साला दरवेश अपना पेट पालने जैसे भालू को और मदारी बंदरीया को नचाता है, वैसे बुढाऊ मां को भी नोट कि लाईन मे नचाया जा रहा है. अच्छा हुंवा पत्नी पहलेही दूर हो गयी है नवलखा कोट के शौकीन पंतप्रधान मोदी से. श्रीमती मनेका गांधी बहुत हि क्रूर है. उनके बम्मन होने का शायद यह नतीजा हो सकता है. उनको विषैले सांपो से भी बडा लगाव दिख रहा है जिनके साथ अब वोह निभा रही है. लेकीन वोह मदारी और दरवेश जनता जिन्हे जाती भेद के अंतर्गत वोही व्यवसाय करने को सक्ती से बाध्य किया गया था, वोह क्या खाएगी अगर उनका कमाई का साधन हि नही रहेगा तो? यरो हम जादा नशीबवान साबित होते है अबकी जनरेशन के मुकाबले मे, अगर उनके शब्द कोश मे दरवेश और मदारी आदि जैसे व्यवसाय और समाजिक स्थान दर्शक शब्द सामील हि ना हो, और जिन्हे सांप मुंगुस कि लढाई, नाचने वाला भालू, इन्सान के हुकम पर काम करने वाला सबसे निडर और खुण्ख्वार पानी का घोडा, बाघ और शेर पर ताबा रखने वाला और उनके जबडोंमे अपनी मुन्ढी डालने वाले असली जिगरबाज रिंग मास्टर खुलेमे और हमारे शहर या गावमे इतने नजदिकसे देखने ना मिलते होंगे तो. यहा कि गरीब जनता को कहा वोह खर्चीला कार्बेट नेशनल पार्क या आफ्रिकन सफारी नसीब मे है, ऐसी जंगली प्राणीयोन्की हरकते देखने के लिये, जो एक तो रास्ते के खेल मे फोकट और सर्कस मे चंद पैसोंमे अनुभव किए जा सकते थे. हमारा मनोरंजन के साधन भी तो यही मदारी और दरवेश थे. हिम्मत वाले भी बन जाते थे उनकी जंगली जानावरोंके हुकमत को देख कर. हमे याद है जब एक मदारी, जो उसके सारे विषिले और गैर विषेले सांप एकसाथ गले मे डालकर पब्लिकमेसे किसी भी एक को वैसी मर्दानगी दिखानेको ललकार रहा था तब किसी को भी आगे बढते नही देख कर हम कैसे आगे बढ कर वो सांपोंकी मालांए हमारे गले पेहेन ली थी. म्युन्सिपालीटी स्कूल मे ५ वी कक्षा मे पढता था तब मै. साला उसी वक्त दुर्भाग्यवश किसी जलु किडे ने वोह बात मेरी क्लास टीचर को बताई थी और मेरे ह्यांडसम बाप पे मरने वाली उस टीचर ने मेरे बाप से मिलनेका वो बहाना नही गंवाते, तुरंत मेरे बाप को स्कूल मे बुलवा कर कैसे तडी दिलवाई थी मुझे. अब वो मदारी और दरवेश खाली पार्लमेंट हि भेस बदल कर बैठे दिख रहे है, उनके मुखिया नवलखा कोट के शौकीन गरीब नवाझ मोदी के साथ. क्या कम्माल है यारों वहा शरीफ नवाझ तो यहा हमारे ये गरीब नवाझ मोदी ! वैसे भी अब भारत छोड कर दुनिया के हर एक कोने मे इन सभी जान्वरोन्को पालके चावसे खाया जाता दिख रहा है. कही कही तो आदमी का मांस भी परोसा गया जाता सुना है. सब बनावट और पाखंड हि चल राहा है इन शरीफ दिखने वालोंका. बम्मनिया है वोह भी. जो ५००० सालकी पुश्तैनी लेकीन अनैतिक तरीकेसे प्राप्त अहमियतता और उसके बल पर विकृत प्राप्त सधनता के बल पर अपनी हि बाजू रेटने मे गधोंके सहारे सफल दिख रहे है. कहा है उनको भारत के मूलनिवासीयोंके तकलीफोंकि कदर? जो बहोत हि आसानीसे केवल उपर वालेका डर या उसकी कृपा का लालच दिखा कर उनकी हि मातृभूमी मे, उनके लिये सर्वस्वी और सर्व तरीकोंके मुफ्त के गुलाम बनाये गये थे और अब भी बनाये जाते है. इन्होंने हि थोंपा हुंवा वोह जो उपर वाला है ना वोह भी साला कठ पुतलीयोंकी तरह इनके इशारोन पर हि नाचता है. अमरिका तो अभी अभी चांद पर पहुंची है. ये तो थेट मंगल से हि आये है. क्या नही है इनके पुराणी ग्रंथोंमे? अनु का अंतर्भाग से लेकर दिमाग के अंतर्भाग का विवरण मिलेगा उनमे. हां उस वक्त उन्होंने जो फोटो बनाके रखे थे, वे किसीने चुराए है शायद. आदत है उनकी अपना महत्व कायम रखने हेतू कुछ सिक्रेट बादमे इस्तेमाल करने के लिये छुपा के रखनेकी. अभी अभी तो ५००० सालों बाद उन्होंने हिंदू धर्म यह कोई धरम वरम ना होते केवल उनकी जीवन शैली याने कल्चर हि है यह उनका राज आम कर दिया है. आगे चलकर उनमेसे कोई स्वामी या भाटकर वो सारे चित्र पेश करके उन्हे उनके पूर्वजोंने सुरक्षितता के लिये हि अपने पास सम्हालकर रखे थे, ऐसे बताकर उन्हे पेश करके फिरसे मूलनिवासी भारतीयोंको आचंभित करनेकी संभावना असंभव नही है. सबका सोलुशन है इनकी वो पुराणी किताबोंमे. मानव जाती के निर्माता भी वो हि तो है. हां पर यह सवाल बेतुका है कि वो बम्मन मनु बिना औरत के सहारे कैसे कर पाया होगा मानव जात. अपने सहारा रेगीस्तान के मुल रिश्ते दारोंसे ये कुछ जादा हि बनेल दिखते है. वो सारे अब्राहामिक धरम वाले कमसे कम यह तो ख्याल रखते दिखे कि बिना औरत सृष्टी निर्माण हि नही हो सकती है, इस पर वहा का कोई भी आदमी विश्वास हि नही करेगा. इस लिये मानव निर्मिती का पाप वे इव्ह और आदम इन स्त्री पुरुष के गले मे मारते है. भले वे सारे के सारे केवल गाय भेंस उंट घोडे पालने के व्यवसाय बिना दुसरा कोई भी धंदा नही जानने वाली हद तक जाहिल थे. शब्दोनकि कमाल देखो. वहा के धर्म अब्राहमिक याने अब्राह्मणी और भारत का हिंदू धरम ब्राह्मण निर्मित याने ब्राह्मणी. साले नॉर्थ पोल से निकली इन अर्यवंशीयोंकी जो टोलीया योरप मे बसी दिखती है, उन्होंने इनको वहा बसने और टीकने भी नही दिया था. और रेगीस्तान के उनके आखरी पडाव के साथी भी इनसे दूरिया रखने और जताने खुद को ब्राह्मण कहलवाने से भी नफरत करते दिखते है. ऐ हिंदूओं बतावो उन पाखंडी युरोपीयन और अरबीयोंको कि उन्होंने जिनसे नफरत करके उनकी मुल्कोंसे हकाल दिया था, जिनसे वे नामसाधर्म्य भी नही चाहते थे, वो तुम्हारे बम्मन तुम्हे कैसे पूज्यनीय और देवता स्वरूप है. अभी अभी अपनी धरती जैसे और ग्रह खोजे गये है. उनका भी अस्तित्व उनको पहलेसे ज्ञात है ऐसा वोह उनकी पुराणी किताबे खंगाल कर जरूर शाबित करेंगे. इसाईओंके मुख्य पोप पॉल भी सारे काल्पनिक देवताओंको विज्ञान और उसकी खोज के आगे मट्टी के भाव मे गिनता नजर आया था, जब हिग्ज बोसॉन का अन्वेषण हुंवा था ! जैसे भारत मे उनका भाव गिरते वे हि बहुसंख्यामे भारत छोड कर भागते दिख रहे है, वैसे हि वक्त आने पर वे अपनी ५००० सालकी लुट कि संपत्ती के जोर पर अंतराळ यानसे उन पृथ्वी स्वरूप खोजे ग्रहोंपर भाग भी जायेंगे यह स्पष्ट बात है. साली बाहर देश मे मोदी के जैसी वोह भी गोमाता के मांस कि बिर्यानी भी खाती है ऐसा सुनने मे आता है. वैसे भी ये कितना भी दिखावा करे कि ये गोहत्या के कट्टर विरोधी है, पर विटंबना यह है कि बाहर देशोंमे गोमांस निर्यात करने के लिये भारत मे गोमांस कि सबसे बडी बुचरी याने कत्तलखाने तामिळनाडू मे है, जीन सारोंके मालिक केवल बम्मन है. कोई बतावो उन गुजराती गांडू भाईओंको जीन्होंने वहा मरी गाय कि खाल निकालने वाले द्लीतोंको बेरह्मी से मारा था. वे हिजडे क्या अम्मासे पंगा लेंगे, जब जिसको वो जबरदस्ती से शेर कि उपमा देते है उस मोदी कि भी वैसा करने को फटती है तो. डर के मारे हि तो मध्यप्रदेश के बहु बदनाम व्यापम घोटाले कि जाचं मे हाथ नही डाल रहा है, वो शेर कि खाल पेहना हुंवा लोमडा(लोमडी का पुलिंग!). पांचो उंगलिया घी मे है उन घी नो डब्बों बनीयों की. कभी लढवय्ये नही थे. खुद का राजा भी पैदा ना कर सके थे. कॉमर्स के सीवाय अन्य शाखाओंके अध्ययन भी कमजोर, फिर भी बनिये और मारवाडी जोरमे?
#दि. २८/५/२०१७ च्या पत्रलेखिका सामंत यांच्या पत्राच्या अनुषंगाने स्फुरलेले विचार. मंगला ताई सामंत या नावा वरून ब्राह्मण वाटतात. तसेच असेल तर माझ्या सारख्या अस्पृशातील एक असा मी व समस्त अस्पृश्य वर्गास त्यांनी मांडलेले विचार काहीसे दिलासादायक आहेत. नजीकच्याच भूतकालीन पाश्च्यात्य प्रवाशांनी नोंदवून ठेवलेल्या मतांप्रमाणे सर्वच भारतिय ढोंगी व अप्रामाणिक आहेत या समजुतीस ते छेद देणारे देखील आहेत. अद्याप हि काही प्रामाणिकता व माणुसकी रा. स्व. संघाच्या ऐतिहासिक सिद्ध विकृत पेशवाईची पुनर्स्थापना करण्याच्या धेय्याने पछाडलेल्या ब्रह्मवृंदास वगळता, अन्य ब्राह्मणात शिल्लक आहे हे सामन्तां सारख्या एका ब्राह्मण भगिनी मुळे जाणवल्या नंतर, आद्य शंकराचार्योत्तर काळा पासून ब्रिटीश राज्यकर्त्यांच्या आगमना पर्यंत, सर्वरीत्या नागवल्या व पिडल्या गेलेल्या अस्पृश्य व आदिवासी समूहात, अस्पृश्य नेते बाबासाहेब आंबेडकरांच्या अवतीर्ण होण्या नंतर प्रगती सह जी विद्रोहाची हि लाट उसळली, व फक्त ब्राह्मणांनीच बोथट संवेदनाशील व कट्टर असहिष्णू अशा बनविलेल्या ब्राह्मणेत्तर बहुसंख्यांकांच्या बेताल वर्तनावर एक अक्सीर इलाज म्हणून...
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