~ क्या हमे एक नही होना चाहिये? ~~~ किसीसे लाइक या शेअर ऐसे कुछ पानेकी अपेक्षा बिलकुल न रखते हुये, नया कुछ देना ही चाहता ही आ रहा हुं. जो हमे कह्ना है वह बहूत सारा सबसे पहले हम ही कह चुके है, जो बादमे फुरसतसे एक एक करके कोई ना कोई दोहराता दिखाई भी देता है. आनंदही होता है, इस तरह मेरे ही विचारोंको फैलते हुए देख कर, और विचारोंकि ऐसी आदान प्रदान को देख कर. दर्द इस बात का है की, जब मै खुद सारे बालकोंको भी फ्रेण्ड रिक्वेस्ट भेज कर सभी एक दुसरोंके साथ कमसे कम इस नेट के मंच पर तो एक दिखे ऐसी कोशिस करता रहा हुं, तब हमारे अपनेही एक दुसरोसे अपनी अपनी जाती का डिंग मारते परहेज करते दिखते है. कब बन्द करेगे हम यह सब नादानिया ? वहा वो नौटंकि अमित शहा और मोदि तो १० करोड सभासद का झूठा हि सही, लेकिन दावा करके, उनके इंटरनेट के किडोंकि मददसे उसे सचमे डीजीटली तबदील करके बेशर्मिसे दुनिया भर उसकी डिंग मारते फिरते दिखते है. क्या उन पाखंडी और मतलबी किडोंसे हम दिलदार, जानदार और इमानदार लोग कोई धन दौलत के मतलब के लिये जुडने कि कोशिस कर रहे है या हमारे उपर हो रहे अत्याचार और अन्याय के खिलाफ जंग लडने के लिये एक होने कि गुहार लगा रहे है? अब तो बम्मनोंकेहि फुसलानेसे और उनकी बुद्धी और इशारोंसे हि, यह सारे गैर बम्मन बुद्दू अटरोसिटी एकट भी रद्द करनेके पिछे पडे है. यह बम्मनोंके पैर धुले पानी को पवित्र मानकर और हजार सालोंसे उसे पिकर उल्लू बने बुद्दु गैर अछूत और गैर बम्मन हिंदू, उनके अपनेहि शाहू महाराज, महात्मा फुले और बाबासाहेब आंबेडकरजी के अनुयायी बनकर हिंदू मनुस्मृती जलाने वाले, नव विचार स्वीकारने वाले मराठी साहित्य संमेलन के अध्यक्ष श्री श्रीमाल सबनीस व बुध्द धरम अपनाये प्रसिद्ध गजलकार सुरेश भट जैसे बम्मनोंको स्वीकारने के बजाय अभी भी तिलक, सावरकर, गोळवलकर जैसे कर्मठ बम्मन और अन्य उल्लुओन्मेसे खाली तोते के पद तक हि पदोन्नती पानेवाले मोदि जैसे तोते हि करिबी और आदर्श मानते है. हमे, जो उनके जैसेही पर बम्मनोने कपट नितिसे उनसे अलग किये हुए मुल निवासी भारतीयोंको, कौन बचाने आएगा अगर हम एक होकर मुठी नही दिखाएगे तो ? बम्मनोंसे शुरुआतसे उल्लू बने यह गैर बम्मन एतद्देसी हिंदू, जो शिक्षा का और राजपाटका अधिकार हमसे पहले पा चुकनेके बावजुद भी छत्रपती शिवाजी महाराज के बाद छत्रपती शाहूमहाराज हि उनमे ऐसे पा सके, जिनके नाम का डंका बम्मनोंके सारे नेता व देवताओन्से भी ज्यादा दुनिया मे बाबासाहेब आंबेडकर जी के साथ बज रहा है. उनको अब भी उनकी औकात समज में नही आ रही है. चुंकी उनके चुने हुये आदर्श और गुरु भारतमे सबसे भ्रष्ट ऐसे बम्मन है इसी लिये हि हमारे बाबासाहेबजी के साथ नाम लेने लायक, पुरे भारतमे उनमें शाहूमहाराज के बाद उनके जैसे कोई नेता पैदा हि नही हो सका उनमे तक. बुद्ध, उनके बाद अपने राज्याभिषेक और शादी के वक्त केवल उंची दक्षना के लिये उन्हे नडने वाले बम्मनोंकी कि असलीयतसे बहुत अच्छी तरह अभ्यस्त शिवाजी महाराज, जीन्होने हिंदू शास्त्रोंके अनुसार बम्मन अवध्य ठहरा गये है यह मालूम होते हुये भी मुसलमान अफझलखान के कुत्ते बम्मन नौकर भास्कर कुलकर्णी को कुत्तेकीही तरह मारना उनका फर्ज समझा,उनके बाद शाहूमहाराज, महात्मा फुले और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने बम्मनोंको ललकारनेसे हि आज के जैसा नाम कमा पाये. इन गैर बम्मनोंका बस चलता तो वोह सब ऐरे गैरे नत्थू खैरे बम्मन लिखित मनुस्मृति के सहारे बम्मनोने दिये एक इशारे पर भी हर गली कुचेसे एकसाथ निकलकर और मिलकर हमारे घर दारो के साथ हम सभिको फुंक हि देते थे, अगर हमारे बाबासाहेब ना होते तो. नसीब हमारा कि पर देसीयोने दिये हुये इस नेट के जुडे होने कि वजहसे हि हमारी आवाज दुनिया कि हर कोनेमे ना सिर्फ सुनाईहि देती पर जोर शोर से गुंजने भी लगी है, और हमारे मसिहा बाबासाहेब आंबेडकर दुनिया कि बलाढ्य अमरिका के व्हाईट हाउस पर भी राज करते दिख रहे है. आफ्रिका हि नही तो आर्यन बहुल योरोप और अमरिकामे भी केवल २०० सलोनकी खरीदी हुई गुलामी भूगतने वाले आफ्रिकाके निग्रोमेसे एक बराक ओबामा जैसे लोग वहा और बलाढ्य अमरीका के भी मुखिया बने दिखाई देते है, तो हमारे अपने खुदके भारत मे हम हिंदू धर्म के संविधान मनुस्मृती के तहत, भारत के सभी कोनेमे और सभी के मुफ्त के गुलाम बनाये गये अछूत और बौध धर्मियोन्को इस देस के खरे मुखिया याने पंतप्रधान पद तो छोडो, लेकीन किसी राज्य का भी मुख्यमंत्री बननेके कोई आसार नजर नही आते है. हमे अगर यह स्थिती बदलनी है तो हमे हमारे स्वतन्त्र स्थान या राष्ट्र के अलावा अब कोई चारा बचा हि नही है. हो जाने दो हमारे इस सबसे प्यारे मातृभूमी के और भी टुकडे जहा परदेसी और भारत के कुल आबादी के केवल साडे तीन टक्के बम्म्नोंमेसे एक ऐसे पंडीत नेहरु ने, पराये मुसलमानोंको भारत जैसे क्या उसके बाप कि जहांगीर थी ऐसे समझके पाकिस्तान देकर भारत को टूकडोमे बांटनेमे शरम नही कि. भारत अखंड छोडा हि कहा है इन परदेशी मुल्क के ब्म्मनोने और उनका पैर धुला गंदा पानी पिनेमे धन्यता मानने वाले, उनके प्रथम बुद्दू और उच्च श्रेणी के गुलाम बनाये इन गैर बम्मन गैर अछूत नामर्दोने, जो परदेशी बम्मनोंकी जगह हमे हि पराये और गैर मानते है ? अछूत और बुद्धोंके लिये स्वतंत्र दलित स्थानकी मांग मै मेरे बहुत सारे पोस्तोंमे पह्लेही और बार बार कर चुका हु. सहारा रेगीस्तान के गरम मुल्कोंमे जनमे ज्यू, इसाई और मुसलमान धर्मोन्मेसे मुसलमान राज यहा केवल ८०० सालो तक ही रहा क्या, तो उनको हमारे इस भारत का एक हिस्सा दिया जाता है. उन्होंने भी बम्मनोंके साथ साथ इस देसको लुटने के बावजुद पाकिस्तान के साथ उन्हे ५५ करोड रुपये भी दिये जाते है. तो हम और दुनिया की शांती के अव्वल प्रवक्ता ऐसे हमारे तथागत बुध्द इस धरतीके मुल पुत्र होते हुये और हमारे बहुत सारे बुद्धिस्ट सम्राटोने, जीनमे मुसलमान मुघलोन्के मुसलमान बनने के पहले बुद्धिस्ट रह चुके पराक्रमी कुब्लाई खान जैसे परदादाओन्का का भी समावेश होता है, उन्होने भी मुसलमानोंसे ज्यादा लंबे अर्से तक यहा और ग्रीस साम्राज्य तक राज किया है, ऐसे उनके वंशज रहे हमको भी इस देसका एकाद हिस्सेकी मांग करना गैर थोडा हि होगा? बाहरी देसोंसे आये हुये या परदेसी बम्मनोने लदे हुये सभी ईश्वर, लॉर्ड, गोड, अल्ला या मुल्लाओ जैसे हमारे लिये भगवान स्वरूप ऐसे बुध्द परदेसी ना होकर वे इसी धरती कि देन ही. इस लिये हमारा स्वतंत्र राष्ट्र बनने के बाद भी हम भारत के प्रती कायम एह्सानमंदहि रहेंगे. वैसे भी एहसान फरामोशी हमारे खूनमे है हि नही. याद रहे हमारे उन बुद्धिस्ट राजाओन्के काल को भारत का सुवर्ण युग कहला जाता है. मुसलमान और बम्मनो जैसे उन्होने भारत और यहा कि जनता को लुटनेका काम कभी नही किया. मुसलमान उनके झकातकि प्रथा कि तारीफ क्या कर पाएंगे जब बुद्धिस्ट सम्राट हर्षवर्धन गरिबोंको बाटनेके लिये अपने बहन से भी भिक मांगता था यह हकीकत जान कर ! यह भी गौर करने लायक है कि मनु के रुपमे हिन्दु धर्म के संस्थापक और शंकराचार्य के रुपमे हिंदू धर्म के शुरुआत से चालक और मालिक रहे बम्मन मुसलमानि पैगंबर मोहम्मद के खानदानसे खून का रिश्ता रखते है. वह रिश्ता इमानदारीसे निभाते हुये वोह मोहम्मद के पोते हुसैन कि राजपाट पाने कि लढाई मे, उसकी तरफ से लडनेके लिये यहा दुरके भारत से अरबस्तानमे मक्का के करीब करबला तक दौडे थे. हुसैन ने उन्हे तारिफ के तौर पर हुसैनी बम्मन कह कर नवाझा भी था, और कल तक बम्मन उसमे गौरव भी मानते दिखे है. इतनी इमानदारी बम्मनोने मूलनिवासी सम्राट नंद और हमारी शान शिवाजी महाराज के साथ भी नही निभाई थी. बम्मन की ज्ञात पहली दगाबाजीका सिलसिला सम्राट नंद के दगाबाज बम्मन नौकर चाणक्यसे जो शुरू हुआ है वह मुसलमान अफझलखानके इमानदार बम्मन कुत्ते भास्कर कुलकर्णी के शिवाजी पर किये जानलेवा हमले तक हि सीमित नही रहा. शिवाजी के बाद उनके महा पराक्रमी और शेरदिल बेटे संभाजीराजे को भी एक बम्मन कबजी कलुषा, जिसे जैसे चाणक्य कपटी और नीच साबित होने पर भी उसे बम्मनोंने महान अर्थशास्त्री बताके मशहूर किया उसी तरहसे आदर से कवी कलश नामसे मशहूर करना चाहते है, उसने भी तो संभाजी राजेको मदिरा का पागल बनाके मुघल औरंगझेब के हवाले करनेका षडयंत्र रचाके सफल भी किया था. बेहाल मारे गये थे हमारे सामर्थ्यशाली मराठा संभाजी महाराज एक बम्मन ने लगाई आदत कि वजहसेहि! मराठा शिवाजी का भारत का पहला मराठा राज बम्मन पेशवाने हि तो डूबो दिया. अब साले शिवाजी के नाम और प्रतिमा का इस्तेमाल खुद्की गंदी प्रतिमा सफेद करनेमे करते दिखाई देते है. सोचो अगर वोह मुघलोनका बम्मन कुत्ता भास्कर कुलकर्णीने उसके मुसलमान मालिक अफझलखान को बचाने कि कोशिस मी शिवाजी महाराज पर किये जानलेवा ह्मलेसे अगर शिवाजीकि जान लेने मे सफल हो जाता था, तो क्या यह बेईमान बम्मन आज के जैसे शिवाजी कि प्रतिमा नचाते नजर आते थे ? बेईमान बम्मनोंसे ऐसी उम्मीद कर भी सकते है क्या ? जहा अस्तित्व सिध्द भगवान बुध्द को भी हिंदुन्के काल्पनिक महा दैवत विष्णू का ९ वा अवतार बनानेके बावजुद संशोधक रहे बम्मन तिलक ने भी बुध्द कि बजाय गैर बम्मन बधिर हिंदूओंको कायम बधीर रखने हेतू काल्पनिक गणपतीका हि सहारा लिया, वहा बम्मन भास्कर कुलकर्णी के हाथो शिवाजी महाराज अगर मारे जाते तो उनकी प्रतिमा दगाबाज, बेईमान बम्मनोंके कुछ काम की होती थी क्या ? शायद अब जैसे वोह महात्मा काह्लाने वाले गांधीके खुनी बम्मन नथुराम को भी पूज्य मानते दिख रहे है, वैसे हि अगर बम्मन भास्कर कुलकर्णी शिवाजी को मारनेमे सफल होता था, तो वोह शिवाजी के खुनी भास्कर कुलकर्णी को भी बम्मन होने कि वजहसेहि पूज्य भी मानते तो आचरज कि बात नही होती थी. लोहा मानना पडेगा उनके गैर अछूतोंके उपरके ५००० सालोन्के अखंड प्रभाव का ! सनातन संस्थाके डॉ आठवले का जो गैर बम्मन कुत्ता डॉ तावडे पकडा गया है, उसके और उसका बम्मन मलिक डॉ आठवले के घरो मे लोगोंको उत्तेजित और बधीर करनेकी दवाये मिली ही. इस बातसे यकीनन बम्मन अपने जो पैर धुले पानीको इन गैर बम्मन हिंदूओंको पवित्र तीर्थ नाम देके पिलाते आ रहे है, उसमे भी शायद ऐसी हि कोई दवा या भांग मिश्रीत करते रहे होंगे, ऐसा इनकी अखंड बधिरता अनुभव करते यकीन होता है . गर सिद्ध दगाबाज बम्मन शिवाजी कि जगह उनका ह्मलावर कुत्ते भास्कर कुलकर्णी कि हि जयंती मनाना शुरू करते तो यकीनन उस कुत्ते भास्कर कुलकर्णीकि प्रतिमा बम्मनोंके साथ यह आजके सारे शिवाजी महाराजके गैर बम्मन भक्त भी पुजते नजर आते थे. इस बातमे आश्चर्य नही कि बम्मन उनके स्थापित और संचालित हिंदू धर्म को बचाने के लिये भारत कि आझादी के पहले मुसलमानोंसे कभी भी पंगा लेते नजर नही आये है. मुसलमानोंने बहुत सारे अच्छूतोंको जब्रन मुसलमान बनाया तब यह हिंदू धरम के मालिक बम्मन जरा भी आवाज उठाते नजर नही आए यह इतिहास बताता है. यह साले सारे गैर बम्मन हिंदू संत और साध्विया जिनमे हमारे बहकाये और बुद्दु अछूत भी शामिल है, जो आजकि घर वापसीकी मुहीम बम्मनोंके इशारोन परहि चला रहे, वोह यह भी नही भांपने कि क्षमता रखते कि अगर बम्मन कि कत्तल करने वाले और बम्मनोंसे बार बार नडे गये शिवाजी महाराज के बाद अंग्रेज अगर भारत मे नही आते तो बम्मन सारे शूद्र और शूद्रातिशूद्र मुसलमानोके हवाले करते बम्मन जरा भी हिचकीचाते नही दिखते. बेवजही हि नही स्वातंत्र्य पूर्व कालमे बम्मनोने बनाई कॉंग्रेस के एक बेशरम मुस्लिम नेता मोहंमद आली खुली सभा मे सारे शूद्र और शूद्रातिशूद्र दलितोंको हिंदू और मुसल्मानोंमे आधे आधे बाट लेने कि बात करनेकी हिम्मत जूटा सकता था! बैठते थे फिर यह सारे संत,साधू और साध्वीया गोल टोपीया डालकर और हज यात्रा करने के लिये हज कमिटी कि तरफसे मिलने वाली मदद कि राह देखते. बम्मन और मुसलमानोंके राज मे बौद्ध और अछूतोंको प्रगती के दरवाजे कभी भी खुले नही गये थे. वोह अंग्रेज हि थे, जीन्होने ५००० सालो बाद अपनी केवल ३०० सालोन्की शियासत मे हमारे सह्याजीराव गायकवाड,शाहूमहाराज, महात्मा फुले जैसे महान ह्स्तीयोन्के साथ साथ सर्वसामान्य जन और हम अछूतोंको भी, बम्मनोने जो शिक्षा का अधिकार ५००० सालोंसे अपने पास हि द्बोच कर रखा था, उसे प्रदान करके हमारे लिये प्रगती के दरवाजे खुले किये थे, जिसके तहत हमे बाबासाहेबजी जैसा दैदिप्यमान हिरा नसीब हुआ. यह कह्नेकी जरुरत नही कि लीच्चड बम्मनोने शिक्षा का अधिकार हमारे कोई भी हिंदू राजाओन्को भी नही बख्सा था. एक मराठा राजा को भी छुपके छुपके रात मे एक बम्मन हि सिखाता था. शिक्षा और उसके जरीये प्राप्त ग्यान हि मनुष्य हि नही तो सारे जीव जंतू का भी प्रगती और समृद्धी कि ओर जानेका रस्ता है. अंग्रेझोने बम्मनोंसे छीनकर शिक्षा का वोह अधिकार हमे दिया यह भगवान बुद्ध कि क्रांती के बाद भारत मे बिना खून खराबे कि लेकीन बहुत सारे बम्मनोंका खून जलाने वाली एक क्रांती हि थी. भगवान बुध्द कि क्रांती के बाद हि दुनिया मे शांती का महत्व अधोरेखित हुआ. अन्ग्रेझोन्के शिक्षा कि क्रांती के बाद हि भारतमे छोटे मोटे स्तर पर बदलाव याने क्रांती कि लहरे उमडने शुरू हुइ, जिसमे सबसे बडी क्रांती हमारे बाबासाहेब के नाम जाती है. शिक्षा का मह्त्व देखिये ! भगवान बुध्द के बाद भार्तीयोंके लिये शिक्षा और ज्ञान का स्रोत बम्मनोंकी वजहसे हि कुंठीत हुआ था, जिसके फल स्वरूप सभी मुलनिवासियोन्की मती जैसे मारी गयी थी. आर्य बम्मनोंके खून के और उनके मुल मुल्कके जन्मे इसाई और मुसलमान हम पर राज कर पाये. अछा हुआ कि वहा पर ज्यू और पारसी खुद बेसहारा थे. वरना हम पर राज करने वाले बम्मनोंके रिश्तेदार परदेसियोन्की कि संख्या मे और भी बाढ होती थी. हमारे जितने भी गैर बम्मन संत है उन के नाम हम तक पहुंचानेका श्रेय शिक्षा के अधिकारी रह चुके बम्मनोंकोहि जाता है. उनकी बनाई हिंदू धरम कि चौखट के अंदर नाचने वाले और भगवान श्रेष्ठ कि बम्मन श्रेष्ट इसी सीमित उलझन कोही सुलझाना परम कर्तव्य और जिंदगी कि इति सार्थकता मानने वाले सारे गैर बम्मन एतद्देशीय संत हि तो उनके परदेसीपन, उनकी कुल छोटी आबादी और उनके अनैसर्गिक, विकृत आधिपत्यको लाल्कारने के बजाय वर्धनहि करने वाले घटक थे उनके लिये. वरना सभी को तुकोबा जैसे पागल बना देते थे वोह, हजारोंकी गैर बम्मनोंकी बस्तीवाले पुरे गावमे, जहा एकाद हि घर होत था बम्मनका. गैर बम्मन और आछुतोनसे भी एक गाडगे बाबा के सीवाय कोई भी संत क्रांतिकारी कहनेके लायक है ही नही. खुले आम हिंदू देवी देवता और प्रथाओंका कपडा फाड देते थे वोह. क्रांती के बिना शांती नसीब मे नही होती यह मै पहले भी कह चुका हु. जातिवाद का कीचड साफ नही होता तो बाबासाहेब बन पाते थे क्या? गंदगी का निचोड करना, अज्ञान का दूर होना ही क्रांती है. कीचड अगर साफ नही होगा तो सुकून कि निंद या जिना आसान होता है क्या ? कीचड साफ करने के लिये हाथ मे झाडू जैसा कोई हत्यार लेना हि पडता है. कीचड मे रहने वाले किडो पर रहम करेंगे तो कीचड साफ करना असंभव है. ऐसे किडा हुवा समाज जालीम पेस्तिसाइद या उपायोन्के बिना साफ करना मुश्कील होता है. इसलिये अब हमे जालीम इलाज के स्वरूप क्रांती कि हि जरुरत है. बाहर कि दुनियाको देखो जरा. हर जगह केवल २०० सालकी भी जुलमी राज सत्ता, वहा के राजा, राणी, उनके महलो और राजबाडोंके साथ वहाकी जनता ने फुंक दिये है. हर देसमे उठाव हुये और बहुजन प्रिय सरकारे आई. उसके बाद हि वहा प्रगती और अमन का राज दिखाई दे रहा है. साले बम्मनोंके रीश्तेदार झगडालु और पैसोवाले मुस्लिम देसोंके मुसलमान भी हमारे बम्मनो और बनिये उच्चवर्णीयोन्के साथ ऐसे प्रगत योरोप अमरिका मे, उनके अपने देस मे पनपी उनकी सारी बुरी और बेशिस्त आदते अपने अपने देसोंमे छोडकर डेरा बसाते नजर आ रहे है . हमारे यहा छत्रपती शिवाजी महाराज, सह्याजीराव गायकवाड, महात्मा फुले, शाहूमहाराज और बाबासाहेब आंबेडकरजीके साथ उनके बम्मन अनुयायिओने जो ५००० सालोन्का बम्मनि मनुवाद तोडके हमारे और आम जनोंके लिये जातीभेद, एकहि वर्ग याने बम्मनोंकि सारे हिन्दुओपर लदी अनैसर्गिक, विकृत और मोफत कि गुलामी कि कालीख दूर करनेके प्रयास करके थोडा अस्मान खुला कर दिया था, वहि आस्मान अभी फिरसे मनुवाद के ही सहारे फिरसे ढकनेकी जीतोड कोशिस बम्मनोंसे ज्यादा उनके पैर धुले पानी पिनेके आदी बन चुके कुछ अछूतोंके साथ सारे गैर बम्मनहि करते दिखाई दे रहे है. क्या बदलाव कि उम्मीद रखे अगर सारा शरीर हि किडोंसे भरा है तो? सोचो आपसमे झगडते यही गुलामी मे पिटते मरना है या सच्चे दिलसे और सही मायनेमे मिलकर कुछ करना है? सभी हिंदू हमारे केवल ६०-६५ सालोंसे मिल रहे आरक्षणसे नाराज और खिलाफ दिखते है. हालांकी बम्मनोंने उन्हे जातीयोनमे बख्शे हुये उंचे पद के सहारे बम्मनोंके साथ और सहारे उन्होंने भी गत ५००० सालोंसे इस देसकी सारी अछी जमीने और संपत्ती लाटी है. बम्मनोनेभी ३३ करोड देवोंके बहाने सारा सोना और संपत्ती इन उच्च वर्णीयोन्के मददसे हि बटोर ली है. छोडा हि क्या है उन्होने हमारे लिये ? ५००० सालोंसे बटोरे धन संपत्ती के सहारे पुरा प्रायव्हेट सेक्टर भी उनकेही कबजेमे है. जहा पब्लिक सेक्टर मे भी हम निर्धनोंका ब्याक लॉग कुहेतुसे शुरुआतसे भरा नही जा रहा है वहा प्रायव्हेट सेक्टर के दरवाजे मे यह हमे खडे भी कैसे करेंगे? प्रायव्हेट सेक्टर मे मारवाडीयोन्के साथ साथ अंग्रेझोन्के दोस्त पारसी, नवाब रह चुके मुसलमान और अन्ग्रेझोन्के धर्मके इसाई, इनके पास भी पह्लेका पैसा होनेसे वोह भी खुशहाल है. पारसी खुदको बम्मन हि समझते है तो हमसे दुरी रखेन्गेही. मुसलमान और इसाई हमे उनके मुस्लीम और ख्रिस्ती धरममे खिन्चने कि फिराक मे रहते है. उनके धरम मे जावोगे तभी खाली वोह तुम्हे उनके बाहरी बापोंके जरीये तुम्हे कुछ लभने देगे. ऐसा सारा सडा हुआ माहोल है. अब कि जो माय बाप सरकार है वोह तो पेशवाई कि वजहसे लभी तलवार पानेके बाद तो मन्दिरोन्के साथ साथ मुल्क पर भी हावी होनेकी विकृती से पाछाडे बम्मन मालीकोंने केवल बोलनेको सिखाये हुये तोतोंकि है . वोह मलिक के इशारे बरहुकुम सारे पब्लिक सेक्टर भी प्रायव्हेट मे तबदील करके फिर से हमे मुफ्त के गुलाम बनानेकी ख्वाहिश रखे हुये है. अब जो हमारे आरक्षण पर एतराजी जता रहे है वोह आधुनिक और काफी प्रगत सारे अभिजन यह बाते जानने के कबिल नही ऐसा नही है. वोह उनकी हमसे निम्न स्तरीय काबिलीयत को ढन्कनेके फिरकमे हमारा बाबासेब्जीने बढाया गुरुर और आत्मबिस्वास तोडना चाहते है. उन बुद्धुओन्को बताना है कि हम वोही लोग है जो स्वस्थ माहोल मे उनकी २५००० कि फौज को भी हमारे केवल ५०० मार्दो के बलबुते पर मात दे चुके है. उनकी मानसिकता पर हमे तरस आती है. जब हम कंगाल लोगोन्के आरक्षण कि तरतूद उनके शाहूमहाराज ने पैरवी करके बाबासाहेब ने नियममे बदल डाली, तब जाकर उन्हे उसपर एतराजी जाहीर बम्मनोंकी फोकट कि गुलामी जब वोह ५००० सालोंसे झेल रहे थे ( अभी भी वोही कर रहे है वोह नाकाबिल ) तब उनको बाप बम्मनोंको उन्होने कुछ भी पुछनेकी हिम्मत नही दिखाई. बम्मनोका आरक्षण आज भी उनके लिये जायज हि दिखता है. करप्शन का सील सीला पुरे विश्व मी बम्मनोंकी दक्षणा लेने कि प्रथा से हि शुरू हुवा है. गैर बम्मनोंसे वोह अपने पैर छुनेका या पैर धुले पानीको पिनेकाभी पैसा ऐन्ठते थे. क्या भला होता था उस गंदे पानि पिनेसे या बम्मन के पैर छुनेसे या उनके निरर्थक मंत्र बकनेसे उनको दक्षणा के रूप मी घुंस देणे वाले गैर बम्मन हिन्दुओन्का ? असलमे उन्होंने तो अन्ग्र्झोन्के पैर छुने चाहिये अगर अंग्रेझोने हि उन्हे शिक्षा कि बहुमूल्य देन दि, जो बम्मनोने उन्हे गत ५००० सालोन्मे कभी देना हि नही चहा. क्या करे?
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