फंस गये थे ! आखिर मे भारतके सबसे चालाक चतुर और महाराष्ट्र के जाणता राजा शरद पवार साब भी, बम्मन आर.एस.एस. के चाणाक्य मंडल कि चाल मे उलझते हुए एटरोसीटी एकट के बारेमे गलत बयान करके फंस हि गये थे. लेकीन जो महाराष्ट्र के भूत पूर्व बम्मन मुख्य मंत्री मनोहर पंत जोशी जैसे बोगस डिग्री के प्रिन्सिपाल के गुरु रह चुके है , वोह तुरंत पलटी खाकर अपने आप को सम्हलने मे कम माहीर थोडे हि है? आर.एस.एस.के चाणक्य मंडल बहुतही गहरी चाल चल गये इस वक्त. खुले दिलसे मान्य करता हु कि एटरोसीटी एकट के विषय मे पवार साबकी बयानबाजी से मै भी बिना सोचे समझे उनके खिलाफ अनप शनप लिख दिया था. पवार साब वैसे भी बहुत हि विवादास्पद व्यक्तिमत्व है. मेरे जैसे बहुत अन्योंको भी उनकी एटरोसीटी एकट कि बयानबाजीसे ऐसा हि कुछ लगा होगा कि महाराष्ट्र के बम्मन सी.एम. देवेंद्र फडणवीस के सिंचन घोटाले कि फाईल खुलवाने के इशारेसे पवार साब बौखला गये थे और उनसे फास्ट उनके भतीजे अजितदादा पवार को बचानेकी आखरी कोशिस के तौर पर जैसे मंत्रालय के साथ एक गरीब बुढे चपराशी को भी फुंकना उनके भतीजेने गलत नही समझा था, वैसे वोह भी अभी चल रहे उनके जाती के मराठा प्रदर्शन के पीछे छुप कर पुरा महाराष्ट्र भी फुंकना कम नही करेंगे. लेकीन गहरी सोच के बाद हमे चाणक्य मंडलीके एक तीरसे बहुत सारोंको घायाल करने कि नीती हम नजर अंदाज करने कि बडी भूल कर रहे है ऐसा यकीन हो गया. देशभर मे बम्मनोंके खिलाफ हवा चल हि नही रही है तो तुफान मच रहा है. इस मे ना ना करते हमारे ओ.बी.सी. भाई भी आगे बढते दिख रहे है. उसमे सभी शंकराचार्योन सहित सभी गैर बम्मन हिंदूओंके बाप ऐसे आर.एस.एस. के संघ चालक वंदनीय मोहन भागवत और पुराने पुर्जे मुरली मनोहर जोशीको भी पुरे ५००० सालोन बाद अभी हि दुर्बुद्धी होनी चहिए थी क्या ऐसा ऐलान करनेकि, कि हिंदू यह कोई धरम नहि बल्की मह्ज एक जीवन पद्धती याने केवल कल्चर है ? उस बयान से यह स्पष्ट हुआ कि उनसे सौ गुना जादा आबादी वाले सारे गैर बम्मन हिंदूओं पर केवल साढे तिन टक्के की आबादी वाले बम्मन, जो खुद इस भारत देस मे मुस्लिम पैगंबर के खानदान और मुल्क से सर्व प्रथम घुसखोरी करके आए परदेसी है, उन्होंने ५००० सालोंसे उनकी खुदकी जीवन पद्धती या कल्चर लदी थी. वोह गैर बम्मन हिंदू जो बम्मन लदे उस जीवन पद्धती के आदी बनाये जा चुके है, उन्होंने आजके इस अति प्रगत विज्ञान युग के सारे अविष्कारोन्का धड्ल्लेसे और बेतहाशा उपभोग लेना आसानीसे अंगीकार किया है ऐसा यद्यपी स्पष्ट जाहीर होता है तथापि उनमे अभी भी उनके उपरके बम्मनोंके ५००० साल से रहे संमोहन से स्वतंत्र होने कि काबिलीयत या लक्षण नही दिखाई देंगे. उन गैर बम्मन हिंदूओंपे उन दोनो बम्मनोंके इस सत्य को उजागर करने वाले बयानसे, जो गैर बम्मन हिंदूओंके लिये यकीनन स्पष्ट रुपसे लांच्छनास्पद साबित होता है. लेकीन उस सत्य उजागरक बयानसे सबसे जादा सदमा पहुंचा होगा तो वोह सारे ब्रह्मवृंदको, जिनकी रोजी रोटी का और समस्त गैर बम्मन हिंदूओंके उपरके उनके विकृत आधिपत्यका ५००० साल पुराना एकमेव अस्त्र या स्त्रोत, ऐसे हिंदू धरमकि उनकी बैसाखीको केवल एक संस्कृती या जीवन पद्धती करार करके लाथ मारके विच्छिन्न करके उन्हे बेसहारा कर देनेसे. वैसे तो उनको कोई जादा फरक नही पडना चाहिये अगर बहुत सारे मन्दिरोन्की बंद तीजोरीयोन्की चाबिया और सारे मन्दिर भी अभी भी उनके हि कब्जेमे है. मै वृथा गर्व तो नही कर रहा हुं पर यह हकीकत है कि महात्मा फुले, शाहू महाराज, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर, मा. रामसामी पेरियार और मा. कांशीरामजी के बाद बम्मनोंके खिलाफ तुफान के पहले जो जोर शोरसे हवा बहना शुरू हुआ है, उसका बहुतांश श्रेय मेरा बम्मनोंका बहुत सारे अभी अभी तक अज्ञात रहे कुकर्मोनके हर पैलूओंको हर तरीकोनसे उजागर करनेके प्रयासोन्को भी निश्चिंत रुपसे है . इस तुफानसे बचने के लिये हि बम्मन अभी भी मुल निवासीयोन्मे फुट पाडनेकी वोही ५००० सालो पुरानी नितीका अवलंब करते दिख रहे है, जब बम्मनोंके बदौलत जाती व्यवस्था मे पुर्वापार राजे महाराजे रहे, उच्च वर्णीय होने कि अभी भी डिंग मारने वाले और बम्मनोंके सहारे और साथ साथ इस भारत कि सारी जमीन जायदाद और सारी संपत्ती पर सालोंसे कबजा कर बैठे महाराष्ट्रके मराठा समाज को कोपरडी कि गैर दलित लडकी के उपरके निर्घृण अत्याचारकी इतिहास मे एकमेव घटनासे विचलित होकर पहली बार अब जो हो रहा है वैसा एकताका प्रदर्शन करते देख कर. आचरज कि बात नही कि इस वक्त भी चाणक्य मंडली का भरोसा उनके उन्ही रखवालदारोंपे दिखाई दे रहा है जिन्हे उन्होंने अन्य मुलनिवासियोन्से सुरक्षा पाने के और दबाये रखनेके हि उद्देशसे ५००० सालोंसे शस्त्र धारण करने कि अनुज्ञप्तीया याने परवाने देकर क्षत्रिय नाम दिया है. उच्च वर्णीयोंके करीबी ओ.बी.सी. तो बम्मनोंके विकृत अधिपत्य को तकरीबन जान चुके है. इस लिये वोह बडी संख्या मे मुलनिवासी बुद्ध का धरम अपना कर उस विकृत अधिपत्य कि जड ऐसे हिंदू धरम को ठुकराते दिखते है. उन केवल ३,१/२% वाले, मुसलमान मुहम्मद पैगंबर के असलमे रीश्तेदार और चाणक्य से शुरुआत करके मराठा छत्रपती शिवाजी का जानलेवा ह्मलावर भास्कर कुलकर्णी हि नही तो मराठा शिवाजी का शेर पुत्र मराठा संभाजी महाराज को भी मद्यपी बनाकर क्रूरकर्मा औरंगझेबके शिकन्जे मे आना आसान बनाने वाले बम्मन कब्जी कलुषा तक भी गद्दार और बेईमान साबित बम्मनोंकि जीवन पद्धती मराठा कब तक गले लगाते बैठते है कया मालूम. बम्मन अरबी बेपारीओंके समुद्री ब्यापार के नफेसे प्रभावित होकर तो केरल के मुसलमान मोपला बनकर आसानीसे यह उनकीहि लदी हिंदू संस्कृतीको भी लाथ मारते और अब तो खतरनाक ईसीस आतंकवादियोन्मे भी सामील होते दिखते है. एक बम्मन टिळक आरामसे ख्रिस्ती धर्म अपना कर रेव्हरंड भी बनता भी दिखता है. ऐसे मतलबी बम्मनोंकी लदी संस्क्रुतीसे लगाव रखना भडवोंकी पतिव्रता औरत बनने जैसा हि साबित होता है. मराठोन्के चल रहे प्रदर्शन उपर उपर तो निरुपद्रवी दिखते है. पर यकीनन यह बम्मनोंका उनके विरोध मे निर्माण बहुजनोंके आंदोलन को मराठा विरुद्ध बहुजन ऐसा स्वरूप देने के षडयंत्रका हि भाग है. मराठा छत्रपती शिवाजी महाराज मराठो जैसे हम सारे भारतीय ,जीनमे बहुत सारे मुसलमान भी शामिल है उनके लिये अपार गर्व कि बात है. हम तो कहेंगे कि शिवाजी महाराज बम्मनोंसे और जावळी का चंद्रराव मोरे जैसे मराठा से भी जादा हमारी वफादारी कि इज्जत करते थे और बम्मनोंसे जादा हम दलित, जीवा नाई जैसे ओ.बी.सी. और मदारी मेहतर जैसे मुसलमान उनके करीब और उनपर जान न्योछावर करने वालोंमेसे है. मराठा शीवाजी महाराज के वंशज शाहू महाराजने हर पल बम्मनोंके विकृती कि घनघोर प्रताडना कि है. वोह बम्मनोंका स्वामित्व रहे हिंदू धर्म कि बजाय ब्रह्मो समाजके अनुयायी बने थे. भारत मे सामाजिक आरक्षण के उद्गाता होने से सारे पिछ्डोंके लिये वोह जहा परम वंदनीय है, वही पे बम्मनोंके लिये वोह परम तिरष्कृत है. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर, जो शाहू महाराज कि बदौलत हि इतनि इज्जत कमा पाये, उनका नाम बम्मन अपने संघकि प्रातह वंदना मे शिवाजी महाराज के नाम के साथ साथ लेते है, वही शाहूमहाराज का नाम उस प्राथ वन्द्नासे बहिष्कृत करते है. आरक्षण कि मांग करने वाले इन राज वंशीय मराठोने बम्मनोंके साथ रहते उस महान शाहूमहाराज को भी याद करना छोड दिया है. शायद विकृत नामर्द बम्मनोंके साथ रहते वोह भी खुदकि मर्दानगी, इमानदारी और खानदानी दिलदारी गंवा बैठे है. शिवाजीकि प्रतिमा बम्मन पेशवाई काल मे ढकते रहे और अभी नचाते नजर आते है. आशंका यह है कि अगर अफझलखान का बम्मन कुत्ता भास्कर कुलकर्णी के हमले मे महाराज का कुछ भला बुरा होता तो यह नतद्रष्ट लोग महात्मा गांधी का खुनी नथुराम गोडसे कि जैसे जयंती मनाते है, वैसे उस कुत्ते भास्कर कुलकर्णी कि भी जयंती मनाते नजर आते थे. इनको कोई बता दे कि हम दलित बम्मनोंसे कई गुना जादा उनके अपने है. शुगर फेक्ट्री से लेकर दारू के कारखाने, बेंको और शैक्षणिक संकुल तक अभी भी सारा का सारा प्राइव्हेट सेक्टर उनके, बम्मन और बनीयोन्के हि हाथ मे है. वहा आरक्षण नही है. और भारतीय मानसिकता के तहत जो गिनी चुनी सरकारी नौकरिया है उसमे भी आरक्षण का बेकलोग शुरुसे हि भरा नही जा रहा है. तो उनको खुपता क्या है? खुद्की सोचनेकी नाकाबिलीयत? मराठी मे ऐसी हतबल मानसिकता को चपखल बयान करने वाली एक कहावत है, उसे यहा पेश करनेका मोह मै रोक नही सकता हु, इस लिये पेश कर रहा हु. “ होईना कुणाच तर उपटा गुरवाच’! बिना २०० रु. पर डे बिदागी और कम से कम १ वडापाव के आश्वासन, दस आदमी भी जमा करना मुश्किल होता है विद्यमान पॉवरफुल मराठा नेताओंको भी. इतनी जनता जमा करने के लिये यकीनन सटोडिये मोदी ने अदानी , अम्बानी बनियोंकी क्रिमिनल चालाकी के सहारे हि उच्च वर्णीयोंके हि भारतीयोन्के जगभर छुपाए काले धन को छुपके बटोर कर इस्तेमाल किया होगा. विधायक विनय मेटे जैसे अन्य और असंतुष्ट आत्माओंको को मंत्री पद या बहुत सारे धन कि लालच देकर इस काम मे लगाना, ५००० सालोंसे सारे भारतीयोंको उनकी हि मातृभूमी मे आसानीसे फोकटके गुलाम बनाना जिनके लिये जरा भी प्रतीरोध्य नही था, उन बम्मनोंको तो बाये हाथ के मल के बराबर हि है ना ?
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