@@@ Tomorrow i.e. on 8/3/2017 a rally & conference of all gays, eunuchs, lgbts & transgender peoples, is arranged in Bandra of Mumbai. It will be for 2 days. This article is for saluting them. Its English version too will be put on this platform soon. Request no hard feeling. All the best my friends!@@@ X @@ नटराज और भारत के हिजडे! @@--- हिजडे, गे, लिंग परिवर्तीत स्त्री पुरुष, इनके लिये मुझे पूर्ण सहानुभूती है. रिपब्लिक इंडियन इस नामका मेरा जो ग्रुप बनाया है उसका नेता गर इनमेसे कोई बननेको चाहता है, तो मै वोह ग्रुप उनके हवाले कर उसका सामान्य सदस्य रहना पसंद करुंगा, ऐसे मै उसे शुरू करने के वक्त हि जाहीर किया है.@ पर भारत और उसका हि कभी भाग रहे पाकिस्तान, बांगलादेश के हिजडे जो औरतोंके पोशाक परिधान करते दिखते है, वैसे दुनियाके कोई भी हिजडे नही दिखेंगे. हिंदू जाती व्यवस्था के अंतर्गत बनाई जातीयां जिस तरह केवल भारत और उसका हिस्सा रहे पाकिस्तान, बांगलादेश मे हि पायी जाती है, उसी तरह स्त्रीयोंकेहि कपडे पेहेनना और वैसे हि बर्ताव करना अनिवार्य किये गये पुरुषोन्से बने या बनाये गये हिजडोंकी भी जो एक जमात है, वो पुरी दुनिया मे केवल इन्ही देशोंमे पायी जाती है. आचरज कि बात यह है कि इन देशोंके धरम अलग होते भी सारी हीजडा जमात का आराध्यदैवत एक हि देवी है. जो हिंदूओं मे महाराष्ट्र मे यल्लम्मा नामसे परिचित है. @ दुनिया कि पहली लिंग परिवर्तन सर्जरी, जो भारत मे ४०-५० साल पहले हूइ थी, वो दो इरानि भाई भाई कि हुंइ थी. हमारे पारसी बावाओंके हि सगेवाले है यह इरानि भी. फर्क इतना हि कि, इरान से भागकर भारत मे आसरा लेने वाले पारसी झरतृष्ट को मानते है, और जो इरान मे हि ठहरे, वे मुस्लीम है. वो दोनो भाई स्त्री वृत्ती के थे, पर इरान मे उन्हे उनकी सर्जरी के पहले औरतोंका लिबास पहनना बंधन कारक नही था. शायद बचपन मे किसी विकृत इंसान ने उन्हे अनैसर्गिक संभोग कि लगाई लत यह उनकी बदली हुई जनाना मानसिकता का अन्य कारनोंमेसे एक कारण होगा. फिर भी बादमे वे अपनी मर्जी से हि औरते बनना चाहते थे. उनपे वो लिंग परिवर्तन के लिये किसीने जोर जबरदस्ती नही कि थी. @ मोहंमद पैगंबर साब ने इस्लाम मे दाढी बढाना अनिवार्य किया है. इस लिये किसी परुष का बिना दाढी मुछ का हिजडा पन इस्लाम को नामंजूर हि दिखता है. फिर भी दक्षता कि तौर पर उनमे पुरुषत्व ना जागे इसके लिये उनके जनानखानाओं पे जो पेहरेदार पुरुष रखे जाते थे, उनके लिंग काटे जाते थे. उन्हे लौंडे कहते है. ऐसे पुरुष के लिंगों का काटना, उनका खतना करना और शियाओंमे औरतके योनी का भी कोई भाग काटना, ऐसी हरकतोंसे ऐसे महसूस होता है कि मुसलमानोंमे लिंगोंसे ऐसे खेलने मे कुछ जादा हि रुची पैदा कि गयी है. शायद हमारे यहा पैगंबर मोहंमद के खून के रीश्तेदार बम्मनोंकी शिवलिंग पूजा के जरीये केवल प्रतीकात्मक बनाई लिंग पूजा मोहम्मद ने ऐसी प्रथाओंके जरीये और कर्मठ बनाई है. उन लिंग परिवर्तीत इरानी मुसलमान भाईओंने भी उनकी दाढी या मुछ सर्जरी के बाद हि निकाली होगी. @ भारत मे, जो हिंदू बहुल है इसी लिये, विशेषतः हिंदू धर्म के तहत, ऐसे किसी को भी खुदकि मन मर्जी का कुछ भी करनेका कल तक अधिकारहि नही था. हिंदू धर्म के सर्वथः प्रमुख बम्मनोंके आशीर्वाद स्वरूप आदेश बिना, कोई भी हिंदू को खुद के नये घर मे भी प्रवेश करनेका या शादी ब्याह करनेका अधिकार नही था. इसीलिये खुद कि मर्जीसे वे ऐसे लिंग परिवर्तन करने जैसी या मर्द से जनाना बनने जैसी अनोखी हरकते भी बम्मनोंके वे हि आशीर्वाद स्वरूप अदेशों बिना करने के अधिकारी नही थे. हमारी उच्च जातीओं सहित सभी गैर बम्मनोंकि सभी गती विधीया और क्रिया कर्म ब्राह्मण आदेशित और निर्देशितहि होते थे. इसी लिये किसीका हिजडा बनना या बनाना यह विधी भी उनके आदेश और निर्देश के बिना असंभव है. इसीलिये जैसे हिंदू अस्पृष्य जाती कि निर्मिती का पाप रुपी श्रेय उनका है, वैसे हि इस हिजडा जमात कि निर्मिती का श्रेय या अपश्रेय भी बम्मनोंको हि जाता है. @ साहजिकतः हिजडे, जो अभी अभी तक घृणा का विषय थे, वे निचली जाती के हि लोग होना यह भी स्वाभाविक सत्य है. दक्षिण व महाराष्ट्र के वाघ्या मुरळी और उत्तर के किन्नरोंकी जाती देखोगे तो वो बात साफ भी होती है. भगवान कि सेवा के नामसे जैसी निचली जाती कि कुछ औरतोंको शादी ब्याह करना मना करके देवदासी बनाई जाती थी, वैसे हि भगवान के कोप का डर बताकर निचली जाती के पुरुषोन्को वाघ्या नामसे कायम साडी चोली ऐसे औरतों के पोशाक करना हि नही तो औरतों जैसा बर्ताव भी करना बंधन कारक बनाया जाता था. अच्छे खासे मर्दोंको भी उस प्रथा के तहत उनकी मर्दानगी मरते दम तक दबोच कर जिना होता था. उनकी थोडी भी गैर जनाना हरकत उनके और उनके जातीके उपरके उच्च वर्णीयोंके, खास कर बम्मनोंके रोष का कारण बनती थी, जिसके तहत अन्य गैर अछूतोंके जरीये किये गये अत्याचारोंका सामना करना पडता था. इसलिये ऐसे वाघ्या बनाये मर्द पर उसके हि लोग कडी निगराणी रखते थे. @ वो प्रथा के घीनौनेपन का रूप झुलवा नाम के एक मराठी सिनेमामे बहुत हि प्रभावकारी चित्रित किया है. उस फिल्म को और उसके ऐसे जबरदस्ती से हिजडा बनाये मर्द का अभिनय करने वाले बम्मन अभिनेता उपेंद्र लिमये को नेशनल अवार्ड भी मिला है. हम इतने गांडू है ना, कि अभी भी कुछ निचली जाती के लोग भगवान के डरसे उस प्रथा को निष्ठापूर्वक पालते दिखते है. अभी भी भिख हि मांगते वे यह नही सोचते कि उस भडवे भगवान ने उन्हे अभी तक भिखारी हि क्युं रखा! भगवान के नामसे सहज प्रवृत्ती और प्रकृती के इंसानोंको जबरदस्तीसे ऐसे देवदासी या वाघ्या मुरली बनाना यह समाजकी एक विकृती हि है, और उसका कारण हिंदूओंके देवता समान मुखीये बम्मन हि है. @@ मनुस्मृती के तहत विकृत बम्मन अस्पृश्यता जैसी विकृत प्रथाओंको स्थापित करना और उन्हे अंमल मे लाने के विकृत रुपसे हकदार बनाये गये है. उनमे विकृतीयां ठुंस ठुंस कर भरी है, जिसमे लोगोंको भगवान के नामसे भ्रमिस्ट, संमोहित और चुतीये बनाना अहम है. विकृत और अनैसर्गिक प्रथा और रिवाज वे गैर बम्मनोंपर आसनी से थोंपे और अभी भी थोंपते दिखते है. उनकी गैर बम्मनोंसे हक से ऐन्ठने कि अधिकृत बनाई दक्षणा नाम कि लुट के तहत वे अपने यजमान से उसकी पत्नीकि भी मांग करनेके हकदार बनाये है. उपर जो इरानी मुसलमान कि विकृती बताई है, वे इरानी या पारसी अपने बम्मनोंके हि खून के है. @ भारत मे मीर काफिर नाम का जो मुस्लीम सरदार हो के गया, वो पहले राजस्थान के एक राजपूत राजा का आश्रित ऐसा एक खुबसुरत बम्मन लडका था, जिसके उपर कोई मुसलमान सरदार कि नियत फिर गयी थी. उस शूर कहलाने वाले राजपूत राजाने उस हिंदू लडके को तोहफे के तौर पर उस मुसलमान सरदार को अर्पित किया था. उस हिंदू बम्मन लडकेने उस मुसलमान सरदार कि हवस पुरी करने कि सेवा कि. और हिंदू का मुसलमान मीर काफिर बन गया. वक्त के साथ उस बम्मन लौंडे कि उम्र बढनेसे उस लौंडे बम्मन लडके का बचकंडा लचीला पन कम हो जाना स्वाभाविक था. शायद इसी लिये उससे आगे भी निजी सेवा लेने के बजाय उस मुसलमान सरदार ने उस बम्मन लौंडे को अपने नीचे का पद देकर सरदार बना कर दूर किया. यकीन न मानो लेकीन वो बम्मन लौंडा जब मुसलमान मीर काफिर सरदार बना, तब खानदानी विकृत खून के तहत हिंदूओंका बहुत बडा अत्याचारी साबित हुंआ. बम्मनोंकी विकृत अनैसर्गिक संभोग लालसा हि हिजडे बनाने कि प्रथा का उगम है. सारी जातीके, धर्मोंके और राष्ट्रोंके कुछ पूरुशोंमे स्त्रैण वृत्ती जन्मजात होना देखा गया है. लेकीन उसे अनैसर्गिक मानके वे उसे छुपानेकी हि कोशिश करते है. मेरा निरीक्षण है कि औरोंसे कुछ जादा मूलतः लेकीन ढकी स्त्रैण प्रवृत्ती उच्च शिक्षित बम्मनोंमे हि है. @@ जिस निचली जाती को वे अछूत बनाये है, उनमेसे उनकी नियत जिसपे खराब हो जाती थी ऐसी लडकीयोंको वे देवदासी बनने के लिये मजबूर कर देते थे. लेकीन जो मर्द ताकदवर और साहसी होनेसे भविष्य मे उन्हे त्रासदायक साबित हो सकते थे उनका खच्चीकरण करने के लिये हि उसकी जमात को वे उसे वाघ्या बनाने को मजबूर करके साडी चोली पेहना देते थे. अपनी खुनकी विकृतता कि तहत सायकोलॉजी का तंत्र अपनाते वे ऐसे मर्द वाघ्या का बचा हुंवा पुरुषत्व भी खतम करने उससे शय्यासोबत भी करते थे. सायकोलॉजी का पुरा पुरा पर सबसे विकृत इस्तेमाल करने वाले ऐसे दुनियामे एकमेव बम्मन हि है. उसे बनिये भी इस्तेमाल करते है. करे भी क्या गर ताकद और धाडस मे दुर्बल बम्मन और बनीयोंमे उसके बिना दुसरे शस्त्र पेलने कि हिम्मत हि नही है तो! यह हमारे नीतीमानता और साधनशुचिता के दुर्बल आग्रही गैर बम्मनोंके लिये यह एक अच्छा सबक है.@ निचली जाती के लोगोंको हिजडे बननेको प्रवृत्त करने लिये भी उन्होंने उनके सामने भगवान शंकर का अर्धनारीनटेश्वर नटराज का उदात्त रूप रख दिया. क्या कमाल कि चालाकी दिखाई उन्होंने! सारे मूलनिवासीयोंको हिजडा प्रवृत्ती के बनाने के लिये, जिसका मान अभी भी जीन आदिवासी मूलनिवासीयों मे हि कायम है, और जो मूलनिवासीयोंकी हि प्रतिमा के है, ऐसे शंभू भोले को हि चुना उन्होंने, उस भोले जैसे हि मर्द शूरवीर होते हुंए भी खुद पर हिजडापन लादके लेने को मूलनिवासीयों को प्रवृत्त करने के लिये.@ साला गोरा ब्रह्मा अपनी लडकी से भी विकृत सही पर नैसर्गिक संभोग करता है. गोरा विष्णू के भी सारे चरित्र हीन और अमानवी व्यवहार करने वाले अवतार है. उनको कभी दुसरे मर्दोंके साथ अनैसर्गिक संभोग के लिये उपयुक्त ऐसे हिजडा दिखाया नही. हलकटो, हमारे मूलनिवासीयोंको चुतीया बनाने के लिये उनके जैसेही मुखवटेके एक को भोले शंकर नामसे देवोंमे शामिल कराते हो. उसको हि सागर मंथन का निकला जहर पिते और अर्धनारी नटेश्वर होते दिखाकर दिखा कर, केवल तुम्हे आबाद और ख़ुश रखने के लिये शंकर जैसे हि मूलनिवासीयोंने हि जहर पिना, खुदकी औरते तुम्हे अर्पण करना और तुम्हारे विकृत और अनैसर्गिक वासना के लिये हमारे अच्छे खासे मर्दोन्को हिजडे बनाना यह और इस तरीके के घीनौने काम कर्तव्य के रूप मे करना हि तुम्हे अपेक्षित है क्या? @@@ भोले देख रहे हो ना तुम्हारे भक्तोंसे ये भडवे क्या चाहते और करवाते है? ,
#दि. २८/५/२०१७ च्या पत्रलेखिका सामंत यांच्या पत्राच्या अनुषंगाने स्फुरलेले विचार. मंगला ताई सामंत या नावा वरून ब्राह्मण वाटतात. तसेच असेल तर माझ्या सारख्या अस्पृशातील एक असा मी व समस्त अस्पृश्य वर्गास त्यांनी मांडलेले विचार काहीसे दिलासादायक आहेत. नजीकच्याच भूतकालीन पाश्च्यात्य प्रवाशांनी नोंदवून ठेवलेल्या मतांप्रमाणे सर्वच भारतिय ढोंगी व अप्रामाणिक आहेत या समजुतीस ते छेद देणारे देखील आहेत. अद्याप हि काही प्रामाणिकता व माणुसकी रा. स्व. संघाच्या ऐतिहासिक सिद्ध विकृत पेशवाईची पुनर्स्थापना करण्याच्या धेय्याने पछाडलेल्या ब्रह्मवृंदास वगळता, अन्य ब्राह्मणात शिल्लक आहे हे सामन्तां सारख्या एका ब्राह्मण भगिनी मुळे जाणवल्या नंतर, आद्य शंकराचार्योत्तर काळा पासून ब्रिटीश राज्यकर्त्यांच्या आगमना पर्यंत, सर्वरीत्या नागवल्या व पिडल्या गेलेल्या अस्पृश्य व आदिवासी समूहात, अस्पृश्य नेते बाबासाहेब आंबेडकरांच्या अवतीर्ण होण्या नंतर प्रगती सह जी विद्रोहाची हि लाट उसळली, व फक्त ब्राह्मणांनीच बोथट संवेदनाशील व कट्टर असहिष्णू अशा बनविलेल्या ब्राह्मणेत्तर बहुसंख्यांकांच्या बेताल वर्तनावर एक अक्सीर इलाज म्हणून...
Comments
Post a Comment