FRESH ADDONS< !पढते जावो बढते जावो! कुत्ते और सुव्वर कह गये द्लीतो- - कोई सवर्ण हिंदू, या तो कोई मुसलमानसे जुडे बंदे भारतीय स्वातंत्र्य सैनिकोंकी लिस्ट नेट पर झलकाते दिख रहे है. अपने बाप, बम्मनोंके तलवे चाटते, उनकी छत्र छायाओंमे फले फुले और उभरे भी, सारे सवर्ण हिंदू, उनके राजाओं, और मुसलमानोंने हि तो हमारे मूलनिवासीयोंके भारत मे राजपाट करनेका मजा चखा है, तुन्हारी गंदी हालतसे बिलकुल बेफिकर रह कर. इसिलिए उसका चस्का भी उन लोगोंकोहि हि सबसे जादा लगा था. तुम जो उनके गिनती भी नही थे और रोटी के टूकडे के भी ५००० सालोंसे मोताज थे, क्या खाक लढने जाते थे खाली पेट वह स्वतंत्रता युद्ध, जो केवल नामका हि था तुम्हारे लिये, अगर तुम्हारी हालात मे गत ६९ सलोनमे अब भी कोई सुधार नही दिखाई पड रहा है तो? तुम तो क्या पुरा भारत हि नही तो दुनिया भी जिसका लोहा मानती है वोह जीन्होंने, पैसोंकी और वक्त कि भी कमी जानकर उस पराये विदेश मे, केवल ३ हि सालोमे तब्बल ३० डीग्रीया हासील कि, ऐसे महामानव, हमारे डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरजी भी तो सहारा और ब्रेड के केवल दो टुकडोन्के लिये भी मोताज थे उस वक्त. मुसलमान, जो पंजाब, बंगाल को आधे हिस्सो मे तोडते और बलुचिस्तान, सिंधको पुरे निगलते भी, भारत के अंदर भी हैद्राबाद के रुपमे एक और पाकिस्तान बसाने कि जिद करते दिखे थे, वोह इन परदेसी बम्मन और उनके परम भक्त मूलनिवासी सवर्ण हिंदूओंसे जादा चालाक साबित हुए. टूटा फुटा क्यो न हो, पर यह परदेसी मुल्कके धर्म के अभिमानी मुसलमान, हमारीहि मातृभूमी भारत के एक हिस्से पाकिस्तान को कबजे मे कर उस पर राज करते भी दिख रहे है. वैसे तो अंग्रेज भी इस्लाम धरम के बडे अब्बाजीकीहि तो संताने है. उनका तो सबसे ज्यादा हक बनता था पाकिस्तान जैसे, भारत के कही और टूकडे बना कर उन्हे होली, फ्रांकी, या पोर्तु लेंड नाम देकर उनपर राज करने का, अगर वोह मुसलमान और सवर्ण हिंदू, ऐसे दोनोंको भी परास्त करने वाले, भारत के आखरी शास्ता थे ! अच्छा होता था अगर वोह हमारे आडोस पडोस मे हि रहते थे. पासमे होने कि वजह हमे भी बहोत पैसे खर्च करके बाकी लोग जैसे यहा से बेहत्तर है, इसलिये अंग्रेजोंके मुल्क मे जाना और बसना पसंद करते है, वैसा हमे भी उन आडोस पडोस मे बसे अंग्रेजोंके मुल्कोंमे जाना और बसना भी बिना पैसे खर्च किये आसान होता था. उन आडोस पडोस मे बसे इन्साफ और इंसानियत प्रिय अंग्रेजोंके मुल्कोंकि डरसे अंग्रेझ राजके जैसी सुरक्षा हमे बचे खुचे हिंदुस्तान मे बहाल भी होती थी ! (तब भारत का नाम हकसे हिंदुस्थान हि रखते थे हमारे बम्मनके पैर चाटू). शायद तब हम अंग्रेजोंके असली मुल्क और अमरिका मे भी जाने के लिये लगते, ज्यादा पैसे जुटाने मे समर्थ बन जाते थे. यह बात जुदा है कि औरों जैसे मुसलमानोंकी औकात भी नही है तरक्की मंद राज करनेकि, अगर वे खुद तरक्की पसंद नही है ! मुस्लिम देशोंके हाल देखकर आगे भि वोह उसके लिये काबील बन पायेंगे ऐसा यकीन करना भी मुश्कील हि है. ८०० साल राज किया उन्होंने यहापर. हमारे इर्द गिर्द के देसोंमे भी उनकी भरमार है. दिखता भी है क्या कोई भी दुनियामे उनके गुणगान गाते? समंदर पार करके आये अंग्रेजोंने उनका नामोनिशाना हि मिटा दिया था. मुसलमान, चंद बम्मन और उनके चंद सवर्ण बगल बच्चे छोडकर, सारे भारतीयोन्के लिये भी तो, सम्राट अशोक जैसे वास्तव और सही भारतीय राजाओंके बाद, सही हि तो साबित हुये थे अंग्रेज, यहा राज करने के लिये! था छीना कोई मुसलमान राजाओंने बम्मनोंसे शिक्षा का अधिकार, और बख्शा भी था क्या वोह अधिकार हम आम भारतीयोंको? सती कि गंदी प्रथा भी तो आखरी सती के साथ हि कायमसे जला दि थी ना अंग्रेजोंने हि. यह बम्मनिया, जो इसके पहले उनके पती के मरने बाद, अपने बाल कटवाकर, सफेद साडिया पहन कर उनके घरोंके अंधे कमरोंमे रखी जाती थी, और सवर्ण विधवांये, जो पती मरने के बाद सती के नामसे जलाइ जाती थी, वोह सब पतिव्रतांये अब तो अंग्रेजोन जैसेही अपने पती के जिंदा होते हुये बाहरके ५-५ पती रखने के स्वातंत्र्य का मजा लेते दिखाई दे रही है. यह भी तो उनपर अंग्रेझोंकीहि मेहेरबानीया है ना? हां यह भी सच है कि हिंदूओंमे यह कुछ हद तक तरक्कीया लाने, अंग्रेजोंको राजा राम मोहन राय, न्यायमूर्ती रानडे, गोखले, वीर सावरकर, आंबेडकर और साने गुरुजी जैसे तत्कालीन हिंदू नेताओं और गाडगे महाराज जैसे संतोंकी अमुल्य साथ हि कारगीर साबित हुइ थी. बेचारे मुसलमान, उनका पढा लिखा मालदार नेता जिना अंग्रेजोंके मुल्कोंमे कई साल रहके आनेके बावजुद भी हमारे बम्म्नोंजैसा कर्मठ गधा हि रह गया था. उसपर भी बच्ची कि उमरकी परधर्मिय औरत इस्लाम मे खिंचाने कि हि धून सवार थी. भेजा ना सारे मुसलमानोंको जन्नत कि जगह जहन्नुम मे उसने पाकिस्तान कि रट लगाकर? अंग्रेजोंके मुकाबले कुछ भी नही थे सारे के सारे मुसलमान राजे. साले सारे के सारे अय्याशी और जन्नत मे रीझर्वेसन पानेकि फिराक मे काफिर हिंदूओंको मुसलमान बनाने के हि पीछे पडे थे. हां बम्मनोंको बख्शते देखा गया है उनको! असलमे गैर इस्लामी धर्मोन्को मिटाने के उनके मजहबी हुकुमोंके तहत तो उन्हे हिंदू धरम ध्वस्त करने के लिये हिंदू धरम के मलिक रहे, केवल बम्मनोंको हि नष्ट करना था. और तलवार तो छोडो खेती के औजार भी क्या चीज है इस बात से उस समय तक पुर्णतः गैरवाकीफ, और केवल ३,१/२% कि आबादी वाले बम्मनोंका पुरा सफाया करना उनके लिये जरुरी हि नही तो आसान भी था. शायद बम्मनोंकी पैगंबर मोहंमदके खानदानसे रिश्तेदारीहि बम्मनोंसे पंगा लेने से डरा रही थी उन्हे. या फिर करते रहे होंगे हमारे हिंदू बम्मन अपनेही हिंदू काफिर दलीतोंको मुसलमान बनानेमे मुसलमानोंकि मदद. उन्होंने हि तो कश्मीर के मुसलमान बने पंडीतोंको फिरसे हिंदू बननेसे रोका था. मुलतः गरम सहारा रेगीस्तानके इर्दगिर्द वाले एक हि मुल्क से जुडे है ना दोनो भी, एक मोहम्मद के रिश्तेदारोन्की तौर पर और सारे मुस्लिम उसके चेलोंकी तौर पर! गद्दारी खून मे हि होती होगी. भारतीयोंसे बम्मनोंके गद्दारी कि सिलसिला तो चाणक्यसेहि शुरू हुवा था. उनको मुसलमानोंको बीबी या बेटीया देनेवाले राजपूत राजाओंसे स्वाभिमानी मराठा राजा, शिवाजी के खानदानसे क्या दुश्मनी थी यह भी एक बडा सवाल हि है. शिवाजी का बडा होना बडा हि खलता था उन्हे. देखो कैसे वोह शादिसे लेकर राज्याभिषेक के विधी तक भी हर बार नडे थे शिवाजी के खानादानको. शिवाजी स्थापित, भारत का एकमेव मराठा राज भी तो उन्होंने पेशवा बनने के बाद हि मिट्टी मे मिला दिया था. वोह स्वार्थी, बडी बिदागी ऐन्ठने के बादहि मान गये थे शिवाजी कि शादी और राज्यभिषेक कि वो विधीया करनेको. शिवाजी का ह्मलावर, मुसलमान अफझलखान का कुत्ता नौकर भास्कर कुलकर्णी भी बम्मन हि तो था. शिवाजीके शेर बच्चे संभाजी, जिसपर क्रूर मुघल मुसलमान औरंझेबकि शाहझादी मरती थी, उसे भी तो बम्मन कबजी कलुषाने हि दारूकि लत लगाकर, औरंगझेब के हवाले करनेका षडयंत्र रचा था. पाकिस्तान के मुस्लिमोंकी हालत भले हमारे मुस्लिमोंकी हालात से बदतर और पाकिस्तान कि हालत भले मक्काकी कि कानुनन और अमरिका चीन कि छुपी रखैल जैसी हो, पर मुसलमानोंका एक और देस तो बढ हि गया ना दुनिया मे, जो दुनिया खाक करने पर हि तुले है? क्या कुराण मे कही लिखा है क्या कि उसकी जन्नत बसाने के लिये हमारी इस पृथ्वी के अलावा विश्वमे और कोई गोला नही है? हो सकता है अगर उनका विश्व, उनके मायनेमे चांद तक हि सीमित हो. सवर्ण हिंदू तो यहा पेशवाई जैसेहि दलीतोंको छलनेकी मजा ले रहे है. क्या घंटे का फायदा हुआ दलीतोंका भारत स्वतंत्र होने से? उनका तो वोही हलाखी का हाल है जो मुसलमान और हिंदू राजाओंके राज मे था. हमारी भलाई तो अन्ग्रेझोंके राज मे ही हो सकी थी. शरीफ तो केवल अंग्रेज हि थे. साला कोई बैठा होगा भी उपरवाला, तो अच्छे इन्सान को हि उठा लेता है. अच्छे अंग्रेजोंको हि उठा लिया उसने और ये दोनो महम्मद कि थाली के चट्टे पट्टे हमारे नसीब मे छोड दिये. अंग्रेजोंकी तारीफ मै ऐसे हि नही कर रहा हुं. दुनिया तारीफ करती है उनके इंसानियत और शिस्त कि. देखते हो ना हमारे यहा के सारे ढोंगी और पाखंडी सवर्ण भारतीय वहा जाने के बाद ही अपनी एकता का ढोल पिटते, रोड ट्राफिक का भी कानून तोडने कि हिम्मत नही कर सकते. वोह बनिया गांधी, अंग्रेजोंके ब्रिटन मे चंद साल बिताने के बाद सौजन्यशील अंग्रेजोंकी इंसानियत और सही इन्साफ करने कि नितीमानता को अजमाने और अनुभव करने के बाद हि, बनिया होने के नाते हि बेहद डरपोक होने के बावजुद भी, अंग्रेजोंके राजमे हि बिना टैक्स भरे नमक उठाने कि हिम्मत जूटा पाया था. साला जानता था वोह कि नितांत शरीफ अंग्रेज उसे पहले के भारतीय राजाओं और सुलतानों जैसे तुरंत फांसी पर लटकाएंगे नही. और यकीनन यह भी जानता था कि उसकी उस बेतुकी हरकत से पूर्वापार सारे के सारे सरकारी टैक्स टालने के आदि, डरपोक बनियेहि कुछ ना कुछ तो हिम्मतवान बन पायेंगे, और आगे चलकर पुरे भारत मे औकात न होते भी सबसे जादा फायदेमे रहेगे. रिलायन्स के धीरूभाई अम्बानिसे लेकर सारे के सारे बनिये भी, जैसे क्या उन्हे कुछ भी करने का लाईसेन्स हि मिला है, ऐसे समझकर केवल भारत मे हि सारे के सारे नीती नियम और कानून बिनधास्त और बेशर्मी से तोडकर, वह साबित करनेकि होड भी लगाते दिख रहे है. आचरज कि बात यह है कि गांधीने बनीयोंको लगाए उस रोग का भारत के बाहर उनमे नामोनिशान भी नही दिखता है. अरबस्तान या निग्रोन्के पुराने राज मे जाकर गांधी ऐसी हिम्मत कर सकता था क्या? नंगा घूम सकता था क्या? कभी का काटा और खाया भी जाता था वोह वहा. अच्छा होता था अगर वैसा होता. क्या दम था इन बनियोन्मे अंग्रेजोंके पहले के मुस्लीम और अन्य राजाओंके राजमे? सबसे पिछवाडा पीटा ले चुके है वोह. एक भी योद्धा या राजा इनकी औरतोंके कोखसे पैदा नही किया, इन्होने खुद के उपर राज करनेको भी. सबके सब राजा और सुलतान बाहरसे हि आये थे उनको ठीक कराने. गरीबोन्का खून चुस कर कमाये दलाली के कमाईसे गर्वसे कहो...... वालोंको पैसा भी तो वो हि देते है. अपने सोरटी सोमनाथ के मन्दिर का अभी बडा ढोल पिटते दिखते है वोह. लेकीन उसके रक्षणमे भी एक भी बनियेने खुदके खूनका एक छीटा भी नही बहाया है. मुसलमानोंने तो सात सात बार लुटा और फोडा था उसे और उसके अंदर बिठाए उनके भगवान को. ऐसे सूदखोरोंके काले धन का तब पुरे भारत मे एकमेव गोडाउन, ऐसा सुरत शहर लुटनेका का मोह शायद मराठा छत्रपती शिवाजी भी टाल ना सके होंगे, औरोंके जैसे. मै हि साला कम नसिबी इस काल मे मेरा जनम हुआ. वरना मै भी तो एकाध बार वैसा जरूर करता था. जाने दो रात गयी बात गयी. भटकते हुये सुरत भी पहुंच गया मै. हां तो अंग्रेजोंके शराफत बात कर रहे थे हम. बेचारे इतने शरीफ है कि दुनिया भर के बदनाम, कट्टर मुसलमान भी उनके देसोंमे, सारे के सारे आधुनिक सुख साधनोंका मजा लेने, अपने बीबी बच्चोंको सुरक्षित रखने और पढाने वही बसकर और उनसे हि हासील तंत्रज्ञान के सहारे, वहा पर ही कभी बम धमाका करते तो कभी गन धमाका करते, बार बार दिखते है. फिर भी वोह बेचारे शरीफ अंग्रेजोंको अभी भी उनपर तरस खाते और रहम करते हि दुनिया देख रही है. हम दलीतोंका क्या? हम ना घर के ना घाट के. मुसलमान और बम्मन मिलके निग्रों जैसे हमे भी वहा बेच देते तो हमारे वहा जानेका खर्चा भी बच जाता था. और अगर हम शिक्षा का अधिकार पानेके चंद हि सालोंमे, इस भारत के, हमारे पहले शिक्षित हुए सारे गैर दलित, बम्मन, मुसलमान और जगभरमे कोई भी पैदा न कर सके, ऐसे प्रज्ञाशाली महामानव, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरजी को हम हमारे मे पैदा कर सकते है, तो यकीनन हम निग्रो ओबामा तो क्या, वहा बसे किसी भी भारतीय से भी पहलेहि अमेरिकाहि नही तो हमारे उपर राज किये इंग्लंड पर भी अनुशासक बनते दिखाई देते थे, आजकी तारीख मे. शरीफ अंग्रेज तो जाहीर भी करते दिखे है कि उनके प्रशासक का पद कोई भारतीय या आशियायी मूलके व्यक्ती को देने के लिये उन्हे कोई एतराज नही होगा. दिखी है ऐसी शराफत कि मिसाल हमारे बम्मन, उनके बगल बच्चे और मुसलमानोंमे भी. जग भर के सारे मुसलमानोंकि कोई भी दुसरी अच्छी बात पर भी एक जूट नही दिखेगी. पर पराए धरम के कोई लुले अंधेरे गरीब को भी इस्लाम मे खींच ना, यह उनके लिये सबसे अहम नेक और पाक काम रहता है. कसम खाकर हि निकलते शायद वोह घरसे, कि एक ना एक को तो खिचेंगे इस्लाम मे. इसके लिये पैसे भी खर्चे करते है. ऐसा हि एक मोहम्मद आली नामका भडवा मुसलमान था, जिसका नाम मुंबई मे एक रास्ते को दिया है और जो भडवे महात्मा गांधीके राष्ट्रीय कोन्ग्रेस का नामचीन नेता भी था. उसे भी शरम नही लगी ऐसा कहते कि आधे दलित हिंदू उनके पास रखे और आधे दलित मुसलमान बनाए जाए. कमाल कि बात यह है कि यह मांग उसने कॉंग्रेस कि भरी सभा के मंच पर खुले आम कि थी. कॉंग्रेस का एक भी भडवा हिंदू नेता उस भडवे मुसलमान नेता के खिलाफ कुछ भी नही बोला था. बोलेगा भी क्यू जब हम उनके लिये भी गंदा बोझ के समान हि लगते थे सारे सवर्ण हिंदूओंको? अब तय कर लो असल मे हमारे कौन और पराये कौन. तय करलो किसकी साथ कीस हद तक लेंगे और किसको कीस हद तक साथ देंगे. मुसलमान उनका हिस्सा पाकिस्तान के रूप मे ले चुके है. इस लीए पक्का इरादा कर लो कि अब हमेहि मातृभूमी या उसके हमे दिये किसी भी हिस्से पर राज करने का हक है. असलमे हम हि असली इन्सानियत का प्रदर्शन करेंगे, और ना बम्मनोंके, ना उनके बगल बचोन्के और ना मुसलमानोंके साथ कोई बेइन्सफ़ि और बेरह्मी होने देंगे, जैसे उन्होंने हमारे साथ किया था. बुद्दु देसीयोंको अपने साथ खिंचने के लिये मुसलमान द्वेष हि, बम्मन संचालित सरकारके इस पेशवाई जैसे विकृत पर्वमे उनका एकमेव साधन है. इस लिये मुसलमान भी परेशान हि है. पुरी दुनिया मे मुसलमान अपने वालोंको हि खतम करने पे तुले दिख रहे है. उपरसे अब पाकिस्तान भी दुनिया कि नजर से गिर जानेसे हमारे भारतीय मुसलमानोंको अब पहले जैसे कोई बाहरी मदत मिलने के आसार नही है. इस लिये हमारी विक्रुतोंके खिलाफ कि लढाई मे वे उनके स्वार्थ के लिये हि सही पर हमारी साथ देना चाहेंगे तो हम उन्हे नकारेंगे नही. स्वार्थी सवर्ण हिंदू जैसे वक्त आने पर मुसलमानोंके खिलाफ लढने के लिये हमे हिंदू कह कर चुचकारते और बादमे फेंक देते, वैसे अब के विकृत पर्व मे हमे मुसलमानोंकी साथ लेनेमे कोई देशद्रोह बिलकुल नही होगा, और खानदानी इमानदार खून के होनेसे उनसे इमानदारीसेही पेश आएंगे. पर अब उन्हे पहली बार इमानदारी, इंसाफियत और इंसानियत दिखाकर हमारे राजा बननेके हक को कबूल करना हि होगा. आखरी पल मे भी जितने का हि हौसला रखो, चाहे फैसला कुछ भी हो, क्या खाक करेगी जिंदगी तुम्हारी बरबादी और अगर, मरने पर भी तुम तुले हो! नमो बुद्धाय! नमो शिवराय! नमो भीमराय.
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