हे राम ! साला बुढा महात्मा गांधी राम नाम जपते जपते मर गया. यह राम भी अजीब चीज है. उस बुढे बनिया ने दलीतोंको हरिजन नाम देके हिंदू धरम के मलिक बम्मन, जो अब भी हिंदू धर्मांतर्गत चातुर्वर्ण्य कि प्रथा फिरसे स्थापित करनेकि जी तोड कोशिश करनेका छुपा अजेंडा लेकर काम कर रहे है, वोह अजेंडा लेकर हि तो दुनियाके दबाए गये स्त्री वर्ग, पिच्छडे और भारतके अछूतोंके लिये जीवन अर्पित करने वाले जगत वन्द्य नेता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरजीको प्राणांतिक विरोध किया था. विरोधाभास यह है कि बाबासाहेबके मनोमन प्रखर लेकिन कमालका छुपा विरोध करने वाले पेशवा के विकृत मनोवृत्ति के आर.एस.एस. के मालिक बम्मनोंने अछूत जातीके बाबासाहेबजी का नाम और प्रतिमा उनके प्रातः वंदना मे मराठा छत्रपती शिवाजी महाराज के साथ शामिल किया, लेकीन उनके बनाये पंत प्रधान मोदि के जैसे वह भडवा गांधी भी बनिया होते हुये भी वोह उनका परम तिरस्कार करते दिखाई देते है. वैसे एक महिला होने के बावजुद विद्यमान मोदि को लेकर भारतके सारे पंतप्रधानोंमे एकमेव मर्द साबित हुई स्व. इंदिराजी गांधी भी उनके परम तिरस्कार का हि विषय है. उसके पिछे नेहरू परीवारके घरानेशाही के कारण के साथ साथ शायद कारगिल युद्धमे पिछवाडे पे खाई हुई लाथ को भी उनके कारकिर्द का विजय दिन मानके ख़ुशी मनाने वाली प्रवृत्तीया भी एक और कारण हो सकता है. इंदिराजीमे कोई दोष नही थे ऐसे मै भी नही मानता हु, लेकीन उनके सारे दोष उनकी पाकिस्तानको चीरकर बांगलादेश को अलग करनेकी वीरता भरी कृती के सामने नगण्य है. गरिबी हटावो वाली उनकी घोषणा और उसके उपलक्ष्य मे उनका निर्धार और कृती भी नजर आंदाज करने लायक निश्चित हि नही है. और आजके इस प्रखर जातीय व केवल हिंदुत्व वादि सरकार और उस मुताबिक बनाये जा रहे उन्मादवादी माहोलकि पार्श्व भुमिपर इंदिराजी का धर्म और जातीयोंमे भेदाभेद विरहीत शासन काल बहोत हि सह्यणीय व सराहानीय साबित होता है. विद्यमान भा.ज.पा. सरकार बम्मन मालीकोंके रा.स्व.संघ संचालित है. रा.स्व.संघ के बम्मन कितने ढोंगी और पाखंडी है यह बार बार बतानेकी आवशकता नही. उनके खानेके दांत हि दिखानेके भी हो सकना यह बात सर्वथा असंभव है. उनके हर कृती के पीछे गहन छ्लावा छिपा रहता है. और उनके किसीको भी, विशेषतः गैर बम्मन हिन्दुओंको बुद्धू बनानेके अंगभूत हुनर के तहत रा.स्व.संघ कि पठडी से आये सभी गैर बम्मन हिंदू भी ऐसे छलावोंके आदी और उसमे कुशल बनके ही आते है. मिसाल के तौर पर हमारे मोदी जी कोही लीजिये. दुनियाभर वोह शान्ति कि डिंग मरनेके लिये भारत को दुनियाके शांती के अव्वल प्रवक्ता बुद्ध की धरती बतायेंगे लेकीन हिंदू धरम का गिरा हुआ स्तर संवरनेके एकमेव हेतुसे आलसी लोगोंको कुछ तो भी कसरत करते है ऐसा केवल आत्मीक समाधान पानेके लिये प्रस्तुत किये गये हिंदू योगा का प्रचार करनेमे कतई चुकते नही. भारतीयोन्के साहिष्णूतता कि डिंग मारते हुये वोह यहा के अछुतोंकी निर्घृण अवहेलना दुनियाकी नजरसे छुपाने कि भी पुरेपूर दक्षता लेते है. उनकी हर एक कृती के पिच्छे उनके मालिक रा.स्व.संघ के बम्मनों जैसा कुछ ना कुछ कपट रहता हि रहता है. उसका क्लर्क अमित शहा तो एडे चाले करते हि जादा दिखता है. अभी ये मोटे को वोह डेढ फुटीया वामन का प्यार उमड आया दिखता है. साले बली जैसे राजोंको चुनने के बजाय इनको खिलौने हि पसंद आते है. यह गांडू बनिये काले पैसेसे सुपारी देकर अभी अभी इशरत बेगम जैसोंकी मर्डर कर सकने मे कामयाब क्या हुए तो खुदको हि डॉन समझके बैठते है. भूल जाते है कि गझनी का मोहम्मद इनके फेमस सोरठी सोमनाथ मन्दिर को हजार बार लुटकर और समशान बनाकर जाता रहा और ये पिछवाडा खोलकर उसका स्वागत करते रहे. इनके खुद्के गुजरात मे कभी भी कोई भी बनिया गुजराती राजा नही बना था. सब राजोंको इम्पोर्ट करना पडता था. साला पहले का जमाना रहता था तो सबने बार बार लुटा काले पैसोंका सुरत शहर मै भी जरूर लुट लेता था. गांधी ने द्लीतोंको हरिजन ऐसा स्तुती दर्शक नाम तो दिया लेकीन हिंदू कोड बिल पारीत ना हो इसके लिये बाबासाहेबजीको प्राण त्यागनेकी धमकी देकर ब्ल्याक मेल भी किया, जिसकी वजहसे हमारा कायम और घोर नुकसान हुवा. अब मोदीभी अपंगोन्को दिव्यांग नाम देके उनका क्या भला करना चाहते है यह वोही जाने! किसी बहरे को वोह बहरा है ऐसे दो टुक शब्दोन्मे अपनी अपंगत्वकि स्थिती बयान करने के बजाय उसके कानोंसे वोह दिव्यांग है ऐसी शब्दोन्की कसरत करनी पड सकती है यह तो निश्चित. ऐसे हि हम लोग पुरा यकीन रखे कि मोदि और रा.स्व.संघके कोई भी जब भी भगवान बुध्द कि मूर्ती के सामने झुकता है तो उसके मन मे उस मुर्तीको उखाडनेको कब मिलेगा इसका हि चिंतन रहेगा. अब यह आयोद्ध्या के राम मंदिरका हि मामला देखो ना. अनपढ ओ.बी.सी. कोली याने मच्छीयारा वाल्मिकी क्या रामायण लिख पाया होगा जब यहा के हिंदू राजाओन्को भी बम्मनोंने शिक्षा के अधिकारसे ५००० सालोंसे वंचित रखा था! शुद्र शंबूक रिषीको तपस्या कि केवल इच्छा प्रकट करने पर खुद स्वयं मौत के घाट उतारने वाले लेकिन जिसके पुनरप्राप्ती के लिये घनघोर और लंबा युध्द लडा वोह देवी स्वरूप स्वपत्नी सीता को एक मामुली धोबीने लंकाधिपती रावण कि शय्या गामिनी कहने पर सादी थप्पड भी लगानेकी हिम्मत ना रखने वाले राम कि अहमियत और नितीमानता क्या होगी, यह बात जैसे हम जानते है वैसे यह चालाक बम्मन भी नही जानते ऐसा हो सकता है क्या? उसके बावजुद उन्होने उस रामका इस्तेमाल बुद्दू गैर बम्मन हिंदूओंको उचकाने को और उसके सहारे सत्ता हासिल करनेके लिये किया. उसके लिये उनकी शिकार मुसलमान तो तय है हि. गैर बम्मन हिंदू जो स्वतंत्रता पूर्व काल मे हिंदू धरम के मालिक बम्मनोंके होते हुये भी जब जबरन मुसलमान बनाये जाते थे तो उनका धर्मांतरन बम्मनोंने रोकनेकी कोशिस भी नही कि थी इस बातसे वोह क्या अनाभीद्न्य थे ? फिर भी सारे गैर बम्मन हि वोह सुनसान पडी बाबरी मजीद तोडने भारत के कोने कोनेसे दौड पडे थे. उसके बाद कई बार यह भा.ज.पा. कि सरकार सत्ता मे आयी. बनाया राम मन्दिर ? रा.स्व.संघ के बम्मनोंको राम का देवताका स्वरूप से कुछ लेना देना हि नही है. भारत मे वे अल्प संख्यांक होने कि वजहसे उनके बधीर बनाये बहु संख्य गैर बम्मन हिंदूओंके जरीयेहि उनके उपरकी अपनि ५००० सालोंसे चली आ रहा स्वभाविकतः वीकृत और अनैसर्गिक हुकुमीयत कायम रहे यही उनका एक कलमी कार्यक्रम है. चलो यहा तक ठीक है. वोह गैर हिंदू, बम्मनोंसे जितना ठुकवा लेना चाहते है उतना वोह करे. यहा तक हम जैसे को राम मन्दिरसे या बम्मनोंसे कुछ लेना देना नही है. वैसे भी हमे भी यह गैर बम्मन हिंदू, बम्मनोंसे क्या और कैसा नाता निभाते है इस बातसे भी कुछ भी लेना देना नही है. पर बात यही पे खतम नही होती है. इसमे बम्मनोने राम मन्दिर के पत्थर से कही और भी निशाणा साधा है. बाबरी मशीद तोडनेके लिये उन्होंने ६ दिसंबर यह दिवस चुनना यह उनका बडा कपट है. उस दिन हमारे बाबासाहेबजी का महापरीनिर्वाण दिन था. वह दिवस हम द्लीतोंके लिये कितना अहम है यह बतानेकी जरुरत नही. पुरी दुनिया जानति है कि बाबासाहेबजी के १०-२० लाखसे भी कई गुना ज्यादा पुरी दुनियाके कोने कोनेसे आये अनुयायीओंका महासागर उस दिन मुंबई के शिवाजी पार्क चैत्य भूमी कि तरफ उमड पडता है. बाबरी मस्जिद ६ दिसंबर के दिन तोडनेका आर.एस.एस. का कांड उस बाबा आनुयायिओन्कि भीड को तोडनेके इरादेसेहि रचा गया था. उस दिन का भय हम बाबा अनुयायिओन्के दिल मे पैदा हो जाये और उसके जरीये बाबासाहेब का महत्व हमारे लिये कम हो जाये यही कपट निती बम्मनोने उस दिन वोह मस्जिद तोडनेका कार्यक्रम तय करके रची थी. उस कपट का एक और हेतू इन भेकड हिजडोंका यह भी था कि, राम से नफरत करने वाले लेकीन बम्मन और उनके बुद्दूओनसे कई ज्यादा हिम्मत बहाद्दर ऐसे हम दलीतोंको राम मन्दिर तोडने वालोंकी मुसलमानोंसे संभाव्य भिडंतमे जबरन उनके साथ खींच लेना. हमारे कुछ बुद्दू उनके साथ गये भी, लेकीन हमारी प्रिय चैत्य भूमी कि बाबा अनुयायीओंकी भीड उनकी अपेक्षा के विपरीत दिनो दिन लाख गुनेसे बढतीहि जा रही है. अब तो दुनियाभर वोह संख्या करोडोंसे बढती जा रही है. कम्युनिस्ट पार्टी के कोई एक कॉम्रेड कुरणे ने कई साल पेहले संविधान बचावो ऱ्याली का आयोजन बराबर बुध्द जयंती के अवसर पर रखा था. लेकीन उसके विरोधमे मेरे एक बम्मनि वृत्तपत्रको भेजे गये लेकीन हेतुतः प्रसिद्ध न किये गये ओपन लेटर कि भनकसे वोह रेली रद्द कि गयी थी. दोस्तो अब हमे सबको यह सबक लेनी है कि दुनियाकी कोई भी उपद्रवी रेली, संप, मोर्चे या प्रतिरोध धरणा का कार्यक्रम हम हमारे बाबासाहेब या भगवान बुद्धसे सम्बन्धित किसी भी त्यौहार या दिवस पर नही रखेंगे. मुंबई के डॉक्तारोन्का एक संप गणेश उत्सव के दिन तय हुआ था, जब विरोधी भा.ज.प.के विनोद तावडे ने मध्यस्ती करके उसे रद्द करवाया था. कितने सजग है यह सारे के सारे हिंदू सारे पार्टीयोंके अपने त्यौहार और विशेष दिवसोन्के बारेमे! जरा भी डिस्टर्ब नही होने देते वोह उनके त्यौहराहोन्पे! यह सजगता हमे भी बर्तानीही होगी. अभी अभी हमारे गुजराती भाई नेता श्री मवानी ने मनुस्मृती जलानेका कार्यक्रम ६ दिसंबर को हि आयोजित किया है. वह कार्यक्रम बाबासाहेब कि पुण्यतिथी तणावपूर्ण करनेका धोका भा.ज.पा. के बाबरी मस्जिद तोडनेके कार्यक्रम जैसा हि साबित हो सकता है. इस लिये श्री मवानी भाई आपका योगदान मानते हुये भी आपको सलाह है कि आप अपने खुद के या किसी औरोंके सल्ला मसलत करके यह जो मनुस्मृती दहन का कार्यक्रम रखा है उसकी तारीख बदल कर कोई और दिन उसके लिये तय किजीये, वरना सारे दलित आपको भी भा.ज.पा. के सहयोगी या एजंट मानेंगे. आप यह कार्यक्रम रावण दहन के दिन रखे यह सबसे बेहत्तर होगा. आपको द्लीतोंके लिये काम कर रहे है इस लिये शुभेच्छा देना मेरा फर्ज समझकर आपके काम मे शुभेच्छा दे रहा हुं.
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