संघर्ष अटल है ! जहा तक उनका दुखडा आरक्षण से सम्बंधित है तो हमे उनसे कुछ भी लेना देना नही था. लेकीन महाराष्ट्र ही नही तो पुरे भारतकी एक मात्र सवर्णके उपरकी दो अस्पृश्य मद्यपींओंकी, महाराष्ट्रके कोपरडी गांव मे घटी, एकमेव शर्म दायक और घिनौने अपराधकि घटनाके सहारेहि अगर वोह अल्पसंखांक ऐसे पुरे अस्पृश्य समाजको खुदके बहु संख्यांक होनेका गैर फायदा लेकर यह संदेश फैलाना चाहते है की दलीतोंके उपरके उनके असंख्य और अखंड अत्यचार दलितोंने बिना प्रतिकार स्वीकारनाहि योग्य है, तो वह उनकी भूलहि नही तो इस आधुनिक युगमे उनकी मानसिक विकृती का भी लक्षण है. इतने अत्याचार हुए दलीतोंपर, एक भी सवर्ण या उनके अखिल भारतीय कह्लाने वाले पारटीर्ओन्के नेताओंने भी कभी उनके निषेध का एक भी शब्द नही निकाला. वोह तो छोडो मनूस्मृती कि तहत क्षुद्र मे गिनती होने वाली ओ.बी.सी. जाती, जिनके लिये आरक्षण का प्रावधान रखने के लिये अस्पृशोन्मेसेहि एक बाबासाहेबजी ने हि प्राथमिकता दि, उन्होंने भी कभी आवाज उठाया ऐसे दिखा नही. जो कुछ लोग कुणबी एकटर नाना पाटेकर कि तारीफ आत्म हत्याये करने वाले गैर दलित किसानोंके लिये बहाए उसके आंसूओंकी वजहसे करते है, उस नाना ने भी बेरहमिसे जलाए गए और मृत दलित औरातोंके भी योनी मार्गोन्मे बांबू घुसाडने वाले विकृत सवर्नोंकी कभी निंदा करना तो छोडो लेकीन उनके लीए दो आंसू भी नही बहाए. अब तक हम बम्मनोंको ही पुरे भारतमे विकृत समझ बैठे थे, जो गैर बम्मन सवर्नोंकी पत्नीयोंकी भी, उनके ही समाजके लेकीन हमारे लिये बाबासाहेब आंबेडकरजीके आदर्श और आश्रयदाता होने के नाते और उनकी सर्व धर्म और जाती समभाव वृत्ती और अचाट कारनामोन्की क्षमता कि वजहसे हमेभी परम पूज्यनिय ऐसे छत्रपती शिवाजी महाराज के पूज्यनिय वंशज छत्रपती शाहू महाराज के भाषनोंमे वर्णीत घटनानुसार, दक्षणा के रुपमे कुछ रातोंके संभोग के लिये मांग करके, जबरन ले भी जाते थे और फिरसे लौटाने का नाम भी नही लेते थे. व्यर्थ है इनका जिना अगर यह लोग मराठा राज लांच्छनास्पद तरीकेसे डूबोने वाली पेशवाईके बम्मनोंके उनके उपरके अनिर्बंधित और अनैतिक स्वामित्व को भूल बैठे है, और अभी भी उसे बिलकुल गैर नही मानते. लांच्छनास्पद है अगर यह स्वाभिमानी कहलानेवाले लोग, जो छत्रपती शिवाजी महाराज का नाम, बम्मन केवल उन्हे फुसलानेके एकमात्र उद्देशसे हि जोर शोरसे लेते है, लेकीन शिवाजी महाराज जैसे हि नही बल्की उनसेभी बढकर उनका सामाजिक समता का अभियान, उस कर्मठ काल मे भी अस्पृशोंको ५० टक्का आरक्षण देकर चलाने वाले हिम्मतवान छत्रपती शाहू महाराज का नाम भीबम्मनोंको अवंद्नीय हि नहि तो तिरस्करणीय भी लगता है. लांच्छनास्पद है अगर यह लोग उनके हि कर्मवीर भाऊराव पाटीलजी और महर्षी शिंदेजी का यह बम्मन तिरस्कार करते है ऐसा सर्व ज्ञात होने पर भी चूप रहते है. इनकी मानसिकता देख कर यह लोग जो महात्मा फुलेजी को उनसे निचले माली जातीके होने कि वाजहसे हि बम्मनों जैसे उनका भी तिरस्कार करते है इसमे अचरज कि कोई बात नही. बम्मनोंका तो ठीक ही है. चाणक्य के जमानेसे शुरू हुआ उनका दगाबाजी और कृतघ्नताके वोह स्वार्थी गुन उनके रग रगमे हि भरे होनेसे उनके मरते दम तक उनके खूनकि वोह दुषितता जाना बिलकुल असंभव है. पर शिवाजी महाराजजी के खून के होने का दावा और उसका अभिमान करने वाले यह लोग बम्मनों जैसे दक्षणा के समय लाचार होकर भी वक्त पर दगाबाजी नही भूलने वाले हो सकते है ऐसा पुरा विश्वास, कम से कम महाराष्ट्र कि आम जनता, जो महाराष्ट्रके बाहर के क्षत्रियोन्का केवल राजपाट सुरक्षित रखने के हेतूसे हि बेटीयाहि नही तो बिबिया भी मुसलमानोंको भेंट करनेके व्यवहारसे अवगत है, उनको था. बम्मनोंकी बेटी और बिबिया, जो आज महाराष्ट्र हि नही तो पुरी दुनियामे जो अति प्रगत और आक्रमक आग्रेसर दिखती है, उसके पीछे क्षुद्र मे गिनती कि जाने वाले महात्मा फुले जी और उनकी देवी समान पत्नी, माता सावित्रीबाई फुलेंका हि बडा त्याग, बलिदान और योगदान है. वोह बम्मनिया जो माता सावित्री बाई कि हि वजहसे पढी लिखी है, वोह अगर आज पढी लिखी नही होती तो सती कि प्रथा, जो अभी अभी तक भी छुपकेसे सही, सारे छुपे कार्मठो द्वारा सराहनीय और समर्थनिय और अंमलमे भी लाई जाती है, उसके तहत बहुत सारी आजकी खुबसुरत बम्मनि हिरोईनोंके मुखडोंके के दर्शन भी दुर्लभ ही होते थे. महात्मा फुलेजी और सावित्री माता सही मे कुछ हद तक क्रांतिकारक हि थे. मै उन्हे कुछ हद तक हि क्रांतिकारी थे ऐसे क्यू कह रहा हु यह मै मेरे पीछले बहुत सारे लेखोंमे विस्तारसे बयान किया है, उसे यहा दोहराना अभी योग्य नही है. बम्मन तो बेईमान और कृतघ्न है हि पर उनकी बहु बेटीयोंका दिल तो औरातोंका होने के नाते कमसे कम दयावान और कृतज्ञ होना चहिए था. फुलेजी ने एक बेवारस बम्मन लडके को गोद लिया था, यह बात भी उनको तिरस्करणीय मानने वाले बम्मन और बम्मनिया भी भुलती है, यह तो कृतघ्नता कि अनोखी हि मिसाल होगी. मराठा राज दक्षिण मे तंजावर मे भी था. वहा मराठी तो क्या हिंदी भी नहि चलती है. मराठी बम्मन के.सी.पंत, जो यु.पी. मे मुख्य मंत्री रह चुका, उसे तो मराठी भुलना हि था. बडोदा, झांसी मे मराठी बोली जाती है पर महाराष्ट्र के नागपुरिओं जैसे वहा के मराठी भी हिंदीमे हि बोलना पसंद करते दिखते है. वोह सब छोडो, महाराष्ट्र के मराठी घारोन्मे भी हिंदीमे हि बाते करना आम बात दिखती है. यह मराठीओंका महाराष्ट्र हि एक ऐसा है जहा बाहर वाले भी और वाले हि मराठीओंके सर पर बैठते दिखते है. कमाल कि बात तो यह है कि जीन बनियों और मारवाडीयोंको भेकड या लडकिया मुसलमानोंको बेचने वाले ऐसा मराठाओंमे आपसमे कहा जाता है, वोह भी मराठाओंको उनके महाराष्ट्र मे हि अपनी बिल्डिंगोंमेसे कुत्ते के जैसे हकालने कि हिम्मत बेझिझक करते दिखते है. क्या उखाड पाए है यह महाराष्ट्रीय बहु संख्यांक मराठा उन बाहर वालोन्का? गुजराती प्रफुल पटेल माली जातीके मराठी छगन भुजबळ से जादा प्रभावी और अति निकट है इनकी मराठोन्की हि जाने जानेवाली पार्टी मे. इनको अब तक नेतृत्व भी बनिया महात्मा गांधी का और उसके बाद निम्न स्तरिय बम्मनोंका हि रास आता था. अभी अभी कोपरडी के बहाने झुंड जमाने मे यशस्वी वोह, पहली बार उनके उस मृत निम्न स्तरीय बम्मन नेता के उनके हि फिरौतीयोन्के सहारे शुरू किये गए और चलाए जा रहे वृत्तपत्र के कार्यालय कि तोड फोड करनेको उतारू दिखे, वरना बम्मन नही तो नही उनकी नक्कल प्रत के हि ताक मे रहे रहनेका अनुभव किया गया है उनको आज तक, सच्चे नायक शाहू महाराज के बजाय. ५००० सालोंसे बिन विरोध मलाई खाने के और केवल और केवल बम्मनोंकेहि बदौलत अनैतीकतासे अपने हि अन्य मुल निवासीयोंके उपर प्राप्त स्वामित्व के आदी होनेसे ऐदी और निकम्मे आलसी बने इन वैफल्य ग्रस्त और नाकाबिल लोग जब ऐसे हिंसक होके अंधाधुंद होते है तब अपनी कमजोरीया धुंडके दूर करनेके प्रामाणिक प्रयासोंके बजाय वोह घर कि बुढाउ मा को हि उनकी अधोगती का कारण मानते है और उसको पंखेसे लटकाते है. ऐसोंके लिए मराठी मे हि बहुत हि अछी और चपखल कहावत बनाइ है. दुर्दैव वश उसमे भी उस घीनौनि जाती प्रथा के तहत बली का बकरा ओ.बी.सी. गुरव जमात को हि चुना है. वोह है “व्हई ना कुणाच तर उपटा गुरवाच.” देखते है महाराष्ट्र के बाहर रहने वाले इन नाकाबिलीओंके रिश्तेदार क्या प्रतिक्रिया दर्शाते है. पर्वा मत करो इन नाकाबिलोन्के रीश्तेदारोन्की जो तुम्हारे प्रांतोंमे जी रहे है.
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