---- @ ---- दोस्तो मै पेशवाई दिमागके कुछ विकृत बम्मनोंका और उनके बुद्दू बनाये चेलोंके बीजेपी वालोन्का जानी दुश्मन हुं. लेकीन पुरे भारतीयोंमे मै केवल बाकी बम्मनोंकी जनता का हि बहुत बडा फ्यान याने प्रशंसक और शुकरगुजार भी हुं! प्रशंसक इसलिये हुं कि केवल वो हि पुरे भारतीयोंमे नव अन्वेषक और नव स्वीकारक है. याद रहे कि ऐसे लोग हि नयी खोज कर सकते है, और जब उसकी उपयुक्तता खतम होती या वह खोज हानीकारक शाबित होती, तो नव निर्माण और स्वीकार करनेकी दुर्लभ क्षमता उनमे होने कि वजहसे हि अपनी हि खोज नष्ट करनेमे वे जरा भी हिचकीचाते नही. जब उनमेसे कुछ बम्मनोंको मनुस्मृती का घीनौनेपण और अमानवियता उजागर हुंइ, तो पुरे भारत मे आजतक वोही सह्जतासे अपने बम्मनों द्वाराहि निर्मित उस मनुस्मृतीको खुद जलाते दिखे है. बाकी सारे उनके बुद्दू बनाये सारे गैर बम्मन भारतीय उस अमानवीय मनुस्मृती को अब भी गले लगाते बैठे दिख रहे है, और उस मामुली तथाकथित बम्मन संत रामदास ने बनाए मनाचे श्लोक नामक कवन और आरतीयां हर हिंदू देवोंके उत्सव मे भक्तिभावसे चिल्ला चिल्लाके गाते है, जिसे उनके मुंहपर खुलेआम “बम्मन कितना भी भ्रष्ट क्यू ना हो पर सारे भारतीयोन्मे केवल बम्मन हि श्रेष्ठ है और रहेगा” ऐसे कहने को अत्यल्प संख्यक होने पर भी डर तो छोडो लेकीन शरम भी नही लगी . बम्मन हि पहले भारतीय है, जिन्हे बुद्ध धर्म का महत्व भारतीयोंकी सांस्कृतिक उन्नती और भौतिक प्रगती के लिये अत्यावशक महसूस होने पर तुरंत उनका वर्चस्व ५००० सालोंसे उनके नियुक्त गैर दलित रखवालदार और गुरखोनके जरीए अबाधित रखने का एकमेव साधन ऐसे हिंदू धर्मको त्याग कर उन्होंने बुद्ध धर्म का स्वीकार किया. दोस्तो आर.एस.एस. के प्रमुख श्री भागवत जी भी वैसे प्रगतीशील हि साबित हुंए, जब उन्होन्नेही ५००० सालोनबाद पहली बार उनकी निर्मिती ऐसे हिंदू धर्म को नाममात्र संस्कृती हि है ऐसे स्वीकार और जाहीर भी किया. हो सकता है कि वे आरएसएस कि घटना के तहत और उनके इर्द गिर्द के सनातनी बम्मन और सनातनी बनाये बुद्दू ऐसे अन्य भारतीयोन्के जमावडे के डर के कारण उतना हि कहनेका साहस कर सके. लेकीन याकिन मानो आगे चलकर उन्होंने भी भविष्य मे बुद्ध धर्महि अपनाया तो आचरज कि बात नही होगी. अब इन पेशवाई दिमागके बम्मन, खास करके अपनी लडकी का ब्याह मुस्लिम से करके देने वाले बुढवू लालकृष्ण अडवानी और छचोरे कारण के वजह छोटे भाई के हाथो मारा गया प्रमोद महाजन, इन्होंने बाबरी मशीद तोडनेकी तिथी हमारे बाबासाहेब जी कि पुण्यतिथी पर हि रखी थी. उनमे उनके दो उद्देश्य साफ दिखते है. एक तो ६ दिसंबर को भयभीत बनाकर भीम दिवानोंकी संख्या को तोडना, और दुसरा उद्देश्य साहसी भिमदिवानोंको उन भेकडोंकी, भीड मे मुसलमानोंके खिलाफ खिंचना. उनके उद्देश असफल रहे. प्रमोद महाजन तो उप्पर गया और अडवाणी को मोदी ने पाताल के अंधेरेमे हि कायम स्वरूपी ढकेल दिया है. यह हरामखोर मोदी और बीजेपी वाले भी बाबासाहेब जी का जनमानस के उपरका प्रभाव कम करनेके मौके धुंडते हि रहते है. इसी लीए गत साल महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस और मोदी इंदू मिल के समारोह को टालने के लिये जानबुझ कर परदेस भाग गये थे. छकडे फडणवीस के पीठ पर बनिया रंडवे मोदी ने हाथ क्या रखा तो वो भी एकमेव मर्दानी पंतप्रधान ऐसी औरत जात इंदिराजी को भी कमी दिखानेकी कोशिश करता दिखता है. सालोन्का पब्लिक कि शोर्ट मेमरी पर गाढा बिश्वास दिखता है. वरना फडणवीस कि चाची शोभा फडणवीस के तुवर डाल घोटाले को विरोधी अहम मुद्दा बनाते थे, तो फडणवीस मुख्यमंत्री बनना तो दूर, चुनके भी आना मुश्कील था. साले विरोधी और बीजेपी एक हि थाली के चट्टे पट्टे और दलितद्वेषी है. कभी आया शरद पवार या दिग्गज ओबीसी नेता बाबासाहेब जी को श्रद्धांजली अर्पित करने, जिनकि जनता जो या तो आरक्षन कि वो मलाई खा रहे या उसे पानेकी कतार मे है, जिसका बाबासाहेबाजी नेही प्रावधान किया है ? नमो बुद्धाय! नमो शिवराय! नमो शाहुराय! नमो भीमराय!
@ मेरे दूर दराज के दोस्तो मै तो नशिबवान हुं जो मुंबई के शिवाजी पार्क, जहा हमारे चीर वंदनीय बाबासाहेबजी कि स्मृती जगाने मै जब जब दिल चाहता है वहा शिवाजी पार्क के बिलकुल नजदीक बसा होने के कारण कभी भी जानेका भाग्य मुझे लभ्य है. उनकी स्मृती तो मै मेरी हर एक पोष्ट मे जगाना मेरा अहम कर्तव्य मानता हुं हि. उन्हे आज या कल स्मरण करना यह औपचारिकता होगी. इस लिये मै कल के नीले महासागर का एक बुंद बनना मेरे लिये हर साल जैसे जादा भाग्यशाली समझता हुं. अपसे भी बिनती है कि अगर दुर्भाग्य वश आप मुंबई मे उस नीले महासागर को नही अनुभव सकते हो तो अपने अपने शहर, गांव या मोहल्ले मे उस नीले महासागर कि झलक जरूर पेश करे. हमारे बौध स्तूप अगर हर जगह है, हिंदू शंकराचार्य के भी चार पीठ निर्माण किये गये है तो हमारे बाबासाहेब जी के भी स्मृती स्थल हम भारत के हर भीम दिवानोंके लिए भारत के हर कोने मे क्यो नही स्थापित कर सकते है? यह एक सुसंधी है हमे इकठ्ठे होकर हमारी एकता और सामर्थ्य का भी ऐलान करनेकी. नमो बुद्धाय! जय भीम!
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