बेच्चारे! भाजपाइ और आर.एस.एस. वाले, स्वतंत्रता क्या होती है यह इन्हे कैसे मालूम होगी. सारे के सारे सुदखोर बनिये, दक्षणा चोर पुजारी बम्मन और उनके प्रशंसक अन्यजन प्रशिक्षनार्थी ही तो भरे है इनमे. मुसलमान मुघल हो या इसाई ब्रिटीश हो, दोनोंके भी राज मे आबाद थे यह लोग. क्या लेना देना था इनको अन्य भारतीय जनोंसे ? सूद या दलाली के रुपमे जो पैसे इन्हे ऐन्ठने और लुटने मिलते थे, वहा तक ही यह दोनो उनके लाचार बनाये भारतीय जनोंसे सम्बन्ध रखनेकी जरूरत समझते थे यह. हां अंग्रेझो और मुसलमानोंको, जो इनकी कभी भी ठोंक सकते थे, उनको खुश रखना या उनकी हांजी हांजी करना तो इनके खानदानी खुनमे ही है. देखे नही हमारा यह ५६ इंच वाला कैसे कोई वधू की तरह नौ लखा सुट कोट डालके सज गया था, जब अमेरिका का वोह काला कलुटा बराक ओबामा किसी दुल्हे की शानसे भारत मे आमंत्रित किया गया था! हमारा वोह ५६ इंच वाला गीट्टा मुंडा उस उंचे काले के ऐसे गले पड रहा था की, कही वोह काला उस ५६ इंच वालेपरका उसका हक जताने के लिये जो चुइन्गम शिष्टाचार के खिलाफ लगातार चबा रहा था, उसे उस ५६ इंच वालेके और भी चौडे पिछवाडेपे तो नही चिपकाने जा रहा है ऐसा डर सारे देसवासिओंको लग रहा था. मुसलमान राजा अकबर को भेंट चढाइ गयी कट्टर हिंदू और विर कहलाने वाले राजपुतोंकी बेटी जोधा को तो अब मेरे उस इतिहास का निंदनीय पैलू उजगर करनेके बाद दुनिया भी जानने लगी है. वरना कुछ कट्टर हिंदू गांडू भाई जोधा और अकबर कि प्रेम कहानी राजपुतोंका गौरव हि मानके उसकी पताका भगवे ध्वज के साथ नचाते दिखते थे मुझे. सिद्दी जोहर के रुपमे गुलाम रहे निग्रो शासकोन्का भी हम अनुभव ले चुके है, हमारे जातीय विभाजनोंकी वजहसे. साले सारे के सारे परकिय शासक हमारे बम्मनों जैसे उस गरम इलाके वाले इराण और सहारा रेगीस्तानसे हि जुडे है, जो खुदको इस्लामी प्रेशीत मोहम्मद के खानदान के रिश्तेदार बताते है, और उसके पोते हुसेनने खुदकेही सगोन्से जायदाद के लिये छेडी जंग मे उसे मदद करने के लिये भारतसे दूर मक्का–करबला मे दौड पडे थे! नसीब हमारा इस देसके मुल निवासियोन्का, कि उस रेगीस्तान मे पैदा अब्राहमिक धर्मोन्मेसे केवल मुसलमान और इसाई धर्मके ही लुटेरे हमारे बम्मनोंके बाद यहा आये. अगर वहाके वोह ज्यू और पारसी, जो खुद वहासे खदेडे न होते थे, तो बम्मनोंके आनेके बाद हि आये मुसलमान और इसाईओंके जैसे, हमारे उपर चढने वालोन्मे उनका भी नंबर लग हि जाता था. स्वतंत्रता कि आर.एस.एस.के बम्मन और बनियोन्की खुद्की बनाई हुई व्याख्या है. जिसके तहत इनका अनिर्बंध गैर बरताव भी कानुनी समझा जाना और औरोंने भी बिना तक्रार स्वीकारना इनको अपेक्षित रहता है. टेक्स चोरी तो बनिया गांधीनेही नमक के सत्याग्रह के बहाने बनीयोन्के लिये आम बात बना दि है. देखो ना वोह दुनिया मुठठी मे लेने कि बात करने वाला अपने आत्म चरित्र मे भी उसके टेक्स चोरी के गोरख धंदे कि भी कैसी डिंग मारता दिखता है. उसे कन्फेशन मानकर हमारे न्यायाधीश जो अन्य मसलोनमे बेधडक टिप्पणी करते है, वोह भी इस मामलेमे सुओ मोटो पी.आय.एल. दाखील करनेमे कोई रुची नही दिखाते. उनमे भी तो सारे मारवाडी, बनिये, बम्मन, पारसी और मुसलमान हि भरे है जो पहलेसेही सुस्थापित देस वासियोन्मेसे है. उन्हे कहा विस्थापितोंकी खस्ता हलातसे पडी होगी और गुनहगार प्रस्थापितोंको कटघरे मे खडे करनेमे रुची होगी? स्वातंत्र्यता संग्राम मे इस आर.एस.एस. का जरा भी योगदान नही रहा है. देस वासियोन्से जैसे इन्हे कोई लेना देना नही है उसी तरह इन्हे देस कि प्रतिष्ठा से भी कोई लेना देना नही है. उनकी खुद्की प्रतिमा हि वोह नचाना चाह्के वोह लोग मुल निवासियोन्को, जो बम्मनोंसे सौ गुना जादा है, उन्हे पीछले ५००० सालो जैसे ही, अब भी संमोहित और साभ्रम्भित रखना चाहते है. हर एक भारतीय जिसे अपनी निकम्मी छबी कि तरफ दुनिया को केवल आकर्षित करनेके लिये सायलेंट झोन मे भी लगातार अपनी टमटम का भी हॉर्न बजानेमे शरम नही आती, वैसे सेल्फी के जरीये अपनी निकम्मी छबी दुनियाके गले जबरदस्ती मारने मे भी शरम नही आती. और खूदकि छबिया झलकाने मे बम्मन और बनिये तो माहीर हि है. हमारे मोदी साब उपर जैसे वर्णन किया वैसे खुद्की छबी के सबसे बडे आशिक है. शायद उनकी छोडी हुई औरतके भी वोह उतने आशिक नही रहे होंगे. आर.एस.एस. और उसका पिल्ला बी.जे.पी., दोनो भी खूद कि मलीन प्रतिमा को भी सुंदर दिखानेमे और वैसी सुंदर बनाई मलीन प्रतिमा को जनोंके उपर थोम्पने मे माहीर यशस्वी है. उनकी पीछली टर्म के कारगिल युद्धमे हमारा चीर दुष्मन पाकिस्तान ने हमारे देसकी सीमा लांघकर हमारे कई जावानोंको मौत के घाट उतार दिया था. वोह तो इनके पीछवाडे पाकिस्तान ने मारी जैसे एक लाथ थी. पर इन बेशार्मोन्ने उस लांच्छनास्पद घटना को विजय दिन करार करके देसावासियोन्पर थोम्प दिया. उसे अपनी पराभव भी नही मानते, यह बेशरम. डर लग रहा था कि कही यह लोग पठाणकोट हमले को भी दुसरा विजय दिन नही बना रहे है. स्व. इंदिराजी गांधीजी की चीर दैदीप्यमान प्रतिमा को हमेशा मलीन करने के प्रयास मे कोई भी कसर नही छोडते यह दलाली खोर और विजय दिनोंके भूखे लोग. हाफिज सैद को रिश्वत देके भागानेकी इनकी कृती कि भी देस वासियोन्से माफी नही मांगी इन्होन्ने, अब दुसरी टर्म मे सत्ता पर आ सकने के बाद भी. अब उरी का मामला! ऐसे सर्जिकल स्ट्राईक किसी भी देस कि आर्मियोन्के लिये नई बात नही है. पीछे भारतके पुरुलिया मे भी हवाई जहाजसे शास्त्र डाले गये थे. वोह भी तो किसी दुश्मन देसके ऐसे हि सर्जिकल स्ट्राईकका ही भाग रहा होगा. सुना है हमने कि कीस देस कि बद हरकत थी वोह, अबतक? गुप्त रखी जाती है ऐसी जनकारीया. ढोल नही पीटा जाता है ऐसी खबरोन्का, जैसे यह बीजेपी कि ढोली बाजा पार्टी कर रही है. श्रेय लेने भूखे लकडबघ्गेकि झुंड कि तरह दौड पडते है यह लोग. माना नये है, माना इनको दलालखोरी के अलावा राजकर्ता का जरा भी अनुभव नही. (दलालखोरी:-बम्मन देव दर्शन के लिये लेते वोह घुंस, और बनीयोन्का ब्यापार तो दलाली पर हि चलता है, इसी लिये इन्हे दलाला खोर कह रहा हु. किसीकी भावनान्को चोट पाहुन्चाने का कोई अप्रामाणिक इरादा नही है.) पर इसका मतलब यह तो नही कि यह सेल्फी ग्रस्त बिमार अपनी प्रतिमा झलकानेके हि एकमेव उद्देशसे देस कि आर्मी के राज भी इस्तेमाल करे. कल कि तारीखमे यह लोग हमारे रॉ के जो गुप्त चर तिब्बत, बांगलादेश, चीन और पाकिस्तान जैसे देसोंमे तैनात और जान कि जोखीम उठाकर काम कर रहे है, उनके अछे काम का श्रेय लाटने के लिये उनके नाम भी जाहीर करनेमे बुरा नही मानेंगे. गलत है ना यह सब ?
Comments
Post a Comment