--- @ --- दोस्तो हमारे प्रिय गांडा भाई मोदीजी, तमाम आर.एस.एस; बीजेपीवाले और हमारे नेट परभी कुछ लोग अपना निष्प्रभ कर्तृत्व और दयनीय दिमागी, सैद्धांतिक औकात को बेमालूम ढककर, या जान बुझकर नजरआंदाज करके डिंग मारते चील्लम चिल्ली करने वालोंको अनुभव करके शायद आपको भी वो स्कुली सिल्याबस के पाठके उस चुहे कि कहानी याद अति होगी, जो नाचीज चिंटी जान होने पर भी अभिजनोंसे भरे राज दरबारमे खुदकी बनाई टोपी कि शान जोर शोरसे ढोलक बजाते बयान कर रहा था. उसे चुहे मारनेकी दवासे या दंडेसे खतम करने के बजाय उस दयालु राजाने, चुहेकी शान मारनेकी चीज ऐसी टोपी जब जब्त कि तो राजाने उसकी टोपी ली इसलीए राजा को भिकारी जाहीर करके फिरसे ढोल बजाकर राजा भिकारी राजा भिकारी ऐसे चील्लाना शुरू करता है. और जब राजा उसपर तरस खाकर उसकी टोपी उसे वापस देता है, तो राजाने डरकर चुहे को टोपी लौटा दि ऐसा डिंडोरा पिटना भी शुरू करता है. याने चुहे कि औकातके लोग अन्य लोगोंकि संवेदनशीलता का बेशर्मिसे नाजायज फायदा तो लेते है, पर उस संवेदनशीलता और दया वृत्ती को कायरता और दोष कहनेमे भी चुकते नही. आर.एस.एस/बीजेपी का सारा चरित्र ग्रंथ हि मनुस्मृतिसे लेकर शुरुसे अंत तक ऐसे किस्सोन्सेहि भरा मिलेगा. उसकी चर्चा यहा करना यह उन्हे बढावा देने जैसा हि है. उस चुहे कि याद नोटाबंदी के मामले मे मोदीने अपनी और अपनोंकी जेबे भर लेने के बाद विपक्ष ने आमजनता कि खस्ती हालात के खिलाफ आवाज उठाइ तो इन बेशरम लोगोंने विपक्ष के उस आवाज को काले धन के खिलाफ के जंग विरोधी कह कर विपक्ष कि हि नही तो अपने हि पैसोंके राशन के लीए लाईनोंमे मरने वालोंकी भी बेइज्जती कि है. गलत का भी ढोल पिटकर प्रचार मे अव्वल है यह चुहे. बुद्दू भारतीय जन अब भी ऐसे झुठे के प्रचार को सच मानते है, जैसे वोह केवल ३, १/२% बम्मनोंके निर्मित और रचित राम, कृष्ण और उनके जैसे ३३ करोड देवोंजैसे, जो वास्तव मे कभी भी खरे नही उतरे है, ऐसे मिथ्या और काल्पनिकोंके प्रवचन, कीर्तन, आख्यान, और भजनोंके अखंड मारे गये श्रवनोंसे गत ५००० सालोंसे प्रभावित है. वो बुद्दू गणेश प्रतिमा दुध पिती है, ऐसी फैलाई गयी अफवा को भी सच मानकर गणेश कि कागज कि प्रतिमा को भी दुध पिलाने मे व्यस्त हो गये थे. अब क्या होगा उनका यह उनके वोह ३३ करोड भगवान हि जाने, जो जिस हिंदू धर्मके तहत उनके गले मे वो मारे गये है, जब उस हिंदू धर्मको खुद कर्मठ आर.एस.एस के सर्वशः प्रमुख श्री मोहन भागवत और भारतीय कोर्टोने धर्म नही ऐसे करार करते हुंए उसे महज एक मामुली जीवन पद्धती, याने कल्चर हि है ऐसा जाहीर किया है! अब यह वास्तव स्विकारनेके के बाद उनके पास एक हि अस्तित्व सिद्ध ऐसे एकमेव भगवान बुद्ध हि बचे है, जिन्हे उनके महान विष्णू का एक अवतार ऐसी मान्यता दि गयी है. दोस्तो दंगा मस्ती वाले काल्पनिक देवोंकी हि जिन्हे आदत हि नही तो लत भी लगी है, ऐसे वो बुद्दू माने या ना माने, पर जब हिंदू यह कोई धर्म नही रहा हो तो वो सारे बुद्दूओंको अब उनके सारे के सारे भगवानोंमे शामिल किये गये एकमेव अस्तित्व सिद्ध ऐसे भगवान बुद्ध के रचित बुद्ध धर्मको हि उनका धर्म मानना अपरिहार्य और अनिवार्य भी है. उन्हे गौर करना चाहीए कि पूर्व एशिया के समशीतल भारतमे जन्मे सारे तथाकथित धरमों मेसे जो अब केवल एक संस्कृतीके नामसे हि बचा है, ऐसे हिंदू संस्कृती ने भी भगवान बुद्ध कि श्रेष्ठता जान कर हि केवल भगवान बुद्ध के अलावा ना जैनोंके महावीर को और ना हि दुसरे कोई भी भारतीय धर्मके संस्थापक को अवतार बनाकर अपना भगवान माना है. समशीतोष्ण ऐसे पूर्व एशिया के भारत और पश्चिम एशिया के गर्मिले सहारा रेगीस्तान के आसपास हि दुनिया के लगबग सारे धरमोंका उदय हुंवा है. हमारे सारे भारतीय धरमोंकी हि एकमेव विशेषतः है कि, यहा के कोई भी धरमोंमे कभी धर्म युद्ध (CRUSADES)छीडा ऐसा इतिहास नही, जो उस पश्चिमी आशिया मे जन्मे सारे धरमोंमे अब भी आम बात दिखती है. उस चुहा प्रवृत्ती कि बाते करते यह सारी अवांतर पर निःसंशय आवश्क बातोंपर आना अनिवार्य हि था मेरे लीए. इतिहास को कसोटी पे नही घिसा जाता तब तक इतिहास बनानेकी सही प्रेरना या उर्मी भी जाग हि नही सक्ती. हां तो उन सारे चुहोंको मशवरा यही है कि सिद्धांतो और उस दिशा मे ठोस कृती के पहला सही कदम क्यो न हो, उठाए बगैर उकसाई झुंड मराठवाडा विद्यापीठ नामांतर के या बाबरी मशिद तोडनेके मामलोन्मे जैसे जाहीलोंकी हि साबित हुंइ, वैसे तुम्हारा जमावडा भी बीजेपी और शिवसेना जैसे जाहीलोंका हि शाबित हो सकता है. सही सिद्धांत और उसपर आधारित कार्यक्रम लेकर आवो तो लोग अपना पैसा खर्चा कर कर टिकट ले कर भी शामिल हो जाएंगे. अगर उस मामलोंमे खोखले हो तो कुछ नया धुंडो. नमो बुद्धाय! नमों शिवराय! नमो शाहुराय! नमो भीमराय!
योरोप के रशिया, फ्रांस, ब्रिटन आदि देशोंमे जनता और राजे सारे के सारे आर्यवंशीय हि थे. फिर भी आर्य वंशीय जनताने उनके आर्य वंशीय राजा रानीयोंको गाय बकरी से भी क्रूर पद्धतीसे गिलोटिन के नीचे रखकर मारा था. उनके राजवाडे और महल भी फुंक दिये थे. यह इतिहास हमसे जादा पुराणिक नही है. पश्चिम आशियाई और उससे सलग योरोप के पाश्चिमात्य मुलुकोंके मूलतः निवासी मुसलमान और अंग्रेज इनकि भारत मे घुसखोरी के बहुत पहले उसी पश्चिम आशियाई मुलुक से भारतीय हिंदू धर्म के जनक और अद्यापि पालक, ऐसे ब्राह्मण भारत मे घुसखोरी करने वाले सर्व प्रथम ऐसे आर्य वंशीय है. उन्होंने जिसे धर्म के नामसे भारत के मुल निवासी सपुतों पर थोपा था, वोह हिंदू यह धर्म था हि नही, ऐसे भारतीय सुप्रीम कोर्ट का सत्यान्वेषी फैसला हुआ है. वोह हिंदू नामकी एक संस्कृती मात्र हि है, जिसकि नियमावली ब्राह्मनोंने मनुस्मृती नामके पुस्तक मे गठीत की है. वर्तमान अघोषित ब्राह्मण मुखीये ने भी समस्त ब्राह्मनोंकी ओरसे, उस उन्होंने ५००० सालोंसे यहा के मूलनिवासी, जिन्हे वे अभी भी झुठ से हिंदू घोषित और साबित करनेके अथक प्रयास कर रहे है, उनसे छिपाया हुआ सत्य आखिर मे...
Comments
Post a Comment