पोश्त के उत्तर मे लिखी पोश्त >!< बॉडीगार्ड बनाये लोगोंकी बदौलत ब्राह्मण और ब्राह्मण निर्मित/संचालित हिंदू यह कोई धर्म न होते केवल ब्राह्मनोंकी एक जीवन शैली या संस्कृती हि है इस सुप्रीम कोर्ट द्वारा उजागर और गत हजारो सालोंसे ब्राह्मनों द्वारा गर्वसे हिंदू कहने वाले बुद्धूओंसे छुपाये गये सत्य के तहत ब्राह्मनोंकी उस संस्कृती का रक्षण और पालन पोषण होता आ रहा है. उन चंद लेकीन ब्राह्मनोंद्वारा शास्त्र परवाना दिये गये लोग उनको स्वार्थी हेतुसेहि ब्राह्मनोंद्वारा उच्चताका जो चोला चढाया गया था, उसीकी शानमे अभी भी मस्त हि रहते रहते यह भी समझ नही पाये कि, इतनी बडी संख्या कि जनता मे वे अकेलेहि शस्त्र परवानाधारी बनाये जानेसे ब्राह्मनों बाद हि भारत पर मीर कासीम जैसे मुस्लीम और इसाई अक्रमकोंके अक्रमनोंका जो सिलसिला शुरू हुआ था, उन्हे वे उनकी चंद संख्या के हि होने कि वजहसे थोंपने मे हिजडे साबित हुए थे. वैसे तो ब्राह्मनोंने केवल उन्हे हि उनके पैर छुने कि हद तक स्पृश्य बनाया था. उसमे आज भी धन्यता और गर्व मानने वाले उन्होंने ब्राह्मण के पैर धोते धोते उस पैर धोये पानी को पवित्र समझकर उसे किसी गंदी नाली मे फेकने के बजाय उसे तीर्थ समझकर पिने कि जो लत लगा ली है, वैसे कोई सावित्री जैसी पत्नी भी उसके पती के पैर धोये पानी को पिती हुई नही दिखी है. स्वल्प संख्यांक मूलतः विदेशी ब्राह्मनोंको एतद्देसी भारतीयोंको जो इंसान होने के नाते स्वाभिमान के लिये वे लडाकु होना नैसर्गिक था, उनमेसे ऐसे चंद लोगोंकोहि शस्त्र परवाना देने वाले माना हि क्यो गया था? ब्राह्मण मन्दिरोन्मे हि दक्षणा ऐंठते बैठते थे और सारे अन्य भारतीय मिलकर अक्रमकोंके खिलाफ लढने उठते थे तो भारत १२०० सालों तक तो क्या पर एक दिन भी पारतंत्र्य मे नही ढकेला जाता था. मूलतः विदेशी ब्राह्मण तो सभी विदेशी अक्रमकोंके राज मे कभी तानसेन बिरबल बनके तो कभी शेणवी नामके अंग्रेझोंके रीजंट बनके आबाद हि रहे है. @ मुस्लीम बांगलादेश देश मे बुद्ध धर्मीय चकमा आदिवासीयोंका जमीन जुमला हडप कर बांगलादेश के मुसलमान जैसे हकाल रहे है, वैसे हि बर्मा के रोहिंग्या मुसलमानोंपर बित रही है. फरक सिर्फ यह है कि बर्मी लोग उन मुसलमान रोहिंग्योंको बुद्ध धर्म मे लाने के लिये उनसे केवल जबरदस्ती करना हि नही चाहते है तो लेना हि नही चाहते है. जब कि बांगलादेशी मुसलमान बुद्ध धर्मीय चकमोंपर जबरदस्तीसे इस्लाम भी लद रहे है. हिंदू ब्राह्मनोंके खून के मुसलमानि रीश्तेदार पैगंबर मोहम्मद का चेला और पहला मुस्लीम आक्रमक मीर कासिम ब्राह्मनोंके पीछे पीछे हि भारतमे घूस आया था. उसके बाद मुसलमानी आक्रमक और शासकोंका जो सिलसिला चालू हुआ था, उसके बाद हि बांगलादेशके और उससे सटे म्यानमार के भी मुलनिवासी जबरदस्तीसे मुसलमान बनाए गये थे. जो रोहिंग्या है. मुसलमानोंका कौनसा आटा ढीला है यह समझ मे नही आ रहा है. इस्लाम के साधी रहनी के तत्वोंके खिलाफ वे योरोप मे सूटबुट पेहेनके तमाम आधुनिक उपकरणोका इस्तेमाल करते, सारी सुखसुविधा उपभोगते भी वे वाहाकी शांतता को बिगाडनेमे आनंद लेते है. इसलिये वहा पर भी जनता उनसे नाराज है. पाकिस्तान प्रेमी रही अमरिका का अध्यक्ष ट्रेम्प तो मुसलमानोंका खुला दुश्मन बना है. पाकिस्तान कि चुम्मा चुम्मी करने वाला चीन भी सिंचीयान प्रांत के मुसलमानोंसे परेशान है, और उनपे कई पाबंदिया लगा दि है. बांगलादेश मे इस्लामीकरण से बचने के लिये जो बुद्ध धर्मीय वहाके पहाडो और जंगलोंमे भाग गये थे, वे चकमा आदिवासी कहलाये जाते है. बर्मी मुस्लीम रोहिंग्योंको जैसे वहासे भगाया जा रहा है, वैसे हि इन बांगलादेश के मूलनिवासी चकमाओंको भी आसाम मे भगाया जाता आ रहा है. फरक सिर्फ इतना कि ये चकमा गर मुसलमान बनते है तो बांगलादेश के मुसलमान उन्हे बख्शते है, और उनकी बीबी बेटिया खींच लेते है. पश्चिम आशिया के सारे अब्राहामिक धर्म याने ज्यू, इसाई और मुसलमान चील्लम चिल्ली करने मे हमारे ब्राह्मनों जैसे हि लाजवाब है. ब्राह्मण मूलतः वही के और मोहम्मद के रीश्तेदार होने से वो गुण उनमे भी है. इसलिये उनके अहम को जरा सी भी खरोच आती है, तो डीजे के साथ ढोली बाजा भी बजाते सारे के सारे चील्लाने लगते है. बुद्ध धर्मीय चकमा के रूप मे बांगलादेश मे मूक रुदन करते है, तो भारत मे गरीब अछुत और पीडीतोंके रूप मे! @ मनुष्य प्राणी कि हमारे मद्रासी, ओस्ट्रेलिया के एबओरिजिन और आफ्रिका के निग्रोंके काले वर्ण कि निग्रोईड, हमारे गुरखा, चीनी, इंडोनेशियन और अमरिका के रेड ईंडीयनोंके बारीक आंखे और पिले वर्ण कि मंगोलोईड और योरोप, उससे सटे पश्चिमी आशियायी और हमारे ब्राह्म्नोंके घारे आंख और गौर वर्ण कि आर्य, ऐसी तीन मुल प्रजाती है. आफ्रिका खंड पहले भारत के मद्रास से जुडा हुवा था. सारे भारतीयोंमे एकमेव ब्राह्मण हि युरोपियन और गोरे अरबो जैसे शुद्ध आर्य खून के है. अर्योंके पश्चिम आशियासे मीर कासीम नामका जो सबसे पहला विदेशी और मुसलमान आक्रमक भारत मे आय था, उसी पश्चिम आशिया से लेकीन मुसलमान मीर कासिमसे पहले ब्राह्मण भी भारत मे आये थे. वे भारत मे आये सर्व प्रथम विदेशी है. सटे हुए आफ्रिकासे अरबस्तान मे आ बसे निग्रो काले अरब है. हिंदू, इसे धर्म बोलो या भारतीय सुप्रीम कोर्ट के शोधक फैसले के तहत उसे एक जीवन शैली या जिने कि राह या संस्कृती कहो, पर वह ब्राह्मण मनु रचित मनुस्मृती मे लिखित तत्वो और नियमोंसेहि अनुशाशित है. उसमे उसे और सारे ब्राह्मनोंको पवित्र और देवतुल्य स्थापित किया है. उस हिंदू जीवन पद्धती के, मनु के रूप मे निर्माता और शंकराचार्य के रूप मे केवल ब्राह्मण हि संचालक है. अंग्रेजोंके भारत मे आने तक मुसलमानोंके राज मे भी ब्राह्मण और मनुस्मृती का देवतुल्य स्थान ब्राह्मनोंने हिंदू बनाये या जताये गये गैर ब्राह्मण भारतीयोंके दिलो दिमागोंमे अबाधित हि था. वे गैर ब्राह्मण हिंदू किसी कुष्ठरोगी ब्राह्मण के भी पैर धुले पानी को पिने मिलने को उनका भाग्य मानते थे. वो प्रथा आज भी जारी है. भारतके बीजेपी पार्टी का सामर्थ्यशाली दिखने वाला बनिया अध्यक्ष अमित शहा भी ब्राह्मण शंकराचार्य के पैर धोने मे धन्यता मानता है. उनके केवल ३०० सालोंके राज मे शिक्षित होने का अधिकार अस्पृश्यो सहित सभी भारतीयोंके राजाओंको देकर अंग्रेजोंने गंवार भारतीयोंपर किये एहसान अम्युल्य है. हजारो सालोंसे पढने लिखने कि कला जानने वाले ब्राह्मनोंने वो कला उनके भक्त बनाये और हेतुतः अनपढ गंवार रखे गैर ब्राह्मण हिंदूओंको दि नही. उनके बसकी बात रहती थी तो आज भी देना हि नही चाहते थे. वे जो भी थोंपते थे, उसे वे गंवार अनपढ रखे हिंदू पवित्र या अपवित्र मानते थे, जो अभी भी चल रहा है. उसी कारण उनकी लिखित कथाये और महाकाव्योंके और उनके जरीये स्थापित कल्पित नायकोंके नितीमुल्य आदि तत्वोंकि समीक्षा करने कि क्षमता अभी भी किसी गैर ब्राह्मण हिंदू मे अब शिक्षित होने के बाद भी विकसितहि नही हुई है. ६ दिसंबर १९९२ के दिन बम्मन RSS ने बाबरी मस्जिद तुडवाई. दुनिया भर मे सभी को मालूम है कि ६ दिसंबर के दिन डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी का देहांत हुआ था. उस दिन दुनिया भर उनको श्रध्दांजली अर्पित कि जाती है, और जिन्हे शक्य होता है, ऐसे उनके अस्पृश्य, पिछ्डे और ब्राह्मनों सहित अन्य भी करोडो लोग बाबासाहेब जी कि रक्षास्थल चैत्यभूमी याने मुंबई के शिवाजी पार्क मे जमा होते है. अगर गैर बम्मन हिंदूओंके भगवान और गैर ब्राह्मण जनोंमेसे हि कुछ लोगोंको अलग करके अस्पृश्यता और घोर अत्याचार के आधीन करने वाले ऐसे ब्राह्मनोंकी कि शिखर संघटना RSS ने डॉ आंबेडकरजी को अपनी प्रातः वंदना मे शिवाजी महाराज के साथ पूज्यनीय और वंदनीय माना है, तो अस्पृश्य होते हुए भी आंबेडकर जी कितने महान थे यह सुबुद्ध लोगोंको अलगसे बतानेकी आवश्यकता नही. बम्मन पेशवा कि मुघल दरबार मे बडी इज्जत होती थी. अब्दाली से लढने बम्मन पानिपत तक गये थे. उस वक्त वे बुढे जाफरशहा से अयोध्या का राम मंदिर तो क्या लेकीन पुरी अयोध्या भी आसानीसे ले सकते थे. नही किया उन्होंने वैसा. शायद उस वक्त सीता को उसके बाप राजा जनक के पास छोड के आनेके बजाय जंगल मे भगा देने वाले रामकी अनैतिकता उन्हे खलने लगी होगी इसलिये वे अबतक रामनाम का जप करना जैसे भूल हि गये थे. बाबरी ध्वस्त करने के ६ महिने पहलेसे बुढवू लालकृष्ण अडवाणी ने महा आरती और रथ यात्रा के जरीये गैर ब्राह्मण हिंदूओंको उकसाना शुरू किया था. बाबरी पतन और उसकी प्रतिक्रिया मे हुए बम धमाके आदि घटना क्रम का ब्यौरा आप गुगल सर्च से पा सकते हो. वो कोयला घीसने कि मुझे फुरसत नही है. बस चंद सवाल सताते है, जिनके जवाब केवल आप दे सकते हो. दिमाग वाले RSS के ब्राह्मण और चालाक बुढवू सिंधी अडवानी ने बाबरी गीरानेके लिये ६ दिसंबर यह दिन हि क्यू तय किया होगा? राम के नाम पर उन्हे विध्वंस और अशांती मचानि थी तो राम नवमी, होली, दिवाली ऐसे हिंदू, या ईद और नाताल ऐसे गैर हिंदू मुहूर्त उन्होंने क्यो चुने नही? {पोइंट तो बहुत है, पर गुगल पर ५ हि ऑप्शन है.} १ वे कोई भी हिंदू सन को अशांत नही बनाना चाहते थे? २ इसाई और इस्लाम धर्मीय राष्ट्रोंके क्रोध से वे डरते थे इसलिये उनके सनोंको भी अशांत नही बनाना चाहते थे? ३ सभी भारतीय महापुरुष से जादा आंबेडकर भक्तोंकी भीड उन्हे खलती है? ४ बाबरी पतन पश्चात अनुमानित या मेनेज्ड बम धमाके और दंगल से डरकर बाबरी गीरानेमे शामिल लोगोंको सुरक्षित रखकर निडर बाबासाहेब अनुयायीयोंके जरीयेहि मुसलमानोंको मात देने के या दलीतोंकी और मुसलमानोंकी इकजूट तोडनेके लिये बनाये कपट के तहत? ५ उस वक्त के ब्राह्मनोंको दक्षणा देना बंद किये सार्वत्रिक बुद्धमय बने ऐसे भारतीयोंको फिरसे दक्षणा देने वाले हिंदू बनानेके लिये भगवान बुद्ध को जैसे हिंदू देव विष्णू का अवतार बनाया गया था, और सारे बौध जन फिरसे हिंदू बनकर फिरसे ब्राह्मनोंको दक्षणा देना शुरू करने के बाद उन्होंने बुद्ध का महत्व कम करना चाहा, वैसे कुछ आंबेडकर तारीत उल्लूओंको उनके साथ खिचने के बाद अबतक RSS के प्रातः वंदनीय रखे बाबासाहेब जी को भी उनके दक्षणा के दुश्मन भगवान बुद्ध जैसे निंदनीय बनाना चाहते है? {शिवसेना व बालासाहेब ठाकरे और आस्ते आस्ते बम्मन पेशवा का महत्व बढा कर छत्रपती शिवाजी का महत्व भी ऐसे हि लुप्त करेंगे?}
कमाल का अभिनेता कमल हसन कि खुबसुरत अभिनेत्री लडकी श्रुती हसन <> गर हिंदू धर्म को खुलकर खुनी धर्म कहने वाली श्रुती हसन, जयललिता, मेघा पाटकर, सुषमा स्वराज, संरक्षण मंत्री नलिनी सीतारामन, पूनम महाजन और छम छम वाली स्मृती इराणी ये बम्मनिया तो बम्मनिया, उपरसे ओबीसी उमा भारती, पंकजा मुढे और बीसी मायावती दीदी भी मैदान मारती दिखती है, तो फिर ओरिजिनल जिगरबाज, तलवारबाज क्षत्रिय माताएं, जिजाबाई, ताराबाई भोसले, अहिल्याबाई होळकर, सावित्रीबाई फुले इन्हे क्या फिरसे परदावाली पालकी मे बिठा दिया गया है क्या? ऐसे कहासे शिवाजी और शाहूमहाराज बन पायेंगे? >!< फिरसे शिवाजी पैदा करनेके इनके सपने सफल भी कैसे होंगे? जिजामाता भोसले, छत्रपती शिवाजी पुत्र और संभाजी महाराज के भाई राजाराम महाराज कि विधवा, पर मराठा राज हडपने वाले कपटी ब्राह्मण पेशवा के विरुद्ध तलवार हाथ मे लेकर रणरागिणी बनी पत्नी राजमाता ताराराणी राणी भोसले, कपटी ब्राह्मण पेशवा के विरुद्ध हि तलवार लेकर खडी हुई इंदोर कि माता अहिल्यादेवी होळकर और कपटी ब्राह्म्नोंके खिलाफ युद्ध पुकारने वाले, अछूत नेता डॉ बाबासाहेब आंबेडकरजी के प्रेरणादायी महात्मा जोतीराव फुलेजी कि स्त्रीशिक्षण कि शुरुआत करने वाली अग्रणी महिला माता सावित्री बाई, इन आदरणीय माताओंके बाद गर फिरसे छत्रपती शिवाजी, संभाजी, राजाराम जैसे बहुजन प्रिय योद्धा, महात्मा फुले और शाहूमहाराज जैसे इन्सानियत को ललामभूत, महान परोपकारी और स्वार्थत्यागी व्यक्तिमत्व पैदा करने वाली कोई क्षत्रिय माताहि अबतक पैदा नही हो सकी, तो फिरसे शिवाजी तो छोडो पर उनके वंशज शाहूमहाराज और महात्मा फुले जैसे भी कोई इनमे पैदा होना असंभव हि है. >!< ऐसे हि जिजामाता, तारामाता, अहिल्यामाता व सावित्री माता के रास्ते से भटके क्षत्रिय सवर्ण मराठाओं मेसे एक भगिनी, पुना के एक ब्राह्मण के घर पर खुद को ब्राह्मण बना और बताकर खाना बनाने का काम करती थी. जब उसका पोल खुल गया तो उस ब्राह्मण कुटुंब ने उस मराठा औरत ने उनके घर को अपवित्र बना दिया और और उसकी जात छीपाकर उनके साथ चीटिंग किया ऐसा आरोप लगाकर उस भगिनी के उपर पोलीस केस दाखील कि. पोलीस उन्हे केस दाखील नही करे ऐसी विनती करने के बावजुद वो ब्राह्मण कुटुंबने पोलीसकी एक भी नही मानी. श्रीमती खोले नाम है उस बम्मनिया का, जो हवामान विभाग मे उच्चे पद पर शासकीय सेविका के रूप मे निवृत्त हुई है. शासकीय पद से उतरते हि उसने अपनी कपटी ब्राह्मणी असलीयत दिखा दि. आज दि. ८/९/२०१७ के मराठी दै. लोकसत्ता मे यह खबर छपी है. बेवजह बम्मन बनने कि नाकामयाब चेष्टा करने मे लगे इन गैर ब्राह्मण सवर्ण लोगोंको उस बम्मनियाने जैसे उनकी असली औकात आखिर मे दिखा हि दि. बेचारी गैर ब्राह्मण सवर्ण भगिनी, जिसकि बेइज्जती तो बेइज्जती भी हुई और उपरसे उसपर चीटिंग का केस भी दाखल कर दिया गया है. मोदी और योगी जैसे गैर बम्मन, जो बम्मनोंकी श्रेष्ठता कायम रखने वाली उनकी हिंदू नाम दि हुई जीवन शैली या जिने कि पद्धती या संस्कृती भर हि है, उसके एजंट बने जो चिल्ला रहे है ना, उनके लिये यह एक अच्छा सबक है. साक्षि महाराज जैसे अछूत क्षुद्र जात तो मोदी और योगी कि जात के सामने कीस झाड कि पत्ती जैसे हि है ब्राह्मनोंके लिये. अब भी गर वे समझ गये होंगे कि क्यो शिवाजी के वंशज शाहूमहाराज इन बम्मनोंको उठते बैठते लाथ मारते थे, तो ठीक है. वरना ब्राह्मण अधिपतीत काल मे उनकी हलत ना घर के ना घाटके ऐसी हि है. अगर वे ब्राह्मण बनने या हर छोटी भी बात मे उनकी कॉपी करना छोडकर सभी हिंदूओंके लिये अवध्य बनाये गये ब्राह्मनोंमेसे एक ऐसे भास्कर कुलकर्णी को कुत्ते कि मौत देने वाले क्षत्रिय छत्रपती शिवाजी महाराज के वंशज शाहूमहाराज बनकर हि ब्राह्मनोंको उनकी औकात नही दिखाएंगे तो, प्रत्यक्ष शिवाजी महाराज को भी अपने बाये पैर के अंगुठे से राज तिलक लगाने जितने हीन समझने वाले ब्राह्मण, इन महात्मा फुले, शाहूमहाराज, कर्मवीर भाऊराव पाटील, महर्षी शिंदे और क्रांतिवीर नाना पाटील ऐसे लोकोत्तर नेताओंके बाद उनके समतुल्य एक भी नेता पैदा करने मे असक्षम सिध्द सवर्नोंके इससे बुरे हाल करने मे हिचकिचायेंगे नही. डो बाबासाहेब आंबेडकर जी के क्षत्रिय पालक शाहूमहाराज जैसे अगर ये सवर्ण क्षत्रिय सारे गैर ब्राह्मण समाज से बम्मन पेशवा पूर्व काल जैसे जुडेंगे, तो जैसे शाहूमहाराज को ब्राह्मनोंमेसे एकमेव शेर दिखाये टिळक डरते थे वैसे ब्राह्मण फिरसे इनकि इज्जत करना सिखेंगे और आज कि वैसी घोर बेइज्जती नही करेंगे. बोलो एक मराठा सबके साथ, दस लाख मराठा! १ खुलता है? कि २ खलता है कि ३ चलता है?
Copier may be sane enough to know importance of the thing he is copying, but sure he is weak like eunuch to produce own genuine. Indi P.M. Modi + are fit samples.
कॉपी करने वाला उस चीज का महत्व जानने वाला चालाक तो होता है, पर नपुंसक जैसा हि खुद कि असली चीज पैदा करने मे असक्षम होता है. मोदी +?
Thinking of their useless short life, hungry of pacification of their itch, gays are least bothered about of Normal’s.
इतिहास काल कि बात है यह जब हम मे हिंदी / म्रराठी लिपी संशोधित नही कर पाये थे!
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