दोस्तो मै पेशवाई दिमागके कुछ विकृत बम्मनोंका और उनके बुद्दू बनाये चेलोंके बीजेपी वालोन्का जानी दुश्मन हुं. लेकीन पुरे भारतीयोंमे केवल बाकी बम्मनोंकी जनता का हि बहुत बडा फ्यान याने प्रशंसक और शुकरगुजार भी हुं! प्रशंसक इसलिये हुं कि केवल वो हि पुरे भारतीयोंमे नव अन्वेषक और नव स्वीकारक है. याद रहे कि ऐसे लोग हि नयी खोज कर सकते है, और जब उसकी उपयुक्तता खतम होती या वह खोज हानीकारक शाबित होती, तो नव निर्माण और स्वीकार करनेकी दुर्लभ क्षमता उनमे होने कि वजहसे हि अपनी हि खोज नष्ट करनेमे जरा भी हिचकीचाते नही. जब उनमेसे कुछ बम्मनोंको मनुस्मृती का घीनौनेपण और अमानवियता उजागर हुंइ, तो पुरे भारत मे आजतक वोही सह्जतासे उस बम्मनों द्वाराहि निर्मित मनुस्मृती जलाते दिखे है. और बाकी सारे उनके बुद्दू बनाये भारतीय उस अमानवीय मनुस्मृती को अब भी गले लगाते बैठे दिख रहे है. वोही पहले भारतीय है, जिन्हे बुद्ध धर्म का महत्व भारतीयोंकी सांस्कृतिक उन्नती और भौतिक प्रगती के लिये अत्यावशक महसूस होने पर तुरंत हिंदू धर्मको त्याग कर उन्होंने बुद्ध धर्म का स्वीकार किया. दोस्तो आर एस एस के प्रमुख भागवत जी भी वैसे प्रगतीशील हि साबित हुंए जब उन्होन्नेही ५००० सालोनबाद पहली बार उनकी निर्मिती ऐसे हिंदू धर्म को नाममात्र संस्कृती हि है ऐसे स्वीकार और जाहीर भी किया. हो सकता है वो आर एस एस कि घटना के तहत और उनके इर्द गिर्द के सनातनी बम्मन और सनातनी बनाये बुद्दू अन्य भारतीयोन्के जमावडे के कारण वे उतना हि साहस कर सके. लेकीन याकिन मानो आगे चलकर उन्होंने भी भविष्य मे बुद्ध धर्महि अपनाया तो आचरज कि बात नही होगी. अब इन पेशवाई दिमागके बम्मन, खास करके अपनी लडकी का ब्याह मुस्लिम से करके देने वाले बुढवू लालकृष्ण अडवानी और छचोरे कारण के वजह छोटे भाई के हाथो मारा गया प्रमोद महाजन इन्होंने बाबरी मशीद तोडनेकी तिथी हमारे बाबासाहेब जी कि पुण्यतिथी पर हि रखी थी. उनमे उनके दो उद्देश्य साफ दिखते है. एक तो ६ दिसंबर को भयभीत बनाकर भीम दिवानोंकी संख्या को तोडना और दुसरा उद्देश्य साहसी भिमदिवानोंको उन भेकडोंकी भीड मे मुसलमानोंके खिलाफ खिंचना. उनके उद्देश असफल रहे. प्रमोद महाजन तो उप्पर गया और अडवाणी को मोदी ने पाताळ मे हि ढकेल दिया. यह हरामखोर मोदी और बीजेपी वाले भी बाबासाहेब जी का जनमानस के उपरका प्रभाव कम करनेके हि मौके धुंडते रहते है. इसी लीए गत साल महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री फडणवीस और मोदी इंदू मिल के समारोह को टालने के लिये जानबुझ कर परदेस भाग गये थे. छकडे फडणवीस के पीठ पर बनिया रंडवे मोदी ने हाथ क्या रखा तो वो एकमेव मर्दानी ऐसी औरत जात पंतप्रधान इंदिराजी को भी कमी दिखानेकी कोशिश करता दिख रहा है. सालोन्का पब्लिक कि शोर्ट मेमरी पर गाढा बिश्वास दिखता है. वरना फडणवीस कि चाची शोभा फडणवीस के तुवर डाल घोटाले को विरोधी अहम मुद्दा बनाते थे तो फडणवीस मुख्यमंत्री बनना तो दूर, चुनके भी आना मुश्कील था. साले विरोधी और बीजेपी एक हि थाली के चट्टे पट्टे और दलित विरोधी है. कभी आया शरद पवार या दिग्गज ओबीसी नेते बाबासाहेब जी को श्रद्धांजली अर्पित करने? नमो बुद्धाय! नमो शिवराय! नमो शाहुराय! नमो भीमराय!="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
योरोप के रशिया, फ्रांस, ब्रिटन आदि देशोंमे जनता और राजे सारे के सारे आर्यवंशीय हि थे. फिर भी आर्य वंशीय जनताने उनके आर्य वंशीय राजा रानीयोंको गाय बकरी से भी क्रूर पद्धतीसे गिलोटिन के नीचे रखकर मारा था. उनके राजवाडे और महल भी फुंक दिये थे. यह इतिहास हमसे जादा पुराणिक नही है. पश्चिम आशियाई और उससे सलग योरोप के पाश्चिमात्य मुलुकोंके मूलतः निवासी मुसलमान और अंग्रेज इनकि भारत मे घुसखोरी के बहुत पहले उसी पश्चिम आशियाई मुलुक से भारतीय हिंदू धर्म के जनक और अद्यापि पालक, ऐसे ब्राह्मण भारत मे घुसखोरी करने वाले सर्व प्रथम ऐसे आर्य वंशीय है. उन्होंने जिसे धर्म के नामसे भारत के मुल निवासी सपुतों पर थोपा था, वोह हिंदू यह धर्म था हि नही, ऐसे भारतीय सुप्रीम कोर्ट का सत्यान्वेषी फैसला हुआ है. वोह हिंदू नामकी एक संस्कृती मात्र हि है, जिसकि नियमावली ब्राह्मनोंने मनुस्मृती नामके पुस्तक मे गठीत की है. वर्तमान अघोषित ब्राह्मण मुखीये ने भी समस्त ब्राह्मनोंकी ओरसे, उस उन्होंने ५००० सालोंसे यहा के मूलनिवासी, जिन्हे वे अभी भी झुठ से हिंदू घोषित और साबित करनेके अथक प्रयास कर रहे है, उनसे छिपाया हुआ सत्य आखिर मे...
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