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Jahil Majhab(Hindi)

@ जाहिल मजहब @ दोस्तो हम पूर्व आशिया खंड के मुल निवासी है, जो पहले आफ्रीकासे हमारे दक्षिण कें मद्रास कें जरीए चीपका था. मनुष्य प्राणी कि शास्त्र सिध्द ऐसी तीन हि मुख्य प्रजातीया, या नसले है. उसमेसे केवल आर्य नसल जो हमारे बम्मनोंकी है, वोही उत्तर धृवमे निपजकर खूस्किके मार्गसे, याने बिना कोई समंदर या विशाल जल संचय पार करना टालते हुंए, उनको किनारा करते, किनारे किनारेसे योरोप से तुर्कस्तान और तुर्कस्तानसे गर्म सहारा रेगीस्तानके इलाकोंमे फैलनेके बाद, हमारी सिंधू नदी पार करके उन अर्योनमेसेकि एक टोलीने हमारे भारतीय उपखंड मे प्रवेश पाया था, जो हमारे बम्मन है. उत्तर धृवसे निकले घुमक्कड अर्योंके लीए पेट पालनेके लीए भेडे, बकरी और गाय बैल पालके उनके दुध के पदार्थ और उनका मांस बहोत हि आवश्यक, और सहज उपलब्ध भी बाब थी. वे सारे के सारे आर्य इस तरह शूरुसे मवेशी या चरवाह (मराठी मे धनगर और इंग्लीश मे शेफर्ड =shepherd) हि थे. साहाजीकताः उनकी कोई भी विकसित संस्कृती हि नही थी, जैसे हम मुल निवासी भारतीयोन्की मोहोन्जोदारो और हडप्पा मे पायी गयी विकसित संस्कृती थी वैसी. वोह टोलीया अपनी अपनी टोलीयोंकि पहचान के लीए कुछ ना कुछ नाम धारण करती थी. जैसे मुसल्मानोंमे बहुत सारे युसुफ और महम्मद होने कि वजहसे उनके व्यंग, धंदा या प्रांत विशेष को उनके नामसे जोडे जाने कि रीत, जो आज भी सरेआम नजर आती है, उसके तहत पैर से लंगडे महम्मद को महम्मद लंगडा और आलू जैसा दिखने वाले या आलू बेचनेका धंदा करने वाले युसुफ को युसुफ बटाटा नामसे पहचान पत्र दिया जाता है, वैसे हि सिंधू नदी पार करने वाले आर्योंकी टोली का नामकरण सिंधू ऐसे करा कर उन्हे वैसा पहचान पत्र प्राप्त हुआ था. मारवाडी और सिंधी ‘स’ अक्षर का उच्चार ‘ह’ ऐसा करते है, उसी वजहसे जो सिंधू नामके आर्योण्की टोली हमारे भारतमे आयी वो हिंदू नामसे हि पहचानी जाने लगी. वोह है हमारे पूज्यनीय बम्मन जीन्होन्ने उनसे सौ गुना जादा मुलनिवासियोन्को हिंदुत्व कि टोपी पेहना दि. आर्योंके अलावा मानव जाती कि जो और दो नसले है, वो है चायना, तिब्बत और जापान के मन्गोलोइड और आफ्रिका, मद्रास के निगरोईड. दोस्तो टर्की भी मांगोलोईड हि है, जो दुनिया मे जाने माने योद्धा स्वरूप सिद्ध है. वहाके चेंघीज खान के खानदान के कुबलाई खान ने भारत तक उसकी विजय पताका लहराइ थी. वोह खान कि औलाद भी बुद्धिष्ट याने बुध्द धर्मीय हि थी. आफ्रिका के मसाई निग्रो भी तो मशहूर योद्धा हि थे. और मशहूर खिलाडीयोन्की उनकी लंबी सूची भी उनकी शारीरिक सबलता कि हि निशानी है. हम भारतीय दक्षिण भारत मे शुद्ध निग्रो वंशीय और अन्यत्र एक तो शुद्ध मंगोल वंश या निग्रो और मंगोल के संमिश्र, या इंग्लिश मे जिसे मिक्स्ड ब्रीड कहते है, वोह है. इसलीए दोनो हि मायने हम मे योद्धा और वीरता ठुस ठुस कर भरी हुंइ दिखती है. इसलीए गर हम अपने आपको वीर और शौर्यशाली मानते है, तो हमारा आर्य वंश से कोई तालुकात नही यह बात पक्की ठान लो. अकबर का बाप बाबर और हमारे भगवान बुद्ध भी मंगोल वंशीय हि है, जीन्होंने अपने बुद्ध धर्म के अलावा हर एक धर्मके, जो केवल उन सुनसान और उजाड सहारा के रेतीले प्रदेशोन्मे केवल चरवाहकोंसे या मवेशीओंके निर्मित है, उनके कल्पनाओंके तहत आसमानसे टपकेंगे ऐसी आंस पकडे बैठे है, ऐसे किसी भी भगवान या शैतानको इन्सान और इन्सानियत के आगे जरा भी अहमियत नही बख्शी. हम पहले हि उस रेगीस्तानके पुर्वासुरी मवेशीओंके टोलीओंमेसे आये प्रथम घुसखोर आर्य बम्मनोंसे निर्मित घोर घृणास्पद जातपात और स्त्री पुरुष भेदाभेद के सताए और पिडीत है. उस रेगीस्तानके, केवल मवेशीओंके सारे धर्म अपने आपको फैलानेमे शुरुसे हि क्रूर अमानवियता से धर्म युद्ध करते दिखाई दे रहे है. मुसलमान तो उनकी हिंदू धर्म कि काशी जैसे माने गये मक्का मे भी एक दुसरोंके जान के दुश्मन होकर खडे हुंए दिखते है. और दिख रहे है आसरा लेते, इसा के सुसंस्कृत पाश्चीमात्य देशोंका, बसनेके लीए. एक बेचारा इसा, याने येशू ख्रिस्त हि इंसानाके जीवन मे शांती, जो केवल मृत्यू के बाद हि सही मायने मे प्राप्य है, उसका केवल भगवान बुद्धनेही अधोरेखित किया महत्व जान कर, उस दुरके रेगीस्तानसे भी भगवान बुद्ध के बुद्ध धर्मके तत्वज्ञानसे कुछ और पानेकी एकमेव लालसासे भारत के कश्मीर तक आया था. उसके बाल को यादगार के तौर पर, तब कि पुरी बुद्ध धर्मीय जनताने एक दर्गाह मे अब भी जतन किया है, जिसे हजरत बाल दरगाह के नामसे जाना जाता है. हमारे मुल वंशीय भगवान बुद्ध ने हमारे लीए ऐसा तत्वज्ञान या धर्म छोडा है, जो शांती, अहिंसा, सर्वव्यापी समानता और एकता का सही बोध होने के बाद हि हर बुद्ध याने ज्ञानी व्यक्ती हि अपनाएंगी. आफ्रिका के ज्ञानी बने निग्रो, जो इसके पहले तलवार कि नोक या लालच देकर हि मुसलमान या ख्रिस्ती बनाये गये थे, वोह भी अब बुद्ध को अपनाने लगे है. मवेशीओंके आद्य ज्यू धर्मकी जानी मनी इजराइली स्त्री चित्रपट दिग्दर्शिकाने भी बहोत पहले हि बुद्ध धर्म अपनाया है. इटाली के भी बहुत सारे जाने माने फुट बॉल खिलाडी बुद्ध धर्म अपना चुके है. कितनी बडी ताकत है हमारे बुद्ध के तत्त्वज्ञान मे, अगर बिना तलवार, लालच और भाडे के प्रचारकोंके बिना येशू ख्रिस्त जैसा एक धर्म संस्थापक भी उसकी तरफ खींचा जाता होगा तो! ज्ञानी मानव हि इन्सानियत बचा सकते है. उन्हे ना तलवार कि नोंक का डर लगता है, ना किसी लालच का मोह खींच सकता है. सम्राट अशोक का हि उदाहरण लो, जीन्होंने मवेशीओंके धर्मोनके, खून खराबा करके धर्म फैलाने निकले सुलतानोंकी या पाद्रीओंकी फौजोंकी तरह, अपने जिते हुंए महान कलिंग युद्ध के बाद उस तलवार का बद उपयोग करने के बजाय उस अपार नरसंहारको देखनेके बाद व्यथित होकर अपनी तलवार म्यान कर डाली थी. वे अगर खून खराबा जारी रखते तो, बादमे अभी भी खून खराबा करनेमे विश्वास रखने वाले कोई भी जाहिल पैदा भी ना होते थे. जिनमेसे कईओं ने बुद्ध धर्म स्वखुशिसे स्वीकारा है, जीन्होंने हमारे भगवान बुद्धको भी विष्णू अवतार बनाके ईश्वर बनाया है और यहा आ कर कुछ तो भी समझदारी दिखा सकते है, ऐसे उस रेगीस्तानसे पहलेके जुडे हमारे बम्मनोंके अलावा हमे अब किसी भी हालात मे उस रेगीस्तानसे जुडे किसी भी धर्मको झेलना नही है. बम्मन अब उनके रखवालदारोंको भी बता चुके है कि हिंदू यह कोई धरम ना होते केवल एक संस्कृती मात्र हि है. ऐसा होने मे बाबासाहेब आंबेडकरजी के कठोर परिश्रम और ५००० साल बिताने पडे. ऐसेमे हमे फिरसे उस रेगीस्तानसे जुडे बम्मनोंजैसी कोई भी और एक जाहिल संस्कृती को हमारे गले मारके नही लेना है, यह बात पक्की है. ५००० सालोंसे कंगाल और वंचित रखे गये ऐसे दलीतोंमेसे एक बाबासाहेबजीको तो हमे सत्ताधारी बननेके मिशनके लिये हर एक पार्टी और संस्था जैसेहि नही तो उनसे जादा हि पैसोंकी जरुरत थी. यह सब रेगीस्तानि धरम के एजंट पैसोंकी बोरिया लेकर उन्हे अपने धरम मे खिंचनेकी भरकस कोशिश कर रहे थे, यह वास्तवमे हकीकत है. आजके सारे हिंदू या अन्य धर्मीय नेता भी केवल अपना घर भरनेके लीए जैसे फिरौतीयोंका पैसा भी बटोरनेको कतइ शर्म ना महसूस करते खुलेआम दिखते है, वैसे बाबासाहेबजी, जीन्होंने अपनी जमिन जायदाद तो छोडो लेकीन उनके अपने समाज के हित के आगे अपनी बीबी बच्चोंको भी गौण माना था, वो भी अगर इन संपत्ती लालची भडवों जैसे सोचके, उन पैसोंकी बोरिया लाये धर्म प्रसारकोन्का वह बिना फिरौतिका पैसा स्वीकारते थे, तो तुम्हे कबका वो उस किचड मे ढकेल चुके होते थे. मुसलमान तो चेलोंके इतने लालची है कि, कॉंग्रेस पार्टी का एक राष्ट्रीय स्तर का महमद आली नामका भडवा मुस्लिम नेताने भारतीय स्वातंत्र्य के विषय के भरी सभा के मंच पर भी, दलित जैसे उसके बाप कि अमानत है ऐसा समझकर और उस लिहाजे मे, मंच पर बैठे उससे भी जादा बेशरम और हिजडे सवर्ण नेताओंसे दलीतोंको हिंदू और इस्लाम धरम मे आधे आधे बांट लेनेकी बेशरम मांग कि थी. यह जो छुपा मौलाना ओवैसी है, वोह भी तो कोई फोडा फुंशी के औकातका घटनासमिती का एक सदस्य रहा, मुंशी नामके एक किडेको बाबासाहेब कि बराबरी देना चाहता देखा है. हिंदुत्व कि खाल को शेर के चट्टे पट्टे और जबडा रंगाकर डूरकाने वाले सारे कुत्तोंके पहले एक साल पहले मैने हि उस मोहर्रम के बाघ बने ओवैसी कि खाल उधाड दि थी. उसके बाद हि यु.पी. के एक असली मौलेने भी मुसलमानोंके दादा के दादा के परदादा रेगीस्तानी इब्राहीम को मानव जाती का उद्गाता मानने के बजाय हिंदू देव शंकरको शंकरबाबा नाम देकर खुदका बाप मानना मुसलमानोंकी तरफसे कुबूल किया था. अब समझ मे आया क्यो बाबासाहेब मुसलमानोंको पाकिस्तान देकर उन्हे अलग हि रखनेके पक्ष मे थे? उधार कि बाहरकि संपत्ती और भाडे के तत्त्वज्ञान के सहारे रेगीस्तान से जुडे जाहीलोन्से, अब भारतमे ५००० साल रहकर पुरे भारतीय और समझदार बने बम्मनोंसे उलझनाहि जादा आसान है. आगे कि सोचकर हम वो हि करते रहेंगे. भीमजी को सही मे मानते हो तो पुरा भारत बुद्धमय बनाना यह उनका अधुरा सपना पुरा करना हि होगा. उनका सत्ताधारी बननेका दुसरा सपना अपने आप पुरा हो जायेगा! नमो बुद्धाय ! नमो शिवराय ! नमो शाहुराय ! नमो भीमराय.

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