महात्मा फुले जी का महत्व मेरे लीए इसलिए है कि उन्होंने हि मनुस्मृती के तहत हिंदू धर्म मे अवध्य बनाये गये, बम्मनोंके भास्कर कुलकर्णी जैसे मुसालमानोंके कुत्ते नौकर कि कत्तल करके यह संदेश दिया कि बम्मन अवध्य हि नही, तो नंद जैसे सम्राट रहे सारे मुलनिवासीओंके साथ भी कभीभी अगर वे कुत्ते जैसेभी वफादार और इमानदार नही दिखे, तो कुत्ते कि भी लायकी के नही, ऐसे अर्वाचीन इतिहासके पहले क्षत्रिय राजा छत्रपती शिवाजी के बाद वे भारतके पहले और आखरी गैर क्षत्रिय ओ.बी.की. थे, जीन्होंने बम्मनोंकी पोल खोल कर बम्मनोंको खुलेआम गाली देनेके युग कि शुरुआत कि. उन्होंनेही अछुतोंके के लिये अपने घर के पानिका स्त्रोत खुला करनेका साहस भारत मे पहली बार दिखाया. बम्मन राजा राममोहनजी ने बम्मन औरते सती जानेसे बचनेके लिये केवल सती प्रथा का हि विरोध किया, पर फुलेजि ने तो समस्त स्त्री जातीको शिक्षण देके स्त्रीओंको आत्मसन्मान दिया. उनकी पत्नी माता सावित्रीबाई फुले जि का भी उसमे वंदनीय योगदान है. शाहूमहाराजजि को भी, उनसे हि आर्यसमाज को अपनाकर हिंदू धर्मको और उसके मालिक रहे बम्मनोंको हटानेकी प्रेरना उन्हीसे मिली. एक मायनेमे महात्मा फुले और माता सावित्रीबाई ये दोनो ओ.बी.सी. हि क्षत्रिय शिवाजीके बाद भारतं मे युगप्रवर्तक थे. फुलेजी की जन्मतिथी पे उन दोनोंको मेरे लाख लाख प्रणाम करते हुए भी एक बात का दुख यह भी रहेगा कि अगर उन्होंने अनाथ बम्मन यशवंता, जिसे बम्मन भी अपनी शान और व्यर्थके आत्मसन्मान कि डिंग मारनेके लिये, कोई भी मन्दिर या मठ मे पुनर्स्थापित करके उसकी उपजीविका और विकास का प्रबंध आसानीसे कर सकते थे, ऐसे बम्मन बच्चे को गोद लेने के बजाय फुले दाम्पत्य सर्वथा वंचित ऐसे अछूत समाजके कोई भी सनाथ बच्चे को भी गोद लेते थे, तो वोह भारतकी हि नही तो अमरीकी निग्रोंकी मुक्ततासे पहले कि दुनियाकी सबसे बडी गुलामी मुक्तता कि क्रांती काह्लाई जाती थी. बाबासाहेब आंबेडकरजि का जनम १८९१ मे हुआ. अगर फुलेजी कोई भी अछूत बच्चे को गोद लेते थे, तो शायद अछूतोंके एक और किसी उद्धारकर्ता उगम बाबासाहेबजी के पहले भी हो सकता था. इसिलीए हि मै मेरी हर पोष्ट मे महात्मा फुलेजी को युगप्रवर्तक क्रांतिकारी बताते हुए भी उन्हे अधे क्रांतिकारी हि मानता रहा हुं. उन्हे और माता सावित्रीबाई को उनके बम्मनोंको प्रताडने के युग कि शुरुआत करनेके और अछुतोंके, स्त्रीयोंके उद्धरण के अमूल्य योगदान के लीए फिरसे लाखो प्रणाम. नमो बुद्धाय,नमो शिवराय, नमो शाहुराय,नमो भीमराय!
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